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अपराजिता देवी (Goddess Aparajita Devi ) की पूजा कब और कैसे करनी चाहिए? जानें
Goddess Aparajita Devi Puja Vidhi: अपराजिता देवी की पूजा का दशहरे पर विशेष महत्व है। जानते है कब कैसे करे अपराजिता देवी की पूजा-विधि, समय, मंत्र और महत्व। मां की पूजा करने सेविजय और सौभाग्य का आशीर्वाद मिलती है ।
Aprajita Devi ki Puja Vidhiअपराजिता देवी की पूजा-विधि : अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साक्षात माता दुर्गा का ही अवतार हैं। देवी अपराजिता के पूजन का आरंभ तब से हुआ है जब से चारों युगों की शुरुआत हुई।दशहरा के दिन दुर्गा मां की विदाई से पहले अपराजिता पूजन किया जाता है. शारदीय नवरात्र अपराजिता पूजन के बिना अधूरा माना जाता हैजानते है कब और कैसे की जाती है अपराजिता देवी की पूजा...
अपराजिता देवी की पूजा-विधि
अपराजिता के पेड़ या उसके फूलों की पूजा दशहरे के दिन करना शुभ माना जाता है। अपराजिता पेड़ या फूल को देवी अपराजिता का रूप माना जाता है। अपराजिता की पूजा करने का सबसे अच्छा समय दोपहर है। जीत के लिए देवी अपराजिता की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं उन्हें विजयादशमी के दिन मां अपराजिता की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
देवी अपराजिता की उपासना के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की विदाई से पूर्व अपराजिता के फूल से मां की पूजा कर उनसे अभयदाय मांगा जाता है। इस तरह की आराधना से देवी प्रसन्न होकर विजयी होने का आर्शीवाद प्रदान करती हैं। साथ ही बंगाल के कुछ हिस्सों में प्रतिमा विसर्जन से पहले सुहागिन औरतें मां दुर्गा को अपना सिंदूर अर्पित कर अक्षय सुहाग की कामना करती हैं। इस तरह विसर्जन यात्रा में महिलाएं सिंदूरखेला करती है। इस प्रकार दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के बाद श्रद्धालुओं पर जल का छिड़काव किया जाता है।
अपराजिता पूजा का मुहूर्त स्वयंद्धि मुहूर्त माना जाता है इसलिए इस मुहूर्त में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। इस दिन अपराजिता स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। अपराजिता के नीले फूल से देवी अपराजिता की पूजा करने से अपराजित रहने का वरदान मिलता है। अपराजिता की पूजा के बाद मांएं अपनी बच्चों की कलाई पर अपराजित की बेल लपेटकर हमेशा उनके दीर्घायु होने का आर्शीवाद देती हैं। इसके बाद अपराजिता के फूलों को स्त्री और पुरुष अपने माथे पर लगाते हैं। इसे सौभाग्य का सूचक माना जाता है।
अपराजिता देवी का मंत्र
अपराजिता देवी भगवान श्री राम ने माता अपराजिता का पूजन करके ही राक्षस रावण से युद्ध करने के लिए विजय दशमी को प्रस्थान किया था। यात्रा के ऊपर माता अपराजिता का ही अधिकार होता है। ज्योतिष के अनुसार माता अपराजिता के पूजन का समय अपराह्न अर्थात दोपहर के तत्काल बाद का है। अत: अपराह्न से संध्या काल तक कभी भी माता अपराजिता की पूजा कर यात्रा प्रारंभ की जा सकती है। यात्रा प्रारंभ करने के समय माता अपराजिता की यह स्तुति करनी चाहिए, जिससे यात्रा में कोई विघ्न उत्पन्न नहीं होता-
शृणुध्वं मुनय: सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम्।
असिद्धसाधिनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।
नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणोज्ज्वलाम्।
बालेन्दुमौलिसदृशीं नयनत्रितयान्विताम्।।
पीनोत्तुङ्गस्तनीं साध्वीं बद्धद्मासनां शिवाम्।
अजितां चिन्येद्देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।
अपराजिता देवी का पूजन करने से देवी समस्त जगत के जीवों के लिए रक्षा कार्य करती है । अष्टदल पर आरूढ़ हुआ यह त्रिशूलधारी रूप शिव के संयोग से, दिक्पाल एवं ग्राम देवता की सहायता से आसुरी शक्तियां अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करता है। दशमी तिथि की संज्ञा 'पूर्ण' है, अत: इस दिन यात्रा प्रारम्भ करना श्रेष्ठ माना जाता है। श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रवण नक्षत्र युक्त विजय दशमी को ही भगवान श्री राम ने किष्किंधा से दुराचारी राक्षस रावण का विनाश करने के लिए हनुमानादि वानरों के साथ प्रस्थान किया था। आज तक रावण वध के रूप में विजय दशमी को अधर्म के विनाश के प्रतीक पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
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