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चुनाव से पहले नीतीश का सबसे बड़ा दांव! 400 से सीधे ₹1100... वोट बैंक पर कब्जे की तैयारी? एक झटके में करोड़ों बुजुर्गों को बनाया अपना
Nitish Kumar pension hike: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सूबे की राजनीति में हलचल तेज़ हो चुकी है, और इस बार नीतीश ने ऐसा तीर चलाया है कि विरोधी खेमा संभल ही नहीं पा रहा। राजनीति के इस सबसे बड़े ‘टाइमिंग गेम’ में अब नीतीश कुमार ने उस वर्ग को साध लिया है, जिसके सहारे चुनावी नैया पार लगाने की उम्मीद की जा रही है—वृद्ध, विधवा महिलाएं और दिव्यांगजन।
Nitish Kumar pension hike: बिहार की सियासत इस वक्त उबाल पर है। एक तरफ नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार बिहार को विकास का मॉडल बनाने की कोशिश कर रही है, तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार चुनावी बिसात पर चालें बिछा रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सूबे की राजनीति में हलचल तेज़ हो चुकी है, और इस बार नीतीश ने ऐसा तीर चलाया है कि विरोधी खेमा संभल ही नहीं पा रहा। राजनीति के इस सबसे बड़े ‘टाइमिंग गेम’ में अब नीतीश कुमार ने उस वर्ग को साध लिया है, जिसके सहारे चुनावी नैया पार लगाने की उम्मीद की जा रही है—वृद्ध, विधवा महिलाएं और दिव्यांगजन। जी हां, चुनावी साल में नीतीश सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बंपर बढ़ोतरी कर दी है। जहां पहले 400 रुपये महीना पेंशन मिलती थी, अब उसे सीधे 1100 रुपये कर दिया गया है। यानी एक झटके में 175% बढ़ोतरी। और सबसे बड़ी बात—ये सब कुछ चुनाव से ठीक पहले! यही वजह है कि अब बिहार में इस फैसले के बाद राजनीतिक सरगर्मी चरम पर पहुंच गई है।
'बूढ़ों की लाठी' बनेंगे नीतीश?
नीतीश कुमार ने खुद सोशल मीडिया पर इसका ऐलान किया। एक्स (पुराना ट्विटर) पर पोस्ट डालते हुए नीतीश ने लिखा—"मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के तहत सभी वृद्धजनों, दिव्यांगजनों और विधवा महिलाओं को अब हर महीने 400 रुपये की जगह 1100 रुपये पेंशन मिलेगी। सभी लाभार्थियों को जुलाई महीने से पेंशन बढ़ी हुई दर पर मिलेगी।" यह कोई साधारण घोषणा नहीं थी। नीतीश कुमार इस फैसले के जरिए बिहार की राजनीति में 'बूढ़ों की लाठी' बनने की तैयारी कर रहे हैं। बिहार में करीब 1 करोड़ 9 लाख 69 हजार लोग इस योजना से जुड़े हुए हैं। यानी हर पांचवां बिहारी इस स्कीम से फायदा पाएगा। साफ है कि नीतीश कुमार ने यह कदम सोच-समझकर उठाया है। इतना ही नहीं, सरकार ने वादा किया है कि यह पैसा हर महीने की 10 तारीख तक लाभार्थियों के खाते में पहुंच जाएगा। विपक्ष लगातार नीतीश सरकार पर आरोप लगाता रहा है कि योजनाओं की राशि समय से नहीं पहुंचती, लेकिन इस बार नीतीश ने खुद आगे आकर ‘डेट फिक्सिंग’ कर दी है—10 तारीख!
चुनावी दांव या जनकल्याण? विपक्ष में मचा हड़कंप
अब सवाल यह उठता है कि क्या यह वाकई में जनकल्याणकारी फैसला है या फिर चुनावी दांव? विपक्ष तो इस फैसले पर पहले ही सवाल उठा रहा है। आरजेडी और कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ने पिछले तीन सालों से इस स्कीम पर कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन चुनाव आते ही उन्हें गरीबों और बुजुर्गों की याद आ गई। वहीं जेडीयू के नेता साफ कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ने हमेशा गरीबों और सामाजिक सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। यह फैसला भी उसी नीति का हिस्सा है। दरअसल, नीतीश जानते हैं कि इस बार चुनावी मुकाबला बेहद कांटे का होगा। बीजेपी, आरजेडी, कांग्रेस—सब पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरेंगे। ऐसे में बुजुर्गों, विधवाओं और दिव्यांगों को साधना राजनीतिक रूप से मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है। इन वर्गों का असर हर जाति और हर इलाके में है। कोई भी दल इन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता।
बिहार की राजनीति में नया मोड़
बिहार में इस फैसले के बाद माहौल गरम है। विरोधी खेमे में बेचैनी है तो जेडीयू खेमे में उत्साह। सोशल मीडिया पर भी इस फैसले की जमकर चर्चा हो रही है। बिहार की सियासी जमीन पर नीतीश ने यह बताने की कोशिश की है कि वह अभी भी ‘राजनीति के पेंशनधारी’ नहीं बने हैं, बल्कि चुनावी मैदान में पूरी ताकत से डटे हुए हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष इसका जवाब किस तरह देता है और क्या बुजुर्ग, विधवा और दिव्यांग मतदाता वाकई नीतीश के इस दांव पर भरोसा जताएंगे या नहीं। साफ है, बिहार का चुनावी रण अब सिर्फ नारों का नहीं, जेब में पहुंचे पैसों का भी युद्ध बन चुका है।
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