TRENDING TAGS :
नहीं झुकेगा भारत! ट्रंप को साफ-साफ करारा जवाब - 'धंधा है, धर्म युद्ध नहीं', अब रूस से ही खरीदा जाएगा तेल
India Russian Oil Trade: भारत ने न सिर्फ खुद को महंगाई की आग से बचाया बल्कि पूरी दुनिया को भी पेट्रोल के दाम पर रोने से रोका...
India Russian Oil Trade: जब दुनिया ने रूस से मुंह मोड़ा, भारत ने वहीं पर आंखों में आंखें डालकर सौदे किए। और अब जब अमेरिका फिर से अपनी टैरिफ वाली तलवार लहराकर 'तेल खरीद' की नीति पर दबाव बना रहा है, भारत ने बड़ी ही साफगोई से कह दिया है धंधा है, धर्म युद्ध नहीं।मीडियो रिपोर्ट के हवाले से आई ताज़ा अपडेट है कि भारत की सरकारी और निजी रिफाइनरियां रूसी तेल से अपना टैंक लगातार भर रही हैं। उनका कहना है कि वे कोई भावनात्मक फैसला नहीं बल्कि कच्चे तेल की कीमत, गुणवत्ता, सप्लाई चैन और लागत को देखकर निर्णय लेती हैं। इसमें अमेरिका की 'भावनात्मक ब्लैकमेलिंग' का कोई स्थान नहीं।
सूत्रों ने दो टूक कह दिया कि रूसी तेल पर कभी कोई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध नहीं लगाया गया। जी-7 और यूरोपीय संघ ने सिर्फ एक मूल्य सीमा फ्रेमवर्क बनाया, जिससे वे खुद भी तेल खरीद सकें और नैतिकता की चादर ओढ़े रह सकें। इस लिमिट को भारतीय कंपनियां अभी तक ईमानदारी से फॉलो कर रही थीं 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा। लेकिन अब EU इसे घटाकर 47.6 डॉलर करना चाहता है, मानो तेल खरीद कोई मोलभाव का ठेला हो।
भारत ने संकट में दिखाई रीढ़ की हड्डी
मार्च 2022 का वह दौर जब रूस-यूक्रेन युद्ध की आग में ब्रेंट क्रूड 137 डॉलर प्रति बैरल तक सुलग रहा था, पूरी दुनिया हांफ रही थी। लेकिन भारत ने बिना किसी अंतरराष्ट्रीय थपकी का इंतजार किए, रियायती रूसी तेल खरीदने का फैसला किया। इससे न सिर्फ भारत की अपनी महंगाई पर लगाम लगी बल्कि वैश्विक बाजार में भी थोड़ी ठंडक आई।
अगर भारत भी नैतिकता के झंडे उठाकर रूस से तेल लेने से इनकार कर देता और उधर OPEC+ अपनी 5.86 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती जारी रखता, तो यकीन मानिए तेल 137 डॉलर से लुढ़कता नहीं, आसमान में उड़ता। और फिर अमेरिका भी शायद शेल ऑयल की बोतलें घर-घर पहुंचाने लगता।
अमेरिकी दोहरा मापदंड – बात करें ईरान और वेनेजुएला की
सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि भारत ने रूस से तो खरीदी की, जिस पर कोई प्रतिबंध नहीं है लेकिन ईरान और वेनेजुएला से आज भी तेल नहीं लेता जहां सच में अमेरिकी प्रतिबंध लागू हैं। यानी भारत न नियम तोड़ रहा है, न नीति, सिर्फ बुद्धिमानी से खेल रहा है। जबकि अमेरिका हर बार लोकतंत्र के ठेके के नाम पर उन देशों को दबाता है, जहां उसके हितों की उंगलियां नहीं पहुंच पातीं।
अंत में सवाल ये है कि क्या भारत का ये फैसला सिर्फ तेल का है? नहीं। ये फैसला उस संप्रभुता का है जहां एक देश अपने हितों को पहले रखता है और अमेरिकी झुंझलाहट को सिर्फ शोर समझता है। अमेरिका की पसंद-नापसंद वाली नीति भारत पर अब असर नहीं डालती। यहां तेल महंगाई से ज्यादा जरूरी है और फैसले कूटनीति से नहीं, जमीन की सच्चाई से लिए जाते हैं।
भारत ने न सिर्फ खुद को महंगाई की आग से बचाया बल्कि पूरी दुनिया को भी पेट्रोल के दाम पर रोने से रोका। अब अमेरिका को समझना होगा कि तेल अब सिर्फ उसका खेल नहीं है। भारत खिलाड़ी बन चुका है वो भी ऐसा, जो अब नियम नहीं, अपना मैदान तय करता है।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!