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Dhanteras Dhanvantari Puja: स्वास्थ्य और समृद्धि का संदेश
धनतेरस केवल खरीदारी का पर्व नहीं, बल्कि आरोग्य, संतुलन और आत्म-संयम का प्रतीक है
Dhanteras Dhanvantari Puja (image from Social Media)
Dhanteras Dhanvantari Puja: भारत में त्योहार केवल उत्सव नहीं होते — वे जीवन के गहरे अर्थों की याद दिलाते हैं। धनतेरस भी ऐसा ही एक पर्व है, जो दिखने में तो धन और खरीदारी का उत्सव लगता है, लेकिन इसकी जड़ें स्वास्थ्य, संतुलन और आंतरिक समृद्धि में हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि धनतेरस असल में भगवान धन्वंतरि की जयंती है — वे देवताओं के वैद्य, आयुर्वेद के जनक और जीवन-संरचना के प्रतीक माने जाते हैं।
शास्त्रों में जैसे वर्णन मिलता है, देवता और असुरों ने जब समुद्र मंथन किया, तब अमृत प्राप्ति की अभिलाषा में सागर का मंथन हुआ और उसी से भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए — हाथ में अमृत कलश लिए, चार भुजाओं वाले, तेजस्वी और शांत स्वरूप में। वे विष्णु के ही एक रूप हैं, जिन्होंने संसार को यह संदेश दिया कि स्वास्थ्य ही धन है। इसी कारण इस दिन को धनतेरस यानी ‘धन’ (संपन्नता) और तेरस (त्रयोदशी) कहा गया।
अगर ध्यान से देखें, तो धनतेरस का ‘धन’ केवल सोने-चाँदी का नहीं, बल्कि जीवन की ऊर्जा और संतुलन का प्रतीक है। हमारे पूर्वजों ने इस दिन धन्वंतरि की आराधना इसलिए रखी ताकि लोग यह न भूलें कि समृद्धि का मूल शरीर की स्थिरता और मन की शांति में है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन का असली अमृत किसी पात्र में नहीं, हमारे जीवनशैली और दृष्टिकोण में छिपा है।
भगवान धन्वंतरि की पूजा बहुत सहज और अर्थपूर्ण होती है। उनके चित्र या मूर्ति में वे अमृत कलश, शंख, चक्र और औषध धारण किए दिखते हैं। एक हाथ में जलूक या जड़ी-बूटी होती है, जो प्रकृति से प्राप्त चिकित्सा ज्ञान का प्रतीक है। उनके रूप में दिव्यता और वैज्ञानिकता दोनों झलकती हैं — जैसे वे कह रहे हों कि प्रकृति ही सबसे बड़ी औषधशाला है।
उनकी स्तुति में एक प्रसिद्ध श्लोक गाया जाता है:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतराये अमृतकलश हस्ताय
सर्वमय विनाशनाय त्रैलोक्यनाथाय श्रीमहाविष्णवे नमः ॥
यह मंत्र केवल आराधना नहीं, बल्कि एक प्रार्थना है — भीतर के रोगों, थकान और असंतुलन को मिटाने की। आधुनिक जीवन की दौड़ में जब हम समय, नींद और मन का संतुलन खो देते हैं, तब धन्वंतरि की उपासना हमें धीमा होना, सांस लेना और अपने भीतर की ध्वनि सुनना सिखाती है।
आज की दुनिया में, खासकर युवा पीढ़ी — जिसे हम Gen Z कहते हैं — के लिए यह पूजा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। यह पीढ़ी तकनीक और प्रदर्शन की गति में आगे बढ़ रही है, लेकिन आत्म-शांति पीछे छूटती जा रही है। धन्वंतरि पूजा उन्हें याद दिलाती है कि शरीर को थकाकर कोई मंज़िल नहीं मिलती, और सच्ची सफलता वही है जो मन को शांत रखे। यह दिन आत्म-देखभाल और संयम का अवसर है — एक छोटा विराम, जिसमें व्यक्ति स्वयं से जुड़ सके।
धनतेरस के दिन केवल खरीदारी ही नहीं, बल्कि कुछ समय खुद के लिए निकालना भी इस पर्व की आत्मा है। दीपक जलाते समय मन में यह भाव रखना कि - अगले वर्ष मैं अपने स्वास्थ्य, व्यवहार और सोच को बेहतर बनाऊँगा — यही सबसे सच्ची पूजा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसका स्वास्थ्य-संवर्धन संगठन आरोग्य भारती अब देशभर में धन्वंतरि पूजन को जन-आंदोलन के रूप में जोड़ रहे हैं। गाँवों में “धन्वंतरि सेवा यात्रा” के तहत नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं। हजारों स्वयंसेवक लोगों को आयुर्वेद, योग और संतुलित जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। यह दिखाता है कि यह पर्व अब केवल धार्मिक परंपरा नहीं रहा, बल्कि समग्र स्वास्थ्य चेतना का माध्यम बन चुका है।
धनतेरस की आर्थिक हलचल भी हर साल बढ़ती जा रही है। इस वर्ष सोने की कीमत ₹1,30,000 प्रति 10 ग्राम तक पहुँच गई। बाज़ारों में गहनों, वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक्स, बर्तनों और कपड़ों की अभूतपूर्व बिक्री हुई। लेकिन इस पूरे आर्थिक परिदृश्य के बीच यह सोचने की बात है कि क्या हम धनतेरस को केवल उपभोग का पर्व बना रहे हैं, या उसे आत्म-संतुलन का उत्सव भी मानते हैं?
भारतीय दृष्टि में ‘धन’ का अर्थ केवल संपत्ति नहीं, बल्कि साधन-संपन्नता और सामंजस्य है। धन्वंतरि की पूजा इसी दृष्टि को फिर से जीवित करती है — जहाँ धन का उपयोग व्यक्ति के कल्याण और समाज की सेवा के लिए होता है। यह हमें याद दिलाती है कि स्वास्थ्य ही धन है, परंतु धन तभी मूल्यवान है जब वह जीवन में संतुलन और करुणा लाए।
आज के दौर में जब मानसिक बीमारियाँ, चिंता और अवसाद आम हो गए हैं, धनतेरस हमें आत्म-अवलोकन का अवसर देता है। यह कहता है — अपने भीतर की अस्वस्थता को पहचानो, अपने जीवन की गति को संयमित करो, और उस अमृत को खोजो जो भीतर जन्म लेने की प्रतीक्षा में है।
अगर जेनरेशन Z इस पर्व को ‘सेल्फ-केयर डे’ के रूप में मनाना शुरू करे — कुछ समय ध्यान में बैठकर, डिजिटल स्क्रीन से दूर रहकर, या किसी ज़रूरतमंद की मदद करके — तो यह त्योहार अपने मूल स्वरूप को फिर पा सकता है।
अब तो सरकार ने भी धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस घोषित किया है। इसका उद्देश्य है कि आधुनिक भारत अपनी जड़ों से जुड़े और समझे कि आयुर्वेद केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि जीवन की पूर्णता का दर्शन है।
भगवान धन्वंतरि के चित्रों और मूर्तियों में जो तेज, शांति और संतुलन झलकता है, वह केवल सौंदर्य नहीं, एक संदेश है — “रोग केवल शरीर का नहीं, विचारों का भी होता है। विचार बदलो, जीवन बदल जाएगा।” यह वही शिक्षा है जो आज के असंतुलित युग में सबसे आवश्यक है।
धनतेरस हमें यह सिखाता है कि समृद्धि की असली पहचान चमकते गहनों या ऊँची खरीदारी में नहीं, बल्कि उस सहज संतुलन में है जहाँ मन प्रसन्न, विचार निर्मल और शरीर स्फूर्त रहता है। जब हम अपने भीतर की थकान, असंतोष और असंतुलन को पहचान लेते हैं, तभी जीवन में असली उजाला आता है। यह पर्व हमें अपने भीतर के उस ‘अमृत’ को खोजने की प्रेरणा देता है जो हर व्यक्ति के भीतर छिपा है — आत्मानुशासन, संयम और सह-अस्तित्व के रूप में।
भगवान धन्वंतरि का यह संदेश आज के भारत के लिए पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है — कि आयुष्य को लम्बा नहीं, सार्थक बनाओ; धन को साधन बनाओ, साध्य नहीं। इस धनतेरस, अपने जीवन में यही भाव जगाइए — कि हर दिन थोड़ा शांत, थोड़ा स्वस्थ और थोड़ा अर्थपूर्ण बने। यही आधुनिक समय में धनतेरस का गहनतम संदेश है।
(लेखिका दंत चिकित्सक हैं व दिल्ली स्कूल ओफ इकोनोमिक्स से पीएचडी हैं)
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