कार्तिक पूर्णिमा पर खुलेगा सौभाग्य का द्वार, होगा सबका उद्धार,जानें तिथि, व्रत कथा और महत्व

kartik purnima significance जानिए व्रत कथा, पूजा विधि, देव दीपावली का महत्व और त्रिपुरी पूर्णिमा की पौराणिक कथा। 5 नवंबर को मनाया जाएगा यह शुभ पर्व।

Suman  Mishra
Published on: 3 Nov 2025 12:48 PM IST
कार्तिक पूर्णिमा पर खुलेगा सौभाग्य का द्वार, होगा सबका उद्धार,जानें तिथि, व्रत कथा और महत्व
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Kartik Poornima कार्तिक पूर्णिमा इस वर्ष बुधवार, 5 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी। यह दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को पड़ता है, जो भगवान विष्णु, भगवान शिव और देवी लक्ष्मी को समर्पित मानी जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि आध्यात्मिक उत्थान और पुण्य कर्म के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है।

यह दिन अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। कार्तिक मास को स्वयं भगवान विष्णु का प्रिय महीना कहा गया है, और इस दिन गंगा स्नान, दीपदान तथा दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। जो व्यक्ति कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान, व्रत और दान करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस दिन गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, शांति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।

कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा (Kartik Purnima Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले तारकासुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली दैत्य था। उसने अपने बल से तीनों लोकों स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल में आतंक मचा दिया था। देवताओं ने उससे त्रस्त होकर भगवान शिव से उसकी मुक्ति की प्रार्थना की। शिवजी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और तारकासुर का वध किया।

तारकासुर के तीन पुत्र थे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। पिता की मृत्यु से तीनों अत्यंत क्रोधित हुए और प्रतिशोध लेने के लिए ब्रह्माजी की घोर तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें वरदान माँगने को कहा। तीनों ने कहा हे प्रभु, हमें अमरता का वरदान दीजिए। ब्रह्माजी ने मुस्कुराते हुए कहा कि यह संभव नहीं है, कोई भी जीव अमर नहीं हो सकता। तब तीनों ने थोड़ी देर विचार कर कहा प्रभु, हमारे लिए तीन ऐसे नगर बना दीजिए, जिनमें रहकर हम पृथ्वी, आकाश और पाताल में विचरण कर सकें। जब एक हजार वर्षों के बाद ये तीनों नगर एक सीध में आ जाएँ, तभी कोई देवता यदि एक ही बाण से हमें मार सके, तो वही हमारी मृत्यु का कारण बनें।

यह वरदान लगभग असंभव था, इसलिए ब्रह्माजी ने यह वरदान दे दिया। उन्होंने मयदानव को आदेश दिया कि वह तीनों नगरों का निर्माण करे। मयदानव ने तारकाक्ष के लिए सोने का, कमलाक्ष के लिए चाँदी का, और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया। ये तीनों नगर आकाश में विचरते रहते थे, इसलिए इन्हें त्रिपुर कहा गया। इन नगरों में रहकर तीनों भाइयों ने अत्याचार बढ़ा दिए और तीनों लोकों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।

देवता भयभीत होकर पुनः भगवान शिव की शरण में पहुँचे। तब भगवान शिव ने देवताओं को आश्वस्त किया कि वे शीघ्र ही त्रिपुरासुरों का अंत करेंगे। इसके लिए देवताओं ने मिलकर एक दिव्य रथ का निर्माण किया, जिसका प्रत्येक भाग देवताओं द्वारा बनाया गया। सूर्य और चंद्रमा रथ के पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के घोड़े बने, हिमालय धनुष बना और शेषनाग उसकी डोरी बना। अग्निदेव बाण का अग्रभाग बने और स्वयं भगवान शिव उस दिव्य रथ के सारथी बने।

जब तीनों दैत्य अपने-अपने नगरों में विचर रहे थे, तब देवताओं और शिवजी की सेना ने युद्ध प्रारंभ किया। युद्ध के दौरान एक क्षण ऐसा आया जब तीनों नगर एक सीध में आ गए ।ठीक वही क्षण था जब भगवान शिव ने अपना बाण चढ़ाया और एक ही वार में तीनों नगरों का संहार कर दिया। उसी क्षण भगवान शिव त्रिपुरारि (त्रिपुरों का नाश करने वाले) के नाम से प्रसिद्ध हुए।

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

त्रिपुरी पूर्णिमा या कार्तिक पूर्णिमा का यह दिन अहंकार, अधर्म और अंधकार के अंत का प्रतीक है।कार्तिक पूर्णिमा का यह पर्व अहंकार और असत्य के विनाश तथा सत्य और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। भगवान शिव का यह स्वरूप यह सिखाता है कि जब अधर्म अपने चरम पर होता है, तब परमात्मा स्वयं धर्म की रक्षा के लिए आते है। इस दिन दीपदान, दान-पुण्य और भगवान शिव व विष्णु की पूजा करने का विधान है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन दीप जलाकर भगवान शिव, विष्णु या गंगा माता की आराधना करता है, उसके जीवन में दिव्य प्रकाश का संचार होता है और सभी बाधाएँ दूर होती हैं।


कार्तिक पूर्णिमा पर क्या करें

सूर्योदय से पूर्व पवित्र नदी या घर में स्नान करें।भगवान विष्णु, शिव और लक्ष्मी की संयुक्त पूजा करें।तुलसी के पौधे के समक्ष दीपक जलाएँ।गरीबों को भोजन, वस्त्र और दान दें।रात्रि में दीपदान कर देव दीपावली का पर्व मनाएँ।इस प्रकार, कार्तिक पूर्णिमा न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है बल्कि यह जीवन में प्रकाश, शांति और आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक भी है। इस दिन का पालन श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से मनुष्य के जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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Suman  Mishra

Suman Mishra

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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