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नीतीश को 'चुनाव से पहले' ही मिल गए 'आधे वोट'! बिहार चुनाव में खेला एक 'बड़ा दांव' और पलट गई पूरी राजनीति

Bihar Politics: 2025 में चुनाव की आहट के साथ ही फिर से नितीश सरकार महिलाओं के दरवाज़े पर दस्तक दे रही है, इस बार 35% आरक्षण की सौगात देकर लेकिन सवाल है क्या महिलाएं फिर से ताली बजाएंगी? या फिर इस बार वे ताली नहीं ठोकर मारेंगी?

Harsh Srivastava
Published on: 8 July 2025 3:43 PM IST
नीतीश को चुनाव से पहले ही मिल गए आधे वोट! बिहार चुनाव में खेला एक बड़ा दांव और पलट गई पूरी राजनीति
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Bihar Politics: बिहार की राजनीति एक बार फिर औरतों के कंधों पर टिकी नज़र आ रही है। 2020 में मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने जब2015-16 की थी तो पूरे प्रदेश की महिलाएं सड़कों पर ताली बजा रही थीं। “पति अब पिएगा नहीं घर में शांति आएगी” यही उम्मीद लेकर उन्होंने नितीश के कदम को सराहा। 2020 में जब चुनाव आया तो महिलाओं ने बढ़-चढ़कर वोट डाला पुरुषों से भी ज़्यादा और परिणाम सामने था भारी मतों से नितीश कुमार ने जीत दर्ज की।अब 2025 में चुनाव की आहट के साथ ही फिर से नितीश सरकार महिलाओं के दरवाज़े पर दस्तक दे रही है इस बार 35% आरक्षण की सौगात देकर लेकिन सवाल है क्या महिलाएं फिर से ताली बजाएंगी? या फिर इस बार वे ताली नहीं ठोकर मारेंगी?

2020 में जब महिलाएं बनी ताक़त

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने इतिहास रच दिया था। पहली बार महिला वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से ज़्यादा हो गया था महिलाओं का वोट प्रतिशत 59.7% जबकि पुरुषों का 54.6%। ये सिर्फ आंकड़े नहीं थे ये उस भरोसे की बुनियाद थे जो शराबबंदी जैसे फैसलों ने महिलाओं में जगाया था। और यही भरोसा सत्ता में तब्दील हो गया।

2025 नई उम्मीद या पुरानी स्क्रिप्ट?

विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले नितीश कुमार ने बड़ा ऐलान कर दिया सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35% क्षैतिज आरक्षण मिलेगा। अब यह आरक्षण केवल स्थाई रूप से बिहार में रहने वाली महिलाओं को मिलेगा। यानी बाहर से आने वाली शादीशुदा महिलाएं या प्रवासी परिवारों की बेटियां इस सुविधा से वंचित रहेंगी। सरकार का दावा है कि यह कदम शिक्षा स्वास्थ्य पंचायत और पुलिस विभाग जैसी नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी को मजबूत बनाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि यह निर्णय सिर्फ आरक्षण नहीं बल्कि ‘रोज़गार की राह’ है। पर असली सवाल यह है क्या महिलाएं इसे समझेंगी? या फिर वे इस फैसले को एक और चुनावी नौटंकी मानकर खारिज कर देंगी?

सर्वे की सच्चाई, महिला वोट किसके साथ है?

हाल ही के चुनावी सर्वे (InkInsight) के मुताबिक NDA को महिला वोटर में 54.7% समर्थन मिल रहा है जबकि महागठबंधन को सिर्फ 31.2%। इसका मतलब ये है कि अभी तक महिलाएं NDA की ओर झुकी हुई हैं। लेकिन ये समर्थन स्थायी नहीं है। महिलाएं अब योजनाओं से नहीं परिणामों से प्रभावित होती हैं। उन्हें आरक्षण चाहिए लेकिन साथ में रोज़गार की गारंटी प्रशिक्षण के अवसर और कार्यस्थलों पर सुरक्षा भी। अगर यह आरक्षण सिर्फ चुनावी हथकंडा बनकर रह गया तो महिलाएं इस बार जवाब भी ज़ोरदार दे सकती हैं।

महिला वोट का बढ़ता वर्चस्व: 2020 से 2024 तक


वर्ष

महिला मतदान (%)

पुरुष मतदान (%)

2020

59.7%

54.6%

2024

59.45%

53%

इन आंकड़ों से साफ़ है कि बिहार की महिलाएं अब चुनावों की निर्णायक शक्ति बन चुकी हैं। ये कोई रहस्य नहीं कि बिहार का सामाजिक ताना-बाना आज भी पितृसत्ता से प्रभावित है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की राजनीतिक जागरूकता और हिस्सेदारी में जबरदस्त उछाल आया है। अगर 2025 में महिला वोटर 60% से ज़्यादा भागीदारी दिखाती हैं तो किसी भी पार्टी का गणित बदल सकता है खासकर तब जब उनकी प्राथमिकता ‘सुरक्षा और सम्मान’ से हटकर ‘रोज़गार और परिणाम’ पर हो।

आरक्षण का सच, समाधान या छलावा?

35% आरक्षण सिर्फ एक घोषणा नहीं बल्कि एक प्रशासनिक चुनौती है। क्या सरकार वाकई इतने पदों को भरने की तैयारी कर चुकी है? क्या पंचायतों से लेकर पुलिस भर्ती तक महिलाओं को सक्षम बनाकर उन पदों तक पहुंचाया जाएगा? बिहार की महिलाएं अब प्रशिक्षण और स्किल डेवलपमेंट की बात कर रही हैं। महज़ आरक्षण से कुछ नहीं होगा जब तक महिलाएं interview में हिचकें online form से घबराएं और डिजिटल दुनिया में पिछड़ जाएं। यानी अगर सरकार इस आरक्षण के साथ रोज़गार सेवाएं प्रशिक्षण कार्यक्रम और स्थानीय मदद केंद्र नहीं जोड़ती तो यह फैसला सिर्फ इलेक्शन टाइम शो बनकर रह जाएगा।

क्या नितीश फिर से खेल जाएंगे मास्टरस्ट्रोक?

अगर नितीश कुमार यह मानते हैं कि महिलाएं सिर्फ भावनाओं से वोट करेंगी तो शायद वे इस बार चूक सकते हैं। लेकिन अगर वे यह समझें कि महिलाएं अब फायदे स्थिरता और अधिकारों को लेकर सजग हैं तो उन्हें आशा और अवसर दोनों देना होगा। महिलाओं को अब ‘शराबबंदी’ जैसा नैतिक साहस नहीं बल्कि ‘रोज़गारबंदी’ का तोड़ चाहिए। उन्हें सुरक्षित यात्रा कॉलेज में लैपटॉप नौकरी में भर्ती और मातृत्व सुरक्षा चाहिए। ये बातें अगर नितीश सरकार अगले कुछ महीनों में ज़मीन पर दिखा दे तो फिर ताली बजेगी और इस बार वोट भी पड़ेगा।

महिलाएं स्वागत करेंगी या दरवाज़ा बंद करेंगी?

बिहार की राजनीति में महिलाएं अब केवल भीड़ नहीं बल हैं। वे अब सिर्फ साड़ी में रैली का हिस्सा नहीं बल्कि सरकार तय करने वाली वोटर ब्लॉक बन चुकी हैं। 2025 में अगर नितीश का आरक्षण ‘आश्वासन’ नहीं बल्कि असरदार योजना बनता हैतो शायद वे महिला वोट की नाव पार कर सकते हैं।

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Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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