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इस कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल मिलता है, जानिए Aja Ekadash Katha puja vidhi
Aja Ekadashi Katha: अजा एकादशी व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से परमपद की प्राप्ति होती है, जानिए अजा एकादशी की कथा
Bhagwan Vishnu (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Aja Ekadashi Katha भाद्रमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। इस दिन विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिनुसार व्रत रखने, पूजा करने से परमपद की प्राप्ति और वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु के ऋषिकेश स्वरूप की पूजा की जाती है। जानते है इस एकादशी की कथा और पूजा विधि...
अजा एकादशी पूजा विधि
इस दिन सुबह उठकर मिटटी के लेप और कुशा से स्नान करना चाहिए। उसके बाद अजा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा, व्रत, कथा महात्मय सुनने के साथ दान-पुण्य का भी महत्व है। इस दिन पूरे समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए वस्त्र ,चन्दन ,जनेऊ ,गंध, अक्षत ,पुष्प , धूप-दीप नैवेध,पान-सुपारी चढ़ाकर करनी चाहिए। इससे श्रीहरि की कृपा बरसती है। विष्णु पुराण, व गीता के अनुसार अजा एकादशी करने से समस्त भय और पापों से मुक्ति और मधुसुधन की कृपा बरसती है।
पद्मपुराण और भागवत पुराण के अनुसार इस विष्णु भगवान की पूजा ऋषिकेश स्वरूप में करनी चाहिए । क्योंकि मान्यता है कि शयनावस्था में भगवान विष्णु इस समय वामन रुप में रहते हैं । इसलिए इस रुप की विधि-विधान से पूजा करने और फलाहार से इस दिन परमार्थ की प्राप्ति होती है।
इस एकादशी को राजा हरिशचंद्र ने किया था।अजा एकादशी का व्रत जो रखता है, उसे धन की कमी नहीं रहती है, आर्थिक संकट दूर होता है, साथ ही श्रीहरि की कृपा से उसके संतान पर कोई संकट नहीं आता है. इस व्रत को करने से आपको अपना खोया हुआ धन, संपत्ति, गुण आदि की प्राप्ति हो सकती है।
अजा एकादशी व्रत कथा
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की पुण्यकारी एकादशी
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से विनम्र होकर पूछा –
"हे मधुसूदन! कृपया बताइए कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत की विधि और इसके महात्म्य के बारे में विस्तार से बताइए।"
तब भगवान श्रीकृष्ण बोले –
"हे धर्मराज! इस पुण्य एकादशी का नाम अजा एकादशी है। यह सभी पापों का नाश करने वाली, मोक्ष प्रदान करने वाली तथा भगवान विष्णु की विशेष कृपा दिलाने वाली तिथि है। जो भक्त इस दिन श्रद्धा से व्रत करता है और भगवान ऋषिकेश की पूजा करता है, उसे निश्चित ही वैकुंठ की प्राप्ति होती है। अब मैं आपको इसकी एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ।"
प्राचीनकाल में हरिशचंद्र नामक एक प्रतापी और सत्यवादी राजा राज्य करता था। किसी कर्मफलवश उसे अपना सम्पूर्ण राज्य, धन, पत्नी, पुत्र और यहां तक कि स्वयं को भी त्यागना पड़ा। उन्होंने सत्य का पालन करते हुए एक चांडाल को अपना स्वामी बना लिया और श्मशान में मृतकों के वस्त्र इकट्ठा करने का कार्य करने लगे।
राजा हरिशचंद्र को अनेक वर्ष बीत गए, लेकिन उन्होंने कभी सत्य का साथ नहीं छोड़ा। दुख और चिंता में डूबे राजा अक्सर विचार करते कि वह कौन-सा उपाय करें जिससे उनका उद्धार हो सके।
इसी बीच एक दिन महर्षि गौतम राजा के पास आए। राजा ने उन्हें ससम्मान प्रणाम किया और अपने जीवन की सम्पूर्ण पीड़ा उन्हें बताई।
गौतम ऋषि ने कहा –
"हे राजन! तुम्हारे भाग्य से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी आने वाली है। तुम उस दिन विधिपूर्वक व्रत और रात्रि जागरण करो। इस व्रत के पुण्य से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे।"
इतना कहकर ऋषि गौतम अंतर्ध्यान हो गए।
राजा हरिशचंद्र ने बताए अनुसार अजा एकादशी के दिन श्रद्धा और विधि से व्रत किया, जागरण किया और भगवान की पूजा की। इस व्रत के प्रभाव से उनके सभी पाप दूर हो गए।
स्वर्ग में दुंदुभियां बज उठीं, पुष्पों की वर्षा होने लगी। राजा ने देखा कि उसका मरा हुआ पुत्र फिर से जीवित हो गया है और पत्नी सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित हो गई है। उसे अपना खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया।
आखिरकार राजा हरिशचंद्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को प्राप्त हुए।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा –
"हे युधिष्ठिर! यह सब अजा एकादशी के प्रभाव से संभव हुआ। जो भी मनुष्य श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करता है और रात्रि में जागरण करता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में वह स्वर्ग को प्राप्त होता है।
यह व्रत इतना पुण्यदायी है कि इसकी कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है।"
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