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अमेरिका को करारा झटका! भारत बनेगा डिफेंस सुपरपावर, रूस का बड़ा दांव, भारत के फैसले से कांप रही पूरी दुनिया
India-Russia su57 deal: रूस ने भारत के सामने वो प्रस्ताव रख दिया है जो अमेरिका ने आज तक अपने सबसे करीबी सहयोगियों तक को नहीं दिया। और ये पेशकश उस वक्त आई है जब अमेरिका खुद भारत को अपने एडवांस्ड स्टील्थ फाइटर F-35A बेचने के लिए मनाने की जुगत में लगा है।
India-Russia su57 deal: ये वही वक्त है जिसका इंतजार भारत दशकों से कर रहा था। दुनिया की सबसे खतरनाक टेक्नोलॉजी अब भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रही है। वैश्विक कूटनीति के शतरंज पर एक ऐसा चाल चली गई है जिसने वॉशिंगटन से लेकर मॉस्को और बीजिंग तक हलचल मचा दी है। बात किसी रक्षा डील की नहीं है, बल्कि भारत के सुपरपावर बनने या फिर पश्चिमी ताकतों का सिर्फ ग्राहक बने रहने की कहानी है। और इस कहानी की शुरुआत होती है एक ऐसी पेशकश से, जिसने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी है—रूस का भारत को Su-57E स्टील्थ फाइटर जेट्स के लिए 100% तकनीकी ट्रांसफर और भारत में निर्माण का ऑफर।
रूस का भारत को प्रस्ताव
यानी रूस ने भारत के सामने वो प्रस्ताव रख दिया है जो अमेरिका ने आज तक अपने सबसे करीबी सहयोगियों तक को नहीं दिया। और ये पेशकश उस वक्त आई है जब अमेरिका खुद भारत को अपने एडवांस्ड स्टील्थ फाइटर F-35A बेचने के लिए मनाने की जुगत में लगा है। फर्क सिर्फ इतना है—F-35A खरीदने पर भारत सिर्फ ग्राहक रहेगा, लेकिन Su-57E लेने पर भारत उसका निर्माता बन सकता है। तकनीक का मालिक। रूस ने भारत के सामने जो कार्ड फेंका है, वो सिर्फ फाइटर जेट बेचने तक सीमित नहीं है। उसने कहा है कि भारत और रूस मिलकर Su-57E का निर्माण करेंगे, उसमें लगने वाली स्टील्थ तकनीक, इंजन, एवियोनिक्स और हथियार प्रणालियों का संयुक्त विकास करेंगे। रूस, भारत को उस टेक्नोलॉजी की कुंजी सौंप देगा जिसके पीछे दुनिया की कई ताकतें दशकों से लगी हुई हैं।
कहा बनाएगा भारत का न्य हथियार
भारत में ये निर्माण नासिक स्थित HAL प्लांट में हो सकता है, जहां पहले से ही भारतीय वायुसेना के रीढ़ बने Su-30MKI फाइटर जेट्स बन रहे हैं। यानी भारत को न नई फैक्ट्री बनानी है, न नई तैयारी करनी है। बस प्लान्ट में नई मशीनें लगेंगी, नई टेक्नोलॉजी आएगी और भारत का अगला कदम सीधे 'फिफ्थ जेनरेशन फाइटर जेट्स' की दुनिया में होगा। Su-57E को आप यूं समझिए—ये वही विमान है जो हवा में अदृश्य हो जाता है। सुपरसोनिक क्रूज़ करता है, उसके थ्रस्ट वेक्टरिंग इंजन उसे ऐसे घुमाते हैं जैसे आसमान में मौत ने नृत्य शुरू कर दिया हो। दुश्मन की रडार उसे पकड़ ही नहीं पाती और अगर पकड़ भी ले तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। भारत के लिए इससे बड़ी कोई डील नहीं हो सकती थी। तकनीकी आत्मनिर्भरता का असली मतलब यही है।
अमेरिका भारत को देना चाहता है F-35A
अब ज़रा अमेरिका के कार्ड पर नजर डालते हैं। अमेरिका भारत को F-35A देना चाहता है। दुनिया भर में इस फाइटर जेट की धाक है। सेंसर फ्यूज़न, AI आधारित फायर कंट्रोल, नेटवर्क सेंट्रिक वॉरफेयर—हर चीज़ में यह बेमिसाल है। मगर दिक्कत ये है कि अमेरिका किसी भी देश को अपनी तकनीक का मालिक नहीं बनाता। न तो भारत में निर्माण की अनुमति, न टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और ऊपर से कीमत—करीब 80 मिलियन डॉलर प्रति यूनिट। ऊपर से उसके लिए पूरी अलग लॉजिस्टिक सपोर्ट चाहिए, नई ट्रेनिंग चाहिए, नए इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत। यानी भारत सिर्फ ग्राहक रहेगा, निर्माता नहीं। लेकिन कहानी में असली ट्विस्ट तब आया जब भारत की रडार प्रणाली ने पूरी दुनिया को चौंका दिया। त्रिवेंद्रम एयरस्पेस में अचानक ब्रिटिश रॉयल नेवी का एक F-35B स्टील्थ फाइटर आपात लैंडिंग के लिए दाखिल हुआ। तकनीकी खराबी थी। लेकिन असली खबर ये बनी कि जिसे अमेरिका और ब्रिटेन दुनिया का “अदृश्य फाइटर जेट” कहते हैं, उसे भारत की IACCS प्रणाली ने न सिर्फ डिटेक्ट कर लिया बल्कि ट्रैक भी किया। भारतीय वायुसेना ने फौरन सुखोई फाइटर जेट्स को निगरानी पर भेजा और ब्रिटिश विमान को घेर लिया।
क्या है IACCS सिस्टम
ये वही IACCS सिस्टम है जिसने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के एयर इंट्रूज़न को नाकाम किया था। F-35B के डिजाइन में जहां हथियार इंटरनल बे में छिपे होते हैं, इंजन और टरबाइन को इस तरह मास्क किया जाता है कि रडार उसे पकड़ न सके, वहीं भारत की एडवांस रडार तकनीक ने इस “अदृश्य” विमान की पोल खोल दी। अब दुनिया की निगाहें भारत पर हैं। अमेरिका सकते में है कि भारत अब उसके जाल में नहीं फंस रहा। रूस मुस्कुरा रहा है, क्योंकि उसने भारत के सामने वो ऑफर रख दिया है जो उसे डिफेंस सुपरपावर बना सकता है।
अब आगे क्या
ये कोई मामूली रक्षा सौदा नहीं है। ये भारत के भविष्य की दिशा तय करने वाला मोड़ है। अगर भारत Su-57E का निर्माता बनता है तो सिर्फ लड़ाकू विमान नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को टेक्नोलॉजी बेचेगा। रूस के साथ मिलकर भारत अपनी खुद की फिफ्थ जेनरेशन फ्लीट खड़ी कर सकता है और आने वाले दशकों में अमेरिका की हथियार बाजार में बादशाहत को सीधी चुनौती दे सकता है। फैसला अब भारत के हाथ में है—क्या भारत भविष्य में सिर्फ सुपरपावर देशों का ग्राहक बनेगा या अब वो खुद डिफेंस टेक्नोलॉजी का निर्माता और निर्यातक बनेगा? सवाल बड़ा है, वक्त कम है और दांव... पूरी दुनिया का है।
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