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Blessed to Have Road: सड़क की कहानी, सड़क न होती तो क्या होता, सड़क अब गंतव्य तक पहुंचाती ही नहीं अर्थ व्यवस्था की ताकत भी है, जानें कैसे
Blessed to Have Road: सड़क कमाऊ पूत है। ठेकेदार-इंजीनियर की दुधारू गाय। सड़क बनती रहेगी-टूटती रहेगी-उखड़ती रहेगी। सिलसिला चलता रहेगा। कैश फ्लो की कितनी अद्भुत मशीन है सड़क।
Blessed to Have Road (Social Media)
Blessed to Have Road: कहा जाता है, माना जाता है कि सड़क आवागमन के लिए ईजाद की गई चीज है। ताकि लोग पैदल या किसी सवारी से आ जा सकें। यही सड़क का परम उद्देश्य कहा गया है, यही सड़क की टेक्स्ट बुक परिभाषा भी है। पर इन दिनों सड़क अपना नाम अमर करने के काम भी आने लगी है। इसलिए जिसे देखिये, वही सड़क अपने जाति जमात व परिवार के लोगों के नाम करने को व्यग्र व आकुल नज़र आता है। देश के सड़क मंत्री नितिन गडकरी भी सड़कों के बहाने ही देश भर में प्रधानमंत्री के समकक्ष चर्चा में बने रहते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी को याद करने का एक कारण उनकी स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना भी है। भाजपा नेता राजनाथ सिंह उन दिनों सड़क मंत्री थे, इस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने उन्हें भी देश के ज़ुबान पर ला दिया।
पर हम सड़क की बात को फिर से शुरु करते हैं। इंसान ने जब रास्ते बनाना शुरू किया होगा तो सबसे पहले पग-डंडी बनाई होगी, और जब पहिये का अविष्कार किया होगा तब पग-डंडी का चौड़ीकरण करके उसे एक ऐसी चीज का रूप दे दिया जिसे सड़क कह दिया गया। सड़क या रोड शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई, यह वृहद शोध का विषय है जिस पर पड़ना बहुत लंबा काम होगा।पर सड़क शब्द फ़ारसी भाषा का है। हमारे यहां इसके पर्याय के रुप में मार्ग, पथ, विहार, वर्त्म आदि शब्दों का प्रयोग होता रहा है। दुनिया की सबसे पहली ज्ञात सड़क की बात की जाये तो मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक) और हड़प्पा सभ्यता (वर्तमान भारत-पाकिस्तान) दोनों ही स्थानों से इसके प्रमाण मिले हैं।
यह कालखंड लगभग 4000 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व के बीच का बैठता है। हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की सड़कों को दुनिया की सबसे पुरानी नियोजित (planned) सड़कों में गिना जाता है।मेसोपोटामिया में भी लगभग 4000 ईसा पूर्व में गाड़ी की लीक वाली सड़कों के प्रमाण मिले हैं, जो मिट्टी पर पहियों से बने मार्ग थे।इन्हें विशेष रूप से सुमेरियन सभ्यता ने बनाया था।
रोमन साम्राज्य ने 500 ईसा पूर्व से 400 ईस्वी तक के बीच पत्थरों से बनी पक्की सड़कें बनवाईं। All roads lead to Rome कहावत इसी पर आधारित हैं। ये सड़कें रोम से पूरे साम्राज्य में फैलती थीं — इंग्लैंड से लेकर तुर्की तक। इसके बाद 500 ईसा पूर्व फारसी राजा डेरियस प्रथम (Darius I) ने 2,700 किलोमीटर लंबी ग्रेट रोड ऑफ पर्सिया (Royal Road) बनवाई । भारत में ग्रैंड ट्रंक रोड के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण शेर शाह सूरी ने कराया। पर हकीकत है कि मौर्यकाल में चंद्रगुप्त मौर्य ने उत्तरापथ के नाम से इसे बांग्लादेश से लेकर पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान तक निर्मित कराया था। शेरशाह सूरी ने 16वीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण कराया।
बहरहाल, उत्पत्ति कहीं से हुई हो, पहली सड़क कोई भी हो। लेकिन सड़क का काम एक ही था - लोग चल सकें बिना किसी व्यवधान के, जहाँ न झाड़ झंखाड़ हों, न पेड़ हों, न चट्टानें हो। मतलब यह कि कोई आराम से चल सके, गाड़ी चला सके। ऐसा रास्ता जिस पर सब चल सकें। पहले सिर्फ सड़क ही हुआ करती थी लेकिन जब गाड़ियों की भरमार हो गई तो पैदल वालों को किनारे करके कुछ जगह दे दी गई और नाम दे दिया फुटपाथ का।
ये तो हुई फ़्लैश बैक की बात। अब आईये आज में यानी वर्तमान में।
आदिम इंसान ने जो सोच कर सड़क बनाई थी वो सोच अब सिरे से नदारद है। सड़क है पर इस्तेमाल अनंत हैं। सड़क की सौतेली बहन फुटपाथ को जो जगह दी गई वो सौतेली ही साबित हुई और उसे सरक सरक कर छीन लिया गया।यूँ तो वजूद सड़क और फुटपाथ दोनों का है। लेकिन इनका इस्तेमाल बड़ा ही व्यापक हो चुका है।
अपने मुल्क में आज सड़क हैं। किसिम किसिम की सड़कें हैं। साथ ही सड़कों के किसिम किसिम के इस्तेमाल भी हैं। सड़क अब सिर्फ चलने, गाड़ी चलाने के लिए नहीं है बल्कि ढेरों किसिम किसिम के उपयोगों के लिए है। एक्सपेरिमेंटों के लिए है। कमाई के लिए है। दाल रोटी के लिए है, जीने मरने के लिए है।
सड़क अब मल्टीपरपस चीज है। चलना चलाना अब पायदान में सबसे नीचे की चीज है। सड़क और उसकी सौतेली बहन यानी फुटपाथ अब दुकान लगाने की जगह है, पार्किंग की जगह है, ठेला खोमचा लगाने के लिए है। खोद कर पाइप डालने के लिए है। लड़ने के लिए है। किसी को भी रौंदने के लिए है। कूड़ा फेंकने के लिए है। बल्ली लगा कर इवेंट करने के लिए है। भंडारे करने के लिए है। मंदिर, मजार, मस्जिद स्थापित करने के लिए है। बालू-मौरंग-ईंट-गिट्टी ढेर करने के लिए है। नेता के भाषण के लिए है। चुनाव प्रचार के लिए है। तकरीर करने के लिए है। बैनर पोस्टर लटकाने के लिए है। कवि सम्मेलन-मुशायरे के लिए है। पेशाब करने के लिए है।
रात में डिवाइडर पर सोने के लिए है। तिरपाल डाल कर गृहस्थी चलाने के लिए है। टेंट हाउस की दरी सुखाने के लिए है। क्रिकेट खेलने के लिए है। और तो और, अब तो सेक्स करने के लिए भी है। इतने तरह के इस्तेमाल की वजह से ही हमारे जीवन में सड़क को लेकर अनगिनत कहावतें जुड़ गयी हैं। मसलन, सड़क पर आ जाना, सड़क छाप, सड़क दिखा देना, सड़क का आदमी, रास्ता दिखाना, रास्ता काटना, सड़कें चाटते रह जाओगे, रास्ता निकलना, बीच सड़क पर नाटक करना, सड़क-सड़क भटकना, जहाँ चाह वहाँ राह, राह का कांटा बनना, चलते रहो, रास्ता खुद बनता जाएगा, राह चलते कुत्ते भी भौंकते हैं, रास्ते के पत्थर बनो, ठोकर नहीं आदि।
एक चीज और दर्जनों इस्तेमाल। किसी मुल्क ने इतना इनोवेशन न किया होगा जितना हमने कर लिया। सड़क कमाऊ पूत है। ठेकेदार-इंजीनियर की दुधारू गाय। सड़क बनती रहेगी-टूटती रहेगी-उखड़ती रहेगी। सिलसिला चलता रहेगा। कैश फ्लो की कितनी अद्भुत मशीन है सड़क। हुए होंगे जीटी रोड वाले शेर शाह सूरी। अब सड़क बारहमासी प्रोजेक्ट है।
सड़क रोजगार है। सड़क न हो तो लोग भूखे मर जाएं। ठेले, खोमचे, दुकान, गुमटी वाले .. कितने ही लोगों की दाल रोटी है सड़क। सड़क धर्म भी है। सड़क न हो तो धर्म खतरे में पड़ जाए। कलश यात्रा से लेकर मुहर्रम जुलूस, भंडारे, लंगर, मजार, मंदिर सब धरम करम सड़क के भरोसे।
सड़क अर्थव्यवस्था है। नौकरियां हैं नहीं लेकिन सड़क नौकरी भी है और बिजनेस भी। अगर सड़क सिर्फ चलने वालों की हो जाये तो करोड़ों लोग सड़क पर आ जाएंगे। विद्रोह हो जाएगा, अर्थव्यवस्था, सामाजिक शांति छिन्न- भिन्न हो जाएगी। सड़क ‘फ्री फ़ॉर आल’ है, तभी लोग कुछ काम में लगे तो हैं।
सड़क प्रयोगशाला भी है। कभी डिवाइडर बनाओ, कभी तोड़ो। कभी ऊंचा बनाओ,कभी नीचा कर दो। कभी वनवे करो,कभी मत करो। कभी कट बनाओ,कभी बन्द कर दो। कभी पार्किंग करो, कभी नो पार्किंग कर दो। सड़क घर भी है। कहीं भी देख लीजिए, सड़क और उसकी सौतेली बहन फुटपाथ पर कितनों के ही आशियाने बसे मिलेंगे। जो दुकान अपने नियत जगह तक सीमित हो वो दुकान कैसी? उसका आगे फैलना लाजिमी है।
नेताओं की रैली हो, जुलूस हो, या फिर कोई झगड़ा, सड़क थिएटर भी है, जहाँ हर कोई दर्शक और अभिनेता दोनों बन जाता है। सड़क रील्स फोटोशूट का स्टूडियो भी है। सड़क पशु मेला भी है जहाँ गाय, भैंस, कुत्ते, बैल सभी को विचरण की आज़ादी है। बरसात में सड़क स्विमिंग पूल भी है और वाटर पार्क भी।
सड़क को जड़ न समझिये, ये तो एक जीवंत चीज है क्योंकि सड़क चलती है, रूकती है, कहीं जाती है, कहीं से आती है, ये बन्द होती है और खुलती भी है। सड़क उपाधि है और विशेषण भी - लोग सड़क छाप होते हैं, सड़क से उठे होते हैं, सड़क पर आ जाते हैं या सड़क पर उतर आते हैं। सड़क बहुत कुछ है। किसी के गाल की तरह है तो चंद्रमा के गड्ढों के मानिंद भी है।
अब क्या क्या गिनाएं? ज़रा सोचिए, सड़क न होती तो क्या होता? इंसान कितना मजबूर होता, कितना अकेला होता, कितना मजलूम होता, कितना गरीब होता। कितने ही धन्य हैं सड़क ईजाद करने वाले और कितने ही परम धन्य हैं सड़क के नायाब इस्तेमाल करने - कराने वाले। हम कितने ही कृतज्ञ हैं उन सभी के जिन्होंने हमें चलने के लिए कहीं कहीं फुटपाथ पर कुछ इंच जगह छोड़ रखी है। सड़क पर गाड़ियों के लिए कुछ चंद फुट जगह छोड़ रखी है। हम तो कहते हैं कि वो चंद फुट भी इस्तेमाल कर लो। सड़क और चौड़ी कर दी जाएगी। जब वो भी घर-दुकान हो जाएगी तो सड़क के ऊपर सड़क बन जाएगी। सड़क के ऊपर मेट्रो चल जाएगी। कतई परेशान न हो। सड़क का एक एक इंच इस्तेमाल कर लो। सड़क लाइफ लाइन है।
ज़रा सोचिए सड़क स्थायी हो जाये, सिर्फ और सिर्फ चलने और चलाने को समर्पित हो जाये तो क्या होगा? आफत आ जायेगी, भुखमरी फैल जाएगी, जीडीपी नेगेटिव में डूब जाएगी। अमर होने का रास्ता बंद हो जायेगा। हम तो कहते हैं, और सड़क बनाओ, और फुटपाथ बनाओ। यही रोजगार देंगे,यही आशियाने देंगे, यही मनोरंजन देंगे, यही शौच स्थल बनेंगे। कुछ बनाओ न बनाओ, सड़क ज़रूर बनाओ। हैरानी की बात है कि अब तक मुल्क में ‘सड़क पार्टी’ क्यों नहीं बनी। यही वक्त की मांग है। जनता पहले से ही सड़क पर है अब सड़क सरकार भी हो जाये।या सड़क पर सरकार भी आ जाये।
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