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बिहार की वोटर लिस्ट पर बवाल! संसद से विधानसभा तक हंगामा, राहुल-अखिलेश सड़क पर, चुनाव आयोग पर विपक्ष का बड़ा वार
Bihar voter list Row: बिहार की वोटर लिस्ट को लेकर मचा बड़ा बवाल! संसद से लेकर विधानसभा तक विपक्ष का जोरदार हंगामा, राहुल गांधी और अखिलेश यादव सड़कों पर उतरे।
Bihar voter list Row: बिहार की राजनीति इस समय उबाल पर है। वोटर लिस्ट की समीक्षा को लेकर जो विवाद शुरू हुआ वह अब संसद से लेकर बिहार विधानसभा तक बवाल का रूप ले चुका है। मंगलवार को संसद भवन के मकर द्वार पर जो नज़ारा दिखा वह असाधारण था हाथों में पोस्टर नारों की गूंज और विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे धरने पर बैठे। राहुल गांधी अखिलेश यादव समेत कई विपक्षी सांसदों ने एक सुर में इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया। बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया ने विपक्षी खेमे में खलबली मचा दी है। आरोप है कि यह कवायद गरीब प्रवासी और हाशिये पर खड़े समुदायों के वोट काटने की एक “सुनियोजित साजिश” है। जहां सत्ता पक्ष इसे एक "नियमित प्रक्रिया" बता रहा है वहीं विपक्ष इसे "वोट चुराने की चाल" कह रहा है।
संसद के बाहर राहुल-अखिलेश का हुंकार
मंगलवार को जैसे ही संसद की कार्यवाही शुरू हुई विपक्षी सांसद हाथों में पोस्टर लेकर आसन के पास पहुंच गए। दो मिनट में ही कार्यवाही स्थगित कर दी गई। इसके बाद संसद भवन के मकर द्वार पर विपक्षी नेताओं ने जमकर नारेबाजी की। राहुल गांधी ने कहा “यह सिर्फ वोट की लड़ाई नहीं लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है। गरीबों आदिवासियों और मजदूरों की आवाज़ को दबाने की कोशिश की जा रही है।” अखिलेश यादव ने भी तीखे शब्दों में कहा “चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है लेकिन उसका इस्तेमाल अब राजनीतिक हितों के लिए किया जा रहा है। एसआईआर के नाम पर असल में वोट की चोरी की जा रही है। यह जनादेश को तोड़ने की कोशिश है।”
बिहार विधानसभा के बाहर भी विरोध
दिल्ली की संसद के बाहर जितना जोरदार प्रदर्शन था उतना ही आक्रामक नज़ारा बिहार विधानसभा के बाहर भी दिखा। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष राबड़ी देवी खुद प्रदर्शन में शामिल हुईं। उनके साथ राजद कांग्रेस और वाम दलों के विधायक मौजूद थे। राबड़ी देवी ने साफ कहा “एसआईआर पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। इसका मकसद खास वर्गों को वोटर लिस्ट से बाहर करना है।” प्रदर्शनकारियों ने न्यायिक जांच की मांग की और आरोप लगाया कि यह कवायद सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहने वाली बल्कि इसे पूरे देश में लागू करने की तैयारी है।
विपक्ष ने क्यों बताया इसे 'वोट चुराने की चाल'?
कांग्रेस सांसद सप्तगिरी शंकर उल्का ने कहा कि “यह प्रक्रिया दरअसल गरीबों दलितों और आदिवासियों को मतदाता सूची से हटाने की साजिश है। जिस तरह से महाराष्ट्र और हरियाणा में गड़बड़ी हुई अब वही स्क्रिप्ट बिहार में दोहराई जा रही है। हम बार-बार स्थगन प्रस्ताव इसलिए ला रहे हैं ताकि इस पर सदन में खुली चर्चा हो।” लोकसभा में कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने भी इस मुद्दे पर नोटिस दिया लेकिन सरकार की ओर से कोई सीधा जवाब नहीं आया। राज्यसभा में विपक्ष ने नियम-267 के तहत एसआईआर पर चर्चा की मांग की थी लेकिन उपसभापति हरिवंश ने 12 सूचनाओं को खारिज कर दिया जिससे विपक्ष और भड़क गया।
क्या है SIR और क्यों हो रहा है विवाद?
चुनाव आयोग की यह विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया यानी SIR मतदाता सूची को “अपडेट” करने के नाम पर की जा रही है। आयोग का दावा है कि इससे वोटर डेटा और अधिक सटीक होगा। लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह “डेटा क्लींजिंग” असल में एक रणनीति है जिसके ज़रिए कुछ समुदायों को मतदाता सूची से बाहर करने की तैयारी हो रही है। खासकर प्रवासी मज़दूर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवार और अल्पसंख्यक समुदाय इस प्रक्रिया के केंद्र में हैं। विपक्ष का कहना है कि इन तबकों की पहचान कर उनके वोट काटने की तैयारी की जा रही है।
सत्ता पक्ष ने दिया जवाब तेजस्वी पर तंज
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए पलटवार किया। उन्होंने कहा “क्या 2003 में जब वोटर लिस्ट की समीक्षा हुई थी तब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री थे? तब तो यही प्रक्रिया थी फिर अब क्यों हंगामा? तेजस्वी यादव और उनके साथी सिर्फ डर का माहौल बना रहे हैं।” गिरिराज सिंह ने यहां तक कह दिया कि “तेजस्वी यादव को रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों की चिंता है। इसलिए वो परेशान हैं कि कहीं उनकी फर्जी वोटिंग बंद न हो जाए।” इस बयान ने विवाद को और भड़का दिया।
वोटर लिस्ट की समीक्षा बन रही चुनावी मुद्दा
बिहार की राजनीति एक बार फिर से अस्थिरता की तरफ बढ़ती दिख रही है। विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और वोटर लिस्ट की समीक्षा को लेकर मचा बवाल अब एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है। विपक्ष जहां इस मुद्दे को लोकतंत्र और संविधान की लड़ाई बता रहा है वहीं सत्ता पक्ष इसे “कानूनी प्रक्रिया” करार दे रहा है। लेकिन बड़ा सवाल यही है क्या वाकई एसआईआर के ज़रिए बिहार के लाखों मतदाताओं को सूची से बाहर किया जा रहा है? क्या चुनाव आयोग निष्पक्ष है या राजनीतिक दबाव में? क्या यह मामला न्यायिक जांच तक पहुंचेगा?।
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