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NDA के सीट शेयरिंग से तेजस्वी को हुआ बड़ा फायदा, मुकेश सहनी को जोरदार झटका, समझिए कैसे
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA के सीट बंटवारे ने तेजस्वी यादव को बड़ा फायदा पहुंचाया, जबकि मुकेश सहनी के दबाव में कमी आई। जानें कैसे BJP-जेडीयू की बराबरी और लोजपा की सीटों ने सियासी समीकरण बदले।
NDA seat sharing update: बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने सीट बँटवारे का ऐलान कर चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने की एक बड़ी बढ़त बना ली है। रविवार को भाजपा, जदयू और चिराग पासवान की पार्टी ने सीट बँटवारे पर सहमति बनाकर घोषणा कर दी कि भाजपा और जदयू दोनों 101-101 सीटों पर लड़ेंगे, जबकि लोजपा-रामविलास को 29 सीटें मिली हैं। इस कदम का सीधा उद्देश्य प्रचार में तेजी लाना और विरोधियों पर दबाव बनाना था, लेकिन NDA की इस कोशिश ने महागठबंधन को भी एक अचानक और बड़ी राहत दे दी है।
मुकेश सहनी का 'डेप्युटी CM' वाला दबाव खत्म
महागठबंधन में यह राहत विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी के रूप में मिली है, जो पिछले कई दिनों से गठबंधन पर लगातार दबाव बना रहे थे। मुकेश सहनी लगातार अधिक सीटों की मांग कर रहे थे। इसके अलावा, उनकी सबसे बड़ी मांग यह थी कि चुनाव में उतरने से पहले राजद की ओर से यह घोषित किया जाए कि महागठबंधन की सरकार बनने पर वह उपमुख्यमंत्री (Deputy CM) बनेंगे। तेजस्वी यादव इस मांग के लिए राजी नहीं दिखते थे। सहनी ने तो यहाँ तक कहा था कि भले ही उनकी पार्टी को 14 सीट मिलें या फिर 44, लेकिन डिप्टी सीएम का पद उन्हें ही मिलना चाहिए, क्योंकि उनका समुदाय उन्हें इस पद पर देखना चाहता है।
NDA के ऐलान ने सहनी के लिए दरवाज़े किए बंद
राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता, लेकिन NDA द्वारा सीट बँटवारे का ऐलान कर दिए जाने के बाद मुकेश सहनी के लिए पाला बदलना अब बेहद मुश्किल हो गया है। सहनी के पास अब NDA में शामिल होने का कोई ठोस आधार नहीं बचा है, क्योंकि वहाँ पहले ही सभी सीटें आवंटित हो चुकी हैं। इस स्थिति से तेजस्वी यादव और कांग्रेस को बड़ी राहत मिली है, और वे मुकेश सहनी के लगातार बढ़ते दबाव से निपटने में थोड़ा मजबूत महसूस कर रहे होंगे। अब महागठबंधन के लिए सीट बँटवारे पर सहनी से बातचीत करना अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा।
NDA में बढ़ी भाजपा की ताकत
बिहार चुनाव में पहली बार भाजपा और जेडीयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इस लिहाज से भाजपा ने सीट बँटवारे का ऐलान पहले करा लिया है और बराबर सीटें पाकर गठबंधन में अपनी बढ़ती ताकत का स्पष्ट संकेत दिया है। इससे पहले तक जेडीयू ही 'बड़े भाई' की भूमिका में थी और बीजेपी से ज़्यादा सीटों पर लड़ती थी। लेकिन अब 20 साल बाद बीजेपी जेडीयू के सामने बराबरी की भूमिका में खड़ी है। माना जा रहा है कि बीजेपी ने 2020 के स्ट्राइक रेट का हवाला देते हुए बराबर सीटें ली हैं। 2020 में जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़कर 43 पर जीत पाई थी, जबकि भाजपा ने 110 पर लड़कर 74 सीटें जीती थीं।
लोजपा-रामविलास को भी 29 सीटें मिली हैं, जो काफी अधिक हैं। माना जा रहा है कि इन सीटों पर उसके सिंबल पर भाजपा से जुड़े लोगों को भी चुनाव लड़ाया जा सकता है, जो भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। फिलहाल, NDA खेमा ज्यादा सधा हुआ और एकजुट लग रहा है, जिसने सीट बँटवारे का विवाद जल्द ही सुलझा लिया है, लेकिन मुकेश सहनी की दबाव की राजनीति कम होने से महागठबंधन भी अंदरूनी राहत महसूस कर रहा है, जिससे उसके लिए भी अपने शेष सीट बँटवारे को अंतिम रूप देना आसान हो सकता है।
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