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"कौन बनेगा बिहार का CM?" 2025 में जंतर-मंतर पर नहीं, जनता के मन में लिखी जा रही है सत्ता की स्क्रिप्ट! जानिए इस बार कौन मारेगा बाजी
Kaun Banega Bihar Ka CM: पूरे भारत की नज़र इस समय बिहार पर टिकी हुई है हर किसी के ज़हन में यही सवाल उठ रहा है कि आखिर इस बार बिहार का मुख्यमंत्री कौन बनेगा।
Kaun Banega Bihar Ka CM (Image Credit-Social Media)
Kaun Banega Bihar Ka CM: पटना की गलियों से लेकर पूर्णिया की पंचायतों तक, सासाराम से सिवान तक, और दरभंगा के दरबार से लेकर गया के गलियारों तक एक ही सवाल गूंज रहा है "इस बार कौन?" बिहार में सियासत कभी भी सीधे रेखा की तरह नहीं चली। यहां सत्ता पाना किसी ताश के पत्तों का खेल नहीं, बल्कि सामाजिक समीकरण, जातीय जोड़-घटाव और जनता के जज़्बातों को समझने की गहरी राजनीति का नतीजा होता है। अब जब 2025 का विधानसभा चुनाव नज़दीक है, तो सवाल फिर ज़ोर पकड़ रहा है — "कौन बनेगा बिहार का मुख्यमंत्री?" क्या फिर से नीतीश कुमार आखिरी बार बाज़ी मारेंगे? क्या तेजस्वी यादव का ‘मिशन 2025’ हकीकत बनेगा? या क्या कोई तीसरा चेहरा इस बार बिहार की सत्ता में भूचाल लाएगा?
नीतीश कुमार: अनुभव बनाम असंतोष
नीतीश कुमार, जिन्हें कभी 'सुशासन बाबू' के नाम से जाना जाता था, आज फिर मैदान में हैं, लेकिन इस बार उनकी राह पहले से कहीं ज्यादा कठिन लग रही है। जनता दल यूनाइटेड (JDU) के पुराने वोट बैंक में दरारें दिखने लगी हैं और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ 'बार-बार' गठबंधन और 'बार-बार' अलगाव ने उनके नेतृत्व की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाई है। नीतीश अब उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहां जनता उनके अनुभव को मान देती है, लेकिन युवा मतदाता अब बदलाव चाहता है। बेरोजगारी, शिक्षा की बदहाली, स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत और लगातार पलायन जैसे मुद्दे नीतीश कुमार के चेहरे से चमक छीनते जा रहे हैं। लेकिन नीतीश को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करना भी भूल होगी। उनकी प्रशासनिक पकड़, ज़मीनी नेटवर्क और कुशल गठबंधन राजनीति उन्हें अब भी गेमचेंजर बना सकती है।
तेजस्वी यादव: युवा लहर या जातीय गणित?
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव को अब तक बिहार की राजनीति में ‘युवा चेहरा’ माना जाता रहा है। लेकिन अब जब 2025 का चुनाव आ चुका है, तो उन्हें सिर्फ चेहरा नहीं, विकल्प बनकर उभरना है। 2020 में वह एक मजबूत चुनौती के रूप में उभरे थे और अब उनके पास अनुभव, संगठन और जनसमर्थन तीनों का मेल है। तेजस्वी बेरोजगारी और सरकारी नौकरी के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं। उन्होंने वादा किया है कि सत्ता में आते ही 10 लाख सरकारी नौकरियों की शुरुआत करेंगे — वही मुद्दा जिसने 2020 में उन्हें युवा मतदाताओं का हीरो बना दिया था। RJD का परंपरागत मुस्लिम-यादव (MY) वोट बैंक अब भी मज़बूत है, लेकिन पिछड़ों, सवर्णों और महिलाओं को साथ जोड़ने की चुनौती अब उनके सामने है। क्या तेजस्वी इस बार वोट मांगने नहीं, सरकार बनाने आए हैं? क्या लालू की विरासत अब पूर्ण सत्ता का रूप ले पाएगी? जनता की ज़ुबान पर यही चर्चा है।
भाजपा: चेहरा बदलो, चाल नहीं
भाजपा बिहार में फिलहाल स्पष्ट मुख्यमंत्री चेहरे के बिना ही चुनावी तैयारियों में जुटी है। सुशील मोदी जैसे पुराने नेताओं को धीरे-धीरे किनारे कर अब पार्टी नए चेहरों को सामने ला रही है, जिनमें गिरिराज सिंह, सम्राट चौधरी और नित्यानंद राय जैसे नाम उभरते हैं। लेकिन भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती है — "बिना चेहरे के चुनाव" क्या पार्टी प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर ही बिहार की सियासत में जीत दर्ज कर सकती है? या क्या लोगों को राज्य के लिए एक स्थानीय नेता की जरूरत है, जो उनकी ज़मीन और ज़बान दोनों को समझता हो? भाजपा के पास संगठन है, कार्यकर्ता हैं, केंद्र की सत्ता का सहारा है, लेकिन बिहार की जमीन पर उसे ठोस भावनात्मक जुड़ाव अभी भी बनाना बाकी है।
कांग्रेस और अन्य दल: अस्तित्व की लड़ाई या अप्रत्याशित मोहरा?
कांग्रेस अभी भी स्पष्ट रणनीति की तलाश में है। वह RJD के साथ गठबंधन में रहकर चुनाव लड़ती है, लेकिन उसके पास ना ठोस वोट बैंक है, ना प्रेरक नेतृत्व। यही हाल लेफ्ट दलों का भी है, जो छात्र राजनीति और सीमित क्षेत्रों में मजबूत हैं, लेकिन राज्यव्यापी प्रभाव में कमजोर। हालांकि अगर महागठबंधन पूरी तरह एकजुट होता है और सीटों के बंटवारे में समझदारी दिखाई जाती है, तो विपक्ष मजबूत चुनौती बन सकता है।
जनता का मन: जात से ऊपर उठेगा क्या मत?
2025 का चुनाव खास इसलिए है क्योंकि पहली बार यह सवाल गंभीरता से उठ रहा है — क्या बिहार का मतदाता जातीय सीमाओं से ऊपर उठेगा?क्या 'काम' और 'कल्याण' अब 'कुल' और 'जात' पर भारी पड़ेंगे? गांवों में जहां पहले वोट जाति देखकर दिया जाता था, अब वहां युवा रोजगार पूछता है, महिलाएं कानून-व्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करती हैं। बिहार की नई पीढ़ी, जो इंटरनेट, सोशल मीडिया और डिजिटल दुनिया से जुड़ी है, वो अब 'जात की राजनीति' से अलग हटकर नतीजे चाहती है। अगर यह वर्ग निर्णायक संख्या में मतदान करता है, तो यह चुनाव जातीय समीकरणों को ध्वस्त कर सकता है।
2025 का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, दिशा परिवर्तन हो सकता है
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब एक सामान्य चुनाव नहीं है। यह चुनाव तय करेगा कि बिहार उसी पुराने ढर्रे पर चलता रहेगा या कोई नई सोच, नया चेहरा और नई दिशा उसे बदल देगी। नीतीश कुमार अनुभव का नाम हैं, तेजस्वी उम्मीद का। भाजपा के पास ताकत है, लेकिन भावना की कमी। जनता के पास विकल्प हैं, लेकिन भ्रम भी। सवाल अब यही है क्या 2025 में जनता 'परंपरा' चुनेगी या 'परिवर्तन'? क्या बिहार का मतदाता अब अपने वोट से सत्ता की खींचेगा या सत्ता को ही मिटाकर नई इबारत लिखेगा? कौन बनेगा सीएम — इसका फैसला अब नेताओं की रैलियों में नहीं, लोगों के दिलों में लिखा जा रहा है। और चुनाव का दिन जब आएगा बिहार की मिट्टी खुद बोलेगी "इस बार, हमारा मुख्यमंत्री ये होगा!"
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