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बिहार की वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम गायब! पटना से मधुबनी तक मचा हड़कंप, नेपाल कनेक्शन ने बढ़ाई टेंशन
Bihar voter list controversy: चुनाव आयोग ने जब नई वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट जारी किया तो लोग हैरान रह गए। पूरे राज्य में 7.2 करोड़ वोटरों में से करीब 65 लाख लोगों के नाम काट दिए गए हैं।
Bihar voter list controversy: सोचिए आप सुबह उठते हैं अखबार खोलते हैं और अचानक पता चलता है कि आप अब "वोटर" नहीं हैं। जी हां बिहार में कुछ ऐसा ही हुआ है। चुनाव आयोग ने जब नई वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट जारी किया तो लोग हैरान रह गए। पूरे राज्य में 7.2 करोड़ वोटरों में से करीब 65 लाख लोगों के नाम काट दिए गए हैं। इस चौंकाने वाली संख्या ने न सिर्फ आम जनता को परेशान कर दिया बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हड़कंप मचा दिया है। ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं ये उन लोगों की पहचान है जो लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताक़त वोट डालने के अधिकार से अचानक वंचित कर दिए गए हैं। और हैरानी की बात ये है कि इसमें केवल वे लोग नहीं हैं जो दुनिया से जा चुके हैं बल्कि जिंदा लोग भी इस सूची से बाहर हो गए हैं। कहीं माइग्रेशन तो कहीं नेपाल से जुड़ी रिश्तेदारियां हर कारण एक नई बहस को जन्म दे रहा है।
पटना में सबसे बड़ा ‘काट’
राजधानी पटना इस पूरी लिस्ट में सबसे ऊपर है लेकिन वोटरों की संख्या में नहीं बल्कि सबसे ज्यादा नाम कटने के मामले में। अकेले पटना के 14 विधानसभा क्षेत्रों में करीब 3.95 लाख वोटरों के नाम ड्राफ्ट लिस्ट से हटा दिए गए हैं। BLO यानी बूथ लेवल ऑफिसर्स जब घर-घर सर्वे करने निकले तो कई घरों में ताले लटके मिले। कुछ लोग दूसरी जगह शिफ्ट हो चुके थे कई किराए के मकान बदल चुके थे और कुछ तो गांव लौट गए थे। BLOs ने फॉर्म भरवाने की भरपूर कोशिश की यहां तक कि स्वच्छता कार्यकर्ताओं को भी इसके लिए लगाया गया लेकिन फिर भी बड़ी तादाद में लोग छूट गए। नतीजा ये कि पटना के हजारों वोटर अब “गायब वोटर” की कैटेगरी में आ गए हैं।
मधुबनी दरभंगा और गोपालगंज में भी कम हुए वोटर
बिहार के उत्तर और सीमावर्ती जिलों में भी कुछ इसी तरह की तस्वीर सामने आई है। दरभंगा में करीब 2 लाख मधुबनी में 3.5 लाख और गोपालगंज में लगभग 3.1 लाख वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं। BLOs के अनुसार इन इलाकों से बड़ी संख्या में लोग दूसरे राज्यों या शहरों में अस्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं। ऐसे में जब घर पर कोई नहीं मिला तो नाम हटा दिया गया। कई लोग अब जागे हैं और शिकायत कर रहे हैं कि उनका नाम मृतकों की लिस्ट में दर्ज हो गया है जबकि वे ज़िंदा हैं!
नेपाल कनेक्शन और विदेशी फैक्टर
इस बार की वोटर लिस्ट में एक और खास बात सामने आई है – नेपाल कनेक्शन। बिहार के सीमांचल जिलों जैसे सीतामढ़ी सुपौल चंपारण अररिया और पूर्णिया में कई ऐसे वोटर थे जिनका संबंध नेपाल बांग्लादेश या म्यांमार से रहा है। BLOs ने दावा किया है कि कई परिवार नेपाल में बसे हैं लेकिन बिहार में वोटर लिस्ट में नाम शामिल था। कुछ ऐसी भी महिलाएं थीं जिनका ससुराल बिहार में है लेकिन वे नेपाल की नागरिक हैं। इन सभी को ‘संभावित विदेशी’ मानते हुए नाम काट दिए गए हैं। इससे कई गांवों में राजनीतिक तनाव और असंतोष बढ़ गया है।
ये सिर्फ लिस्ट नहीं भरोसे का सवाल है
बिहार में वोटर लिस्ट से नाम कटने का मामला अब सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाए हैं कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में नाम कैसे काटे गए वो भी बिना सही जांच के? दूसरी तरफ चुनाव आयोग दावा कर रहा है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी रही है और अब दावे–आपत्तियां ली जा रही हैं। लेकिन असली सवाल यह है, क्या जिनका नाम काटा गया वे जान भी पाएंगे? क्या उन्हें दोबारा जोड़ने की प्रक्रिया आसान होगी?
आने वाले चुनाव में असर तय
चाहे वो 2025 के विधानसभा चुनाव हों या फिर 2029 का लोकसभा चुनाव वोटर लिस्ट में 65 लाख नामों का कटना सीधे-सीधे राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेगा। हर पार्टी की नज़र अब इन आंकड़ों पर टिकी है। बिहार की सियासत में जहां जातीय और क्षेत्रीय समीकरण बेहद अहम होते हैं वहां इतनी बड़ी वोटर कटौती एक बड़ा ‘चुनावी विस्फोट’ साबित हो सकती है।
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