सतयुग की शुरुआत का दिन: अक्षय नवमी जो देती है अक्षय पुण्य और समृद्धि, जानिए इससे जुड़ी बातें..

Amla Navami 2025 दिवाली के बाद मनाई जाने वाली पवित्र तिथि है, जिसे अक्षय नवमी, इच्छा नवमी, कूष्माण्ड नवमी और आरोग्य नवमी भी कहा जाता है। इस दिन से सतयुग की शुरुआत मानी जाती है। पुराणों के अनुसार, इस दिन किए गए कार्यों का फल अक्षय यानी अविनाशी होता है।

Suman  Mishra
Published on: 30 Oct 2025 5:32 AM IST
सतयुग की शुरुआत का दिन: अक्षय नवमी जो देती है अक्षय पुण्य और समृद्धि, जानिए इससे जुड़ी बातें..
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आंवला नवमी कब है 2025 अक्षय नवमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रेरणा भी है। यह हमें सतयुग के आदर्शो सत्य, करुणा, तप और दान की याद दिलाती है। इस दिन का संदेश है कि अपने जीवन में ईमानदारी, सद्भाव और सेवा का भाव अपनाएँ, तो हर दिन हमारे लिए सतयुग के समान बन सकता है। जिनमें से प्रत्येक का अपना विशिष्ट महत्व होता है।

खास तिथियों में से एक है अक्षय नवमी, जिसे आंवला नवमी, इच्छा नवमी, कूष्मांड नवमी, आरोग्य नवमी और धातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व दिवाली के ठीक दस दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन का महत्व इतना गहरा है कि पुराणों में इसे सतयुग के आरंभ दिवस भी बताया गया है। मान्यता है कि इसी दिन से पृथ्वी पर सत्य, धर्म और सदाचार का युग आरंभ हुआ था।

आंवला नवमी कब है 2025

अक्षय नवमी तिथि – 31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार

पूर्वाह्न पूजन मुहूर्त – सुबह 06:32 बजे से 10:03 बजे तक

नवमी तिथि प्रारंभ – 30 अक्टूबर 2025 को सुबह 10:06 बजे

नवमी तिथि समाप्त – 31 अक्टूबर 2025 को सुबह 10:03 बजे

इस दिन भगवान विष्णु और आंवला वृक्ष की पूजा-अर्चना का विशेष विधान है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत, स्नान, दान या पूजा करता है, उसे अक्षय फल प्राप्त होता है—अर्थात् ऐसा पुण्य जो कभी नष्ट नहीं होता।

अक्षय का मतलब

‘अक्षय’ शब्द संस्कृत के ‘क्षय’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है नाश होना। अतः ‘अक्षय’ का अर्थ हुआ जिसका नाश न हो, जो अनंत और अमर हो। यही कारण है कि इस दिन किए गए शुभ कर्म, दान, पूजा या व्रत का फल कभी नष्ट नहीं होता। यह दिन हमें यह सिखाता है कि सच्चे मन से किया गया हर सत्कर्म अमर हो जाता है, जैसे सतयुग के आदर्श कभी समाप्त नहीं हुए।

सतयुग के शुरुआत की कथा

अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग का आरंभ हुआ था। सतयुग को सत्य और धर्म का युग कहा गया है, जहाँ झूठ, पाप, लालच या हिंसा का अस्तित्व नहीं था। इस युग में धर्म के चारों चरण सत्य, दया, तप और दान स्थिर थे। मानव जीवन पूर्ण रूप से ईश्वरीय नियमों पर आधारित था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, जब ब्रह्मांड में अंधकार और अधर्म बढ़ गया, तब भगवान विष्णु ने सृष्टि में सत्य की पुनर्स्थापना के लिए सतयुग का प्रारंभ इसी दिन किया। यही कारण है कि अक्षय नवमी को सतयुग का जन्मदिन भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के पूजन से व्यक्ति के जीवन में धर्म, सत्य और शांति का संचार होता है।

आंवला नवमी का महत्व

इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि आंवला भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। पद्म पुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु स्वयं आंवले के वृक्ष में निवास करते हैं।जो व्यक्ति इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे पूजा, दान या भोजन करता है, उसे अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। महिलाओं के लिए यह व्रत परिवार की उन्नति, संतान सुख और दीर्घायु का वरदान देने वाला माना गया है।

सुबह स्नान के पश्चात शुद्ध वस्त्र धारण करें।भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।आंवला वृक्ष को जल, रोली, अक्षत और पुष्प अर्पित करें।वृक्ष के चारों ओर सात बार परिक्रमा करें और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।गरीबों को अन्न, वस्त्र और पेठा (कूष्माण्ड) का दान करें।




पेठे का दान क्यों करते हैं?

धर्मानुसार अक्षय नवमी के दिन भगवान विष्णु ने कूष्माण्ड नामक दैत्य का संहार किया था। यह दैत्य अत्याचारी और अहंकारी था, जो देवताओं और मनुष्यों दोनों को सताता था। भगवान विष्णु ने जब उसे मारा, तब उसके शरीर के रोमों से कूष्माण्ड (यानि पेठे) की बेल उत्पन्न हुई। इसी कारण इस दिन को कूष्माण्ड नवमी भी कहा जाता है। इस दिन पेठे का दान करने का विधान है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन कुष्माण्ड का दान करता है, उसे आरोग्य (स्वास्थ्य) और समृद्धि का वरदान मिलता है। इसके साथ ही विष्णु भगवान के आशीर्वाद से उसके घर में कभी अन्न का अभाव नहीं होता।

आंवला नवमी के दिन तर्पण और स्नान-दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। यदि संभव हो, तो इस दिन किसी तीर्थ स्थल पर जाकर गंगा स्नान करना शुभ माना गया है। परंतु जो लोग यात्रा नहीं कर सकते, वे घर पर ही अपने नहाने के पानी में कुछ बूँदें गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है। दान में आंवला, वस्त्र, अन्न, स्वर्ण या दक्षिणा का विशेष महत्व है। इस दिन किए गए दान का फल कई गुना होकर लौटता है, इसलिए इसे अक्षय फलदायी तिथि कहा गया है।

अक्षय नवमी और आरोग्य का संबंध और लाभ

इस तिथि को आरोग्य नवमी भी कहा जाता है क्योंकि आंवले का सेवन और पूजा दोनों स्वास्थ्यवर्धक माने गए हैं। आंवला शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है और इसे आयुर्वेद में ‘अमृतफल’ कहा गया है। इस दिन आंवले से बनी चटनी, मुरब्बा या रस का सेवन करने से दीर्घायु और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

भगवान विष्णु की कृपा से मन की इच्छाएं पूर्ण होती हैं।परिवार में सुख-समृद्धि और सौहार्द बढ़ता है।संतानहीन दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है।पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।शरीर में आरोग्य और मन में स्थिरता आती है। अक्षय नवमी 2025, शुक्रवार 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी। यह दिन न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत शुभ है। भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और आंवला वृक्ष की पूजा करें, दान करें, और अपने जीवन में सद्भाव और सेवा का बीज बोएं।

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Suman  Mishra

Suman Mishra

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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