छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला! 1956 से पहले पिता की मौत पर बेटियों का संपत्ति पर नहीं होगा हक...

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार कानून को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला लिया है, जिसने मिताक्षरा कानून के अंतर्गत बेटियों के संपत्ति अधिकारों को लेकर नई स्पष्टता प्रदान की गयी है।

Priya Singh Bisen
Published on: 18 Oct 2025 12:48 PM IST
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Chhattisgarh News (photo: social media)

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार कानून को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला लिया है, जिसने मिताक्षरा कानून के अंतर्गत बेटियों के संपत्ति अधिकारों को लेकर नई स्पष्टता प्रदान की गयी है। अदालत ने कहा कि यदि किसी हिंदू पिता की मृत्यु साल 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होने से पहले हुई हो और यदि उसके पुत्र जीवित हों, तो पुत्री को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं दिया जाएगा। यह फैलसा पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्री के अधिकार को भी स्पष्ट रूप बताता है।

पूरा मामला क्या था?

यह मामला सरगुजा जिले का है, जहां एक महिला ने अपने पिता की संपत्ति में भागीदारी होने का दावा किया था। अपीलकर्ता और प्रतिवादी दोनों भाई-बहन थे। पिता के निधन के बाद भाई ने संपत्ति के दाखिल-खारिज के लिए आवेदन दिया, जिस पर बहन ने कड़ी आपत्ति जताई। हालांकि, सिविल जज, वर्ग-II, सरगुजा की अदालत ने यह कहते हुए दावा सिरे से खारिज कर दिया कि पिता का निधन साल 1956 से पहले हो चुका था, जब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू नहीं हुआ था। इसलिए, साल 2005 के संशोधन का भी फायदा अपीलकर्ता को नहीं मिल सकता।

अदालत में हुई ऐतिहासिक सुनवाई

महिला ने इस निर्णय के खिलाफ अपील दायर की, लेकिन एडिशनल जिला जज की अदालत ने भी सिविल जज के निर्णय को बरकरार रखा। इसके बाद मामला हाईकोर्ट जा पहुंचा, जहां जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने इस पर विस्तार से सुनवाई की। कोर्ट ने पाया कि पिता की मृत्यु 1950-51 के बीच हुई थी, यानी 1956 से पहले। इसके अनुसार कोर्ट ने यह माना कि मामला मिताक्षरा कानून के दायरे में आता है, न कि 1956 के उत्तराधिकार अधिनियम के।

क्या कहना है मिताक्षरा कानून?

मिताक्षरा विधि के मुताबिक, किसी पुरुष की स्व-अर्जित संपत्ति उसके पुरुष वंशजों को ही हस्तांतरित होती है। सिर्फ तब, जब कोई पुरुष वंशज न हो, तब अन्य उत्तराधिकारी जैसे कि पत्नी या पुत्री संपत्ति पर दावा कर सकती हैं। इस प्राचीन विधि में बेटियों को संपत्ति का समान हक़ नहीं दिया गया था, जो बाद में 1956 और 2005 के संशोधनों से जोड़ा गया।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का भी हवाला

हाईकोर्ट ने अर्शनूर सिंह बनाम हरपाल कौर (2019) और अरुणाचल गौंडर बनाम पोन्नुसामी मामलों का विस्तृत उल्लेख किया और कहा कि हिंदू उत्तराधिकार विधि (संशोधन) अधिनियम, 1929 का उद्देश्य प्राचीन मिताक्षरा कानून की मूल अवधारणाओं को बदलना नहीं था। इसने सिर्फ पुरुष संतान की अनुपस्थिति में कुछ महिला उत्तराधिकारियों को शामिल किया था, लेकिन पुत्र के हक़ को प्रभावित नहीं किया।

क्या किया कोर्ट ने टिप्पणी?

हाईकोर्ट ने कहा, “अगर किसी हिंदू पिता का निधन साल 1956 से पहले हुई है और वह मिताक्षरा विधि के तहत आता है, तो उसकी संपत्ति पूरी तरह उसके पुत्र को ही जाएगी। पुत्री सिर्फ तब हकदार होगी, जब परिवार में कोई पुरुष संतान न हो।”

अंतिम निर्णय

अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता का दावा विधिक रूप से टिकाऊ नहीं है और साल 1956 से पहले हुए उत्तराधिकार विवाद में बेटियों को संपत्ति का हक़ नहीं मिल सकता। इस प्रकार, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह साफ़ कर दिया है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 या उसके बाद हुए संशोधन 1956 से पहले की मौतों पर लागू नहीं होंगे।

यह निर्णय उन सभी मामलों के लिए मिसाल बनकर सामने आएगा, जिनमें उत्तराधिकार विवाद 1956 से पहले के हैं और जिनमें बेटियों द्वारा संपत्ति के अधिकार का दावा किया जाता है।

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