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India Russia Defense Deal: भारत-रूस डिफेंस डील से खफा अमेरिका, डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर लगाया 25% टैरिफ
India Russia Defense Deal: ट्रंप ने हाल ही में भारत पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया, जिससे वैश्विक स्तर पर हलचल मच गई।
India-Russia Defense Deal (Image Credit-Social Media)
India-Russia Defense Deal: भारत-रूस के बीच दशकों पुराना रक्षा सहयोग अब वैश्विक भू-राजनीति के केंद्र में है। शीत युद्ध काल से लेकर आज तक भारत ने अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने के लिए रूस पर भरोसा किया है। लेकिन यही मजबूत रक्षा गठजोड़ अब भारत को एक नई आर्थिक चुनौती दे रहा है। अमेरिका, खासकर डोनाल्ड ट्रंप का खेमा, इसे अपनी विदेश और सुरक्षा नीति के खिलाफ मान रहा है। ट्रंप ने हाल ही में भारत पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया, जिससे वैश्विक स्तर पर हलचल मच गई। यह कदम न केवल व्यापारिक दबाव है, बल्कि यह वैश्विक पावर बैलेंस और सामरिक विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करता है।
भारत-रूस रक्षा सहयोग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और रूस का रक्षा सहयोग अत्यंत पुराना और भरोसेमंद है। शीत युद्ध के दौर में भारत ने अमेरिका की बजाय सोवियत संघ के साथ सामरिक साझेदारी चुनी थी। इस सहयोग के तहत भारत ने अपने सैन्य शस्त्रागार को आधुनिक हथियारों और तकनीक से सुसज्जित किया।
आज भी भारतीय वायुसेना के SU-30MKI लड़ाकू विमान, MiG-29, Mi-17 हेलीकॉप्टर, T-90 और T-72 टैंक, INS Vikramaditya एयरक्राफ्ट कैरियर और परमाणु पनडुब्बी चक्र जैसे हथियार रूस से आए हैं। रूस ने न केवल समय पर आपूर्ति दी बल्कि भारत की रक्षा जरूरतों में रणनीतिक स्थिरता भी प्रदान की।
आज का मौजूदा रक्षा व्यापार और महत्व
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) के अनुसार, 2017-2021 के बीच भारत के कुल रक्षा आयात में 46% रूस से आए।
सिर्फ S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली की खरीद ही 5.43 अरब डॉलर की है। इसके अलावा ब्रह्मोस जैसी संयुक्त परियोजनाएं न केवल रक्षा सहयोग को मजबूत कर रही हैं बल्कि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में भी मदद कर रही हैं। दोनों देशों ने 2025 तक 30 अरब डॉलर का व्यापार लक्ष्य तय किया है, जिसमें रक्षा एक केंद्रीय भूमिका निभाता है।
अमेरिका की नाराज़गी और ट्रंप की रणनीति
ट्रंप ने भारत पर आरोप लगाया कि वह रूस से बड़ी मात्रा में हथियार और ऊर्जा खरीदता है, जो अमेरिकी प्रतिबंधों के विरुद्ध है।
उनका बयान—
“India cannot keep doing big defense deals with Russia and expect America to turn a blind eye… If India wants access to American markets, it must align its strategic interests accordingly.”
— Donald J. Trump
ट्रंप ने भारत को पहले भी ‘टैरिफ किंग’ कहा था और अब उन्होंने 25% टैरिफ के साथ भारत पर आर्थिक दबाव बढ़ा दिया है। उनका मानना है कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर अत्यधिक टैक्स लगाता है, जबकि अमेरिका भारतीय उत्पादों को खुला बाजार देता है।
25% टैरिफ का भारत पर असर
1 अगस्त 2025 से लागू यह टैरिफ भारतीय निर्यातकों के लिए चुनौती बन सकता है। भारत अमेरिका को मुख्यतः टेक्सटाइल, फार्मा, जेम्स एंड ज्वैलरी, स्टील, ऑटो पार्ट्स और केमिकल्स निर्यात करता है।
2023-24 में भारत का अमेरिकी निर्यात 78.5 अरब डॉलर रहा। अब 25% अतिरिक्त शुल्क से भारतीय उत्पाद महंगे होंगे, जिससे प्रतिस्पर्धा घटेगी। खासकर MSME सेक्टर पर बड़ा असर पड़ सकता है।
भारत-अमेरिका व्यापार में पुराना तनाव
यह तनाव नया नहीं है। 2019 में ट्रंप प्रशासन ने भारत को GSP स्कीम से बाहर किया था। उस समय भी उन्होंने भारत के टैरिफ को “unacceptable” बताया था। हार्ले डेविडसन जैसी बाइक्स पर 100% ड्यूटी इसका उदाहरण है। 2025 का यह कदम ट्रंप की उसी प्रोटेक्शनिस्ट नीति का विस्तार है।
भारत की प्रतिक्रिया और रणनीतिक संतुलन
भारत ने संयमित रुख अपनाते हुए कहा है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखेगा। भारत का मानना है कि रूस के साथ उसके रक्षा संबंध सामरिक संतुलन के लिए आवश्यक हैं और उन्हें केवल व्यापारिक दबाव में नहीं बदला जा सकता।
ट्रंप की बयानबाज़ी का राजनीतिक उद्देश्य
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम अमेरिकी चुनावी राजनीति से प्रेरित है। ट्रंप अपने ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे को मजबूत कर रहे हैं, जिससे घरेलू उद्योगों और मतदाताओं को संदेश मिले कि वे विदेशी देशों को अपनी शर्तों पर झुका सकते हैं।
भारत के पास विकल्प
भारत यूरोपीय संघ, खाड़ी और अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार बढ़ा सकता है। मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और डिफेंस एक्सपोर्ट पॉलिसी जैसे कदम भारत को रक्षा उत्पादन और निर्यात में सक्षम बना सकते हैं।
साथ ही, भारत-रूस रूपया-रूबल तंत्र को मजबूत कर डॉलर पर निर्भरता घटाई जा सकती है। यह विवाद भारत-रूस संबंधों को और प्रगाढ़ बना सकता है।
भारत के लिए संतुलन की कूटनीति
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को भू-राजनीतिक संतुलन साधते हुए अपनी दीर्घकालिक नीति पर डटे रहना होगा। यह संकट भारत को वैश्विक मंच पर और आत्मविश्वासी व निर्णायक बनाने का अवसर भी है।
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