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BJP में भूचाल! अब कौन बनेगा उपराष्ट्रपति और अध्यक्ष? अंदर से लीक हुआ ‘सियासी खेल’
BJP new vice president candidate: जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे के बाद भाजपा के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है। अब पार्टी को अध्यक्ष और नए उपराष्ट्रपति के नाम तय करने हैं।
BJP new vice president candidate: भारत की सियासी फिजाओं में हलचल और भी तेज़ हो गई है। जहां एक ओर अध्यक्ष पद का चुनाव गर्माया हुआ है, वहीं दूसरी ओर एक और बड़ा धमाका हुआ, देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) की रणनीति को पूरी तरह हिला कर रख दिया है। अब पार्टी को न केवल लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी भरनी है, बल्कि नए उपराष्ट्रपति की तलाश भी तुरंत करनी है। दोनों पदों पर निर्णय लेना अब भाजपा के लिए "डबल ट्रबल" बन गया है।
धनखड़ का इस्तीफा और सियासी मायने
धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक संकेत छुपे हैं। जिस तरह से 2022 में उन्हें उपराष्ट्रपति बनाया गया था, वो भाजपा की किसान समुदाय के प्रति ‘soft corner’ दिखाने की कोशिश थी। खासकर जाट किसान आंदोलन के बाद उन्हें उपराष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने एक बड़ा दांव चला था। अब जबकि वह इस्तीफा दे चुके हैं, भाजपा को एक ऐसा चेहरा चाहिए जो न केवल राजनीतिक और जातिगत संतुलन साधे, बल्कि विपक्ष के सवालों का भी सधा हुआ जवाब हो।
दो कुर्सियां, एक तनाव
इस समय भाजपा के सामने दो सबसे अहम पदों को भरने की चुनौती है, अध्यक्ष और उपराष्ट्रपति। और ये काम आसान नहीं है। अध्यक्ष पद के लिए नाम तय करने में देरी हो रही है, और सूत्रों के मुताबिक इसकी वजह भाजपा और आरएसएस के बीच सहमति की कमी है। संघ चाहता है कि अध्यक्ष पद पर कोई ऐसा व्यक्ति आए, जो संगठन की जड़ों से जुड़ा हो और भाजपा की विचारधारा को मजबूत कर सके। दूसरी ओर, उपराष्ट्रपति पद के लिए नाम तय करने में भी जातिगत समीकरण बड़ा फैक्टर बन चुका है। भाजपा चाहती है कि अगर उपराष्ट्रपति पद पर किसी ऊंची जाति के व्यक्ति को बैठाया जाए, तो अध्यक्ष पद के लिए ओबीसी या दलित समुदाय से किसी नेता को लाया जाए जिससे 2024 से पहले राजनीतिक संदेश साफ और संतुलित रहे।
संघ और पीएम मोदी में बन नहीं रही बात?
टेलीग्राफ इंडिया की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि भाजपा और आरएसएस के बीच नए अध्यक्ष को लेकर मतभेद सामने आए हैं। संघ चाहता है कि अध्यक्ष पद पर कोई "मजबूत संगठन व्यक्ति" आए, जबकि भाजपा नेतृत्व कुछ अलग सोच रहा है। सूत्रों का कहना है कि धर्मेंद्र प्रधान और भूपेंद्र यादव जैसे दो ओबीसी नेताओं का नाम अध्यक्ष पद के लिए सामने आया है, लेकिन संघ इन नामों को लेकर उत्साहित नहीं है। हालांकि, खबर ये भी है कि अब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मसले को हल करने के लिए मोर्चा संभाल सकते हैं। वे जल्द ही संघ के प्रमुखों से बातचीत करके इस गतिरोध को खत्म करने की कोशिश करेंगे।
उपराष्ट्रपति पद पर एनडीए की एकजुटता जरूरी
रिपोर्ट्स के अनुसार, उपराष्ट्रपति के लिए अंतिम फैसला भाजपा का होगा, लेकिन NDA के बाकी घटक दलों की राय भी अहम होगी। एक ऐसा नाम तलाशा जा रहा है, जो न केवल भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाए, बल्कि एनडीए में एकता भी बनाए रखे। यही वजह है कि इस बार का चयन पूरी तरह से सोच-समझकर और रणनीतिक तरीके से किया जाएगा।
मोदी का मास्टरस्ट्रोक या फिर सियासी खिचड़ी?
अब सवाल यह है कि क्या पीएम मोदी इस दोहरी चुनौती को एक मास्टरस्ट्रोक में बदल पाएंगे? क्या वे संघ को मना पाएंगे और विपक्ष को चुप कराने लायक चेहरों को सामने ला पाएंगे? या फिर यह खिंचती हुई सहमति पार्टी के अंदरूनी मतभेदों की पोल खोल देगी? अगस्त के अंत तक दोनों पदों पर नाम तय करने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में हलचल इस बात की भी है कि क्या भाजपा इन दोनों पदों के ज़रिए 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कोई बड़ा संदेश देने वाली है?
राजनीति के शतरंज पर अगली चाल किसकी होगी?
यह तय है कि इन दोनों पदों पर होने वाले नामांकन देश की सियासी दिशा को काफी हद तक तय करेंगे। भाजपा अपने पत्ते संभलकर खेल रही है और संघ की सहमति के बिना कोई बड़ा फैसला नहीं लिया जाएगा। अब सबकी नजरें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगली चाल पर हैं। क्या वे इस सियासी संकट को एक अवसर में बदलेंगे, या फिर पार्टी के अंदर ही कोई नया तूफान उठेगा? एक बात तय है, इस बार का अध्यक्ष और उपराष्ट्रपति चयन केवल संवैधानिक औपचारिकता नहीं, बल्कि आने वाले चुनावों की सियासी स्क्रिप्ट का सबसे अहम हिस्सा बनने वाला है।
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