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भारत को अरबों का फायदा.. अमेरिका को लगी मिर्ची! बोला- रूसी तेल नहीं छोड़ा तो... ?
Russian Crude Oil NATO-America Politics: नाटो ने बीते बुधवार को कहा कि यदि भारत, चीन और ब्राजील रूस से कच्चा तेल की मांग जारी रखते हैं तो अमेरिका इन देशों पर तकरीबन 100 फीसदी का सेकेंडरी सैंक्शंस लागू कर सकता है।
Russian Crude Oil NATO-America Politics
Russian Crude Oil NATO-America Politics: अमेरिका और NATO जो इधर काफी दिनों तक भारत की तरफ से रूस से कच्चे तेल के आयात पर गंभीर चिंता जता रहे थे लेकिन अब अचानक रुख बदल दिया है। अमेरिका अब सीधे धमकी भरी भाषा में बात कर रहे हैं। नाटो ने बीते बुधवार को कहा कि यदि भारत, चीन और ब्राजील रूस से कच्चा तेल की मांग जारी रखते हैं तो अमेरिका इन देशों पर तकरीबन 100 फीसदी का सेकेंडरी सैंक्शंस लागू कर सकता है।
अमेरिका अब भारत को बड़ी चेतावनी देना शुरू दिया है कि रूसी तेल आयात को लेकर पश्चिमी देशों की नीतियों का पालन करे, नहीं तो अब व्यापारिक और कूटनीतिक परिणाम भुगतने पड़ेंगे। दरअसल रूस से कच्चे तेल के आयात को अमेरिका और नाटो यूक्रेन संघर्ष से जोड़कर देख रहे हैं। अमेरिका का मानना है कि भारत और चीन द्वारा रूस से कच्चा तेल की मांग के कारण रूस के वॉर मशीन को फंडिंग की जाती है।
अमेरिका को ऐसा लग रहा है कि यदि भारत और चीन रूस से कच्चा तेल न मंगाए तो मॉस्को यूक्रेन से युद्ध का खर्चा नहीं उठा पाएगा और उसे युद्ध रोकने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। लेकिन अमेरिका की ये चाहत भारत और चीन के लिए अरबों डॉलर के नुकसान का सौदा बनाकर सामने आ रही है।
3 साल में भारत को 25 अरब डॉलर की बचत
भारत अपनी कच्चे तेल की आवश्यकता का करीब 85% से ज्यादा हिस्सा आयात करता है। घरेलू उत्पादन में वृद्धि के बावजूद भारत को अपनी अर्थव्यवस्था और ऊर्जा ज़रूरतों के लिए भारी मात्रा में तेल का विदेशों से आयात करना पड़ता है। भारत अपनी कुल तेल आवश्यकताओं का तकरीबन 35% रूस से आयात करता है, जो काफी सस्ता होने के वजह से साल 2022-2025 के बीच भारत को लगभग 10.5 से 25 अरब डॉलर की बचत करा चुका है।
साल 2025 की शुरुआत में भारत ने अपनी कुल आयातित कच्चे तेल का तकरीबन 40% हिस्सा रूस से मंगाया। मई-जून के महीने में यह मात्रा करीब 38–44% के बीच रहा।
बता दें कि साल 2022 से पहले भारत को तेल बेचने वाले बड़े देशों में ईराक, सऊदी अरब, UAE और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल थे। लेकिन 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो वह अपने युद्ध के खर्चा उठाने के लिए भारत, चीन और तुर्की जैसे देशों को सस्ता कच्चा तेल बेचना शुरू कर दिया। बता दे, रूस से सस्ते कच्चे तेल के आयात से भारत को साल 2022-2024 तक लगभग 25 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास की बचत हुई है।
कितना सस्ता कच्चा रूसी तेल ?
वित्त वर्ष 2023 और 2024 में ही छूट पर रूसी तेल की मांग से भारत को 7.9 अरब डॉलर यानी लगभग 65,000 करोड़ रुपये का बड़ा फायदा हुआ था। रूस से सस्ता कच्चा तेल मिलने के कारण भारत का तेल लागत घटा और चालू खाते को नियंत्रित करने में सहयोग भी मिला। बता दें कि रूसी कच्चा तेल, पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं (जैसे मिडिल ईस्ट) की तुलना में करीब 11 से 16 प्रतिशत तक सस्ता मिलता है।
जानकारी के मुताबिक, रूस भारत को बेहद अच्छे डिस्काउंट पर कच्चा तेल बेचता है, जो पूरे विश्व के बाजार मूल्य प्रति बैरल 4-5 डॉलर कम होता है। साल 2022 से 2025 की बात करें तो उस दौरान रूसी तेल की लागत 65-75 डॉलर प्रति बैरल थी, जबकि ब्रेंट क्रूड की कीमत 80-85 डॉलर प्रति बैरल के करीब थी। वहीं, सऊदी अरब और इराक जैसे देश ब्रेंट क्रूड या उससे कुछ कम लगत पर तेल आयात करते हैं। यानी सऊदी तेल रूसी तेल से तकरीबन 10 से 15 प्रतिशत महंगा हो जाता है।
मध्य पूर्व से सप्लाई पर लॉजिस्टिक दिक्कतें
मध्य पूर्व से तेल की आपूर्ति हमेशा से भारत के लिए रणनीतिक और लॉजिस्टिक दिक्कतों को उजागर करती है। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि अन्य देशों से तेल की आपूर्ति की संभावना है, लेकिन यह महंगा हो सकता है और लॉजिस्टिक्स की चुनौतियां भी बढ़ सकती हैं। पश्चिम एशिया में जंग के कारण वैश्विक तेल आपूर्ति पहले से ही अस्थिर बना हुआ है।
हाल ही में जब ईरान पर इजरायल ने हमला किया था तो ईरान ने होरमूज जलडमरूमध्य मार्ग को बंद करने की धमकी दी थी। ऐसी स्थिति में भारत के लिए दिक्कतें सामने आ सकती हैं। बता दे, रूसी तेल की डिलीवरी कीमत भी अपेक्षाकृत कम है क्योंकि रूस भारत को समुद्री मार्गों जैसे कि ब्लैक सी और बाल्टिक रूट्स के माध्यम से तेजी से आपूर्ति करता है।
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