भारत से पहले इस देश में गूंजी हिंदू राष्ट्र की हुंकार, लोकतंत्र पर मंडराया संकट!

नेपाल में लोकतंत्र संकट में! पूर्व मंत्री की गिरफ्तारी और 'राजा आओ' आंदोलन से फिर उठी संवैधानिक राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग।

Harsh Sharma
Published on: 3 Jun 2025 5:54 PM IST
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नेपाल इन दिनों एक बड़े राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। पूर्व गृह मंत्री कमल थापा की गिरफ्तारी और ‘राजा आओ, देश बचाओ’ जैसे नारों ने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है, क्या नेपाल में फिर से राजशाही की वापसी होनी चाहिए? साल 2008 में नेपाल ने राजशाही को खत्म कर लोकतंत्र अपनाया था। लेकिन पिछले 16 सालों में नेपाल ने कई राजनीतिक और आर्थिक परेशानियों का सामना किया है। ऐसे में अब लोग सवाल पूछ रहे हैं कि क्या लोकतंत्र से अच्छा कोई और विकल्प हो सकता है?

नेपाल में राजशाही की पुरानी परंपरा

नेपाल में राजशाही की शुरुआत 1768 में पृथ्वी नारायण शाह ने की थी। उन्होंने नेपाल को एकजुट किया और देश को ब्रिटिश शासन से बचाए रखा। बाद में राजा त्रिभुवन ने 1951 में लोकतंत्र की शुरुआत की और राजा महेन्द्र ने 1962 में पंचायत व्यवस्था लागू की। 1990 से 2001 तक नेपाल में संवैधानिक राजशाही थी, जिसमें राजा राष्ट्र प्रमुख थे और चुनी हुई सरकारें काम करती थीं। इस दौर को एक सफल राजनीतिक मॉडल माना जाता है। लेकिन 2001 में हुए राजपरिवार हत्याकांड और 2006 के जन आंदोलन के बाद 2008 में राजशाही खत्म कर दी गई।

लोकतंत्र क्यों हो रहा है फेल?

2008 के बाद नेपाल में बार-बार सरकारें बदली हैं। 16 साल में 10 प्रधानमंत्री बन चुके हैं। राजनीतिक दलों के नेता सिर्फ सत्ता के लिए लड़ते रहे हैं। नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा और माओवादी नेता प्रचंड जैसे नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। केपी शर्मा ओली ने राष्ट्रवाद की बात की, लेकिन चीन की नीतियों के कारण देश संकट में चला गया। मधेशी नेता भी सिर्फ अपने इलाकों की राजनीति तक सीमित रहे। युवाओं की बेरोजगारी, बड़े पैमाने पर विदेश पलायन, और सांस्कृतिक पहचान का संकट इन सब समस्याओं को और बढ़ा रहा है। हिंदू राष्ट्र की पहचान को खत्म किया गया, जिसे बहुत से लोग जबरदस्ती थोपा गया फैसला मानते हैं।

भारत और चीन के बीच उलझा नेपाल

नेपाल की विदेश नीति भी साफ नहीं है। भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने में नेपाल की सरकारें नाकाम रही हैं। संघीय प्रणाली लागू करने में देरी और संवैधानिक संस्थाओं में राजनीतिक दखल से जनता का भरोसा टूट गया है, 2008 में जो धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बना, वह जनता की मर्जी से नहीं बल्कि माओवादी विद्रोह के दबाव में बना था। आज लोग सोचने लगे हैं कि क्या संवैधानिक राजशाही देश के लिए बेहतर विकल्प हो सकती है?

संवैधानिक राजशाही एक नया विकल्प?

संवैधानिक राजशाही का मतलब है, राजा के पास सीमित अधिकार हों और चुनी हुई सरकार काम करे। ब्रिटेन, जापान और थाईलैंड जैसे देशों में यह मॉडल सफल रहा है। अगर नेपाल में ऐसा मॉडल अपनाया जाए, तो इससे क्या फायदे हो सकते हैं?

1. राष्ट्र का प्रतीक: राजा सभी जातियों और समूहों के लिए एक साझा पहचान बन सकते हैं।

2. हिंदू पहचान की रक्षा: देश की पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान को बचाया जा सकता है।

3. राजनीतिक स्थिरता: बार-बार सरकार बदलने की बजाय एक स्थिर प्रणाली बन सकती है।

सरकार के सामने क्या विकल्प हैं?

नेपाल की सरकार को चाहिए कि वह जनता की आवाज को दबाने की बजाय, उनसे बातचीत करे। लोकतंत्र तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसके लिए मजबूत संस्थाएं और ईमानदार नेतृत्व न हो। राजशाही की वापसी का मतलब पुराने निरंकुश राजतंत्र की वापसी नहीं है, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था हो सकती है जो परंपरा और आधुनिक लोकतंत्र के बीच संतुलन बना सके। नेपाल आज एक मोड़ पर खड़ा है। अब यह नेपाल की जनता और नेतृत्व पर है कि वे कौन सा रास्ता चुनते हैं बिखरे हुए लोकतंत्र का, या एक संतुलित और स्थिर राजशाही का।

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Harsh Sharma

Harsh Sharma

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हर्ष नाम है और पत्रकारिता पेशा शौक बचपन से था, और अब रोज़मर्रा की रोटी भी बन चुका है। मुंबई यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में ग्रेजुएशन किया, फिर AAFT से टीवी पत्रकारिता की तालीम ली। करियर की शुरुआत इंडिया न्यूज़ से की, जहां खबरें बनाने से ज़्यादा, उन्हें "ब्रेकिंग" बनाने का हुनर सीखा। इस समय न्यूज़ ट्रैक के लिए खबरें लिख रहे हैं कभी-कभी संजीदगी से, और अक्सर सिस्टम की संजीदगी पर हल्का-फुल्का कटाक्ष करते हुए। एक साल का अनुभव है, लेकिन जज़्बा ऐसा कि मानो हर प्रेस कॉन्फ्रेंस उनका पर्सनल डिबेट शो हो।

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