अमेरिका पर बढ़ेगा दबाव, भारत-चीन-रूस की तिकड़ी बदल सकती है वैश्विक खेल!

SCO सम्मेलन में भारत, चीन और रूस की आर्थिक एकजुटता, ट्रंप के टैरिफ का संभावित जवाब।

Sonal Girhepunje
Published on: 1 Sept 2025 1:20 PM IST
India China Russia Alliance
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India China Russia Alliance: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारी टैरिफ पॉलिसी ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को झटका दिया है। खासकर भारत को कुछ उत्पादों पर 50% तक कर झेलना पड़ रहा है। ऐसे माहौल में चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन ने एक नई तस्वीर पेश की।

इस सम्मेलन में भारत, चीन और रूस जैसे तीनों बड़े देश रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी पर जोर देते नजर आए। विश्लेषकों का मानना है कि यह गठजोड़ न केवल टैरिफ युद्ध का जवाब देगा बल्कि बहु-केंद्रित वैश्विक व्यवस्था को भी मजबूत करेगा।

संयुक्त ताकत कितनी बड़ी है?

भारत, चीन और रूस की कुल GDP करीब 53.9 ट्रिलियन डॉलर बताई जा रही है। यह दुनिया के कुल उत्पादन का लगभग एक-तिहाई है। इसके अलावा, इनके पास करीब 4.7 ट्रिलियन डॉलर का विदेशी भंडार और लगभग 3.1 अरब की आबादी है।

अगर सैन्य खर्च देखें तो यह तिकड़ी मिलकर दुनिया के कुल रक्षा बजट का 20% से अधिक (लगभग 549 अरब डॉलर) खर्च करती है। ऊर्जा की खपत में भी इनका हिस्सा 35% के आसपास है।

तीनों देशों की अलग-अलग ताकत

चीन आज दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब माना जाता है, रूस अपनी अपार ऊर्जा संपदा के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जबकि भारत की सेवाओं और डिजिटल सेक्टर में तेज़ी से बढ़ती ताकत उसे अलग पहचान देती है। यदि ये तीनों देश मिलकर साझा रणनीति बनाते हैं, तो यह न केवल अमेरिकी डॉलर की मुद्रा प्रभुता को चुनौती देगा बल्कि वैश्विक मंच पर मौजूद एकध्रुवीय शक्ति संतुलन को भी बदल सकता है।

निवेशकों के लिए क्या संदेश?

फिनोक्रेट टेक्नोलॉजीज के गौरव गोयल के अनुसार, भारत अब केवल अमेरिकी छूट पर निर्भर नहीं रहेगा। वह अपने पड़ोसी और साझेदार देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की दिशा में काम करेगा। ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर और पेमेंट सिस्टम जैसे क्षेत्रों में सहयोग से भारतीय कंपनियों के लिए नए अवसर खुल सकते हैं।

अमेरिका भारत के लिए अब भी अहम

हालांकि, यह भी सच है कि अमेरिका भारत के लिए सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2024 में भारत का अमेरिका को निर्यात 77.5 अरब डॉलर तक पहुंचा और द्विपक्षीय व्यापार 212.3 अरब डॉलर का रहा। यह पिछले साल से 8.3% अधिक है। इसलिए, भारत के लिए अमेरिका से दूरी बनाना आसान नहीं है।

गठबंधन की चुनौतियां

भारत, चीन और रूस का गठबंधन फिलहाल दो धार वाली तलवार जैसा है। एक ओर यह अमेरिका के टैरिफ दबाव से राहत देने का साधन बन सकता है, वहीं दूसरी ओर इसमें कई चुनौतियां छिपी हैं। चीन के साथ सीमा विवाद और पाकिस्तान पर उसका रुख भारत की सुरक्षा चिंताओं को गहरा करता है। रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध भारतीय कारोबार और वित्तीय लेनदेन पर असर डाल सकते हैं। साथ ही, अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भारत की गहरी निर्भरता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। ऐसे में भारत को यह गठबंधन जरूर रणनीतिक ताकत देता है, लेकिन उसे संतुलन साधते हुए दोनों ध्रुवों के बीच सावधानी से कदम बढ़ाने होंगे।

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