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US-China trade: भारत पर वार, चीन पर प्यार! आखिर क्यों ट्रंप को लग रहा ड्रैगन से डर?
US-China trade: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने पर भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया, जबकि रूस से तेल खरीद रहे चीन पर कोई कार्रवाई नहीं की।
US-China trade: अमेरिका की विदेश नीति में एक बार फिर से दोहरा रवैया सामने आया है। एक तरफ जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर 50% तक का भारी-भरकम टैरिफ ठोक दिया है वहीं दूसरी तरफ रूस से ही तेल खरीद रहे चीन पर कार्रवाई करने से बच रहे हैं। ट्रंप का यह रुख दुनिया भर के राजनीतिक गलियारों में एक बहस का विषय बन गया है। "हम पर सितम उन पर रहम" की यह स्थिति यह सवाल खड़ा कर रही है कि क्या चीन के सामने ट्रंप झुक गए हैं? क्या ट्रंप को चीन से कोई डर सता रहा है जिसकी वजह से वह सख्त कार्रवाई करने से हिचक रहे हैं? अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने इस मामले पर एक बयान देकर इस उलझन को और बढ़ा दिया है।
भारत पर 50% का भारी-भरकम टैरिफ चीन को मिली 90 दिन की मोहलत
भारत पर अमेरिका का टैरिफ बढ़ाना किसी झटके से कम नहीं है। पहले से ही 25% का टैरिफ झेल रहे भारत पर पिछले हफ्ते 25% का अतिरिक्त शुल्क लगाया गया है जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया है। यह 27 अगस्त से लागू होगा। भारत ने इस कदम को "अनुचित और अविवेकपूर्ण" बताया है क्योंकि यह भारत के ऊर्जा सुरक्षा हितों पर सीधा हमला है।
वहीं दूसरी ओर चीन के साथ ट्रंप का रवैया पूरी तरह से अलग है। चीन जो जुलाई में रूस से करीब 10 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात कर चुका है उस पर अभी तक कोई टैरिफ नहीं लगाया गया है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने 'फॉक्स न्यूज संडे' पर यह स्वीकार किया कि ट्रंप ने चीन पर टैरिफ लगाने के बारे में अभी कोई ठोस फैसला नहीं लिया है। वेंस ने कहा "जाहिर है कि चीन का मुद्दा थोड़ा अधिक जटिल है क्योंकि चीन के साथ हमारे रिश्ते कई ऐसी अन्य चीजों को प्रभावित करते हैं जिनका रूसी स्थिति से कोई लेना-देना नहीं है।" ट्रंप ने चीन को 90 दिनों की मोहलत भी दी है ताकि दोनों देश बातचीत के जरिए कोई हल निकाल सकें।
ट्रंप को किस बात का डर
ट्रंप के इस दोहरे रवैये के पीछे का मुख्य कारण चीन की ताकत है। पिछली बार जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध चरम पर था तब चीन ने "रेयर अर्थ मिनरल्स" की सप्लाई पर रोक लगा दी थी। यह कदम अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका था क्योंकि अमेरिका इन दुर्लभ खनिजों के लिए चीन पर ही बहुत अधिक निर्भर है। ट्रंप को डर है कि अगर उन्होंने चीन पर भारी टैरिफ लगाया तो चीन फिर से इन खनिजों की सप्लाई रोक सकता है।
ये खनिज जिन्हें "दुर्लभ मृदा खनिज" भी कहा जाता है कुल 17 तत्वों का एक समूह हैं जिनमें 15 लैंथेनाइड सीरीज के तत्व शामिल हैं। जैसे-जैसे दुनिया हाई-टेक होती जा रही है इन खनिजों की मांग बढ़ती जा रही है। इनका इस्तेमाल रक्षा उपकरणों से लेकर स्मार्टफोन इलेक्ट्रिक वाहनों और तमाम हाई-टेक इंडस्ट्री में होता है। दुनिया के लगभग 70% दुर्लभ खनिजों का उत्पादन चीन में होता है और 90% से अधिक शोधन का काम भी वहीं होता है। यही वजह है कि ट्रंप चीन के सामने कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं और भारत जैसे देशों पर सख्त कार्रवाई करने में संकोच नहीं कर रहे हैं जबकि चीन को छूट दे रहे हैं।
अमेरिका की मजबूरी
ट्रंप प्रशासन अब चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए इन दुर्लभ खनिजों के विकल्प की तलाश कर रहा है। अमेरिका जानता है कि जब तक वह इन खनिजों के लिए आत्मनिर्भर नहीं हो जाता तब तक चीन के साथ उसकी मोलभाव करने की स्थिति कमजोर रहेगी। हालांकि यह काम इतना आसान नहीं है। इन खनिजों के खनन और शोधन की प्रक्रिया जटिल और पर्यावरण के लिए हानिकारक होती है जिसकी वजह से कई देश इससे बचते हैं। अमेरिका की इस मजबूरी का फायदा चीन उठा रहा है और ट्रंप का दोहरा रवैया इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ट्रंप अपने इस रुख में कोई बदलाव लाते हैं या फिर चीन के सामने झुककर भारत जैसे अपने साझेदारों को नाराज करते रहेंगे।
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