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Bridge Collapse in India: साल दर साल कैसे बढ़ रही है पुल में होने वाले हादसों की संख्या, क्या कहते हैं आँकड़े, आइए देखें
India Bridge Collapse Incidents: बीते दो दशकों में कई बार ये पुल त्रासदी का कारण बने, जिनमें सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
Bridge Collapse Incidents Increasing Reason
India Bridge Collapse Incidents: भारत, जहां नदियां और पहाड़ देश के कोने-कोने को जोड़ते हैं, वहां पुल न केवल कंक्रीट और स्टील के ढांचे हैं, बल्कि लोगों की जिंदगियों, सपनों और उम्मीदों का आधार भी हैं। ये पुल शहरों को गांवों से, परिवारों को अपनों से जोड़ते हैं। लेकिन, बीते दो दशकों में कई बार ये पुल त्रासदी का कारण बने, जिनमें सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। 2000 से 2025 तक भारत में हुए कुछ प्रमुख पुल हादसों ने न केवल इंजीनियरिंग की कमजोरियों को उजागर किया, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्टाचार और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति हमारी तैयारी पर भी सवाल उठाए। इस दौर में भारत में बुनियादी ढांचे का विकास तेजी से हो रहा था, लेकिन कई पुराने पुलों की स्थिति और नए निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे थे।
2001 - कदलुंडी रेल पुल हादसा, केरल
21 जुलाई 2001 को केरल के कदलुंडी नदी पर बना रेल पुल उस समय ढह गया, जब चेन्नई जाने वाली मैंगलोर मेल उससे गुजर रही थी। इस हादसे में आठ बोगियां पटरी से उतर गईं और नदी में गिर गईं। 57 लोगों की जान चली गई और दर्जनों घायल हुए। जांच में पुरानी संरचना और खराब रखरखाव को जिम्मेदार ठहराया गया। यह हादसा एक शुरुआती चेतावनी थी कि पुराने रेल पुलों की स्थिति पर ध्यान देना जरूरी है।
2002 - रफीगंज रेल पुल हादसा, बिहार
10 सितंबर 2002 को बिहार के रफीगंज में एक रेल पुल पर कोलकाता से नई दिल्ली जा रही राजधानी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस हादसे में 130 लोगों की जान गई। पुल की संरचना और रेलवे की लापरवाही को इसका कारण माना गया। यह हादसा भारत के रेल इतिहास में सबसे दुखद घटनाओं में से एक था।
2007 - गोवा का पुल हादसा
गोवा में मांडवी नदी पर बना एक निर्माणाधीन पुल ढह गया, जिसमें 5 मजदूरों की जान चली गई। यह हादसा निर्माण के दौरान सुरक्षा मानकों की अनदेखी का नतीजा था। हालांकि यह हादसा छोटा था, लेकिन इसने निर्माण कार्यों में लापरवाही की समस्या को उजागर किया।
2011 - अरुणाचल प्रदेश का पैदल पुल हादसा
29 अक्टूबर 2011 को अरुणाचल प्रदेश में कामेंग नदी पर बना एक पैदल पुल ढह गया। इस हादसे में 30 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर बच्चे थे, जो स्थानीय कीट ‘तारी’ को पकड़ने के लिए पुल पर थे। यह हादसा दार्जीलिंग में हुए एक अन्य पुल हादसे के ठीक एक हफ्ते बाद हुआ, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया।
2013 - मालदा, पश्चिम बंगाल:
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में गंगा नदी पर बना एक पुराना पुल ढह गया, जिसमें 11 लोग मारे गए और कई घायल हुए। स्थानीय लोगों ने पहले ही प्रशासन को पुल की खराब स्थिति के बारे में चेतावनी दी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। भारी बारिश और ट्रैफिक ने इसकी नींव को कमजोर कर दिया था।
2016 - महाद, महाराष्ट्र:
2 अगस्त 2016 को महाराष्ट्र के महाद में सावित्री नदी पर बना एक पुराना पुल भारी बारिश के कारण ढह गया। इस हादसे में दो बसें और कई अन्य वाहन नदी में बह गए और 42 लोगों की जान चली गई। यह ब्रिटिश काल का पुल था, जिसका रखरखाव ठीक नहीं था। इस हादसे ने पुराने ढांचों की मरम्मत की जरूरत को फिर से उजागर किया।
2018 - मुंबई का अंधेरी ब्रिज हादसा
3 जुलाई 2018 को मुंबई में अंधेरी रेलवे ब्रिज का एक हिस्सा सुबह के व्यस्त समय में ढह गया। इस हादसे में 5 लोगों की जान गई और कई घायल हुए। भारी बारिश और पुरानी संरचना को इसकी वजह माना गया। मुंबई जैसे मेट्रो शहर में हुए इस हादसे ने शहरी बुनियादी ढांचे की कमजोरियों को सामने लाया।
2018 - कोलकाता का माझेरहाट ब्रिज हादसा:
4 सितंबर 2018 को कोलकाता में माझेरहाट ब्रिज का एक हिस्सा ढह गया, जिसमें 3 लोग मारे गए और 24 घायल हुए। यह ब्रिज शहर के सबसे व्यस्त इलाकों में था और इसकी पुरानी संरचना और भारी ट्रैफिक को हादसे का कारण माना गया। इसने पूरे देश में पुराने पुलों की स्थिति पर बहस छेड़ दी।
2018 - वाराणसी का फ्लाईओवर हादसा:
15 मई 2018 को वाराणसी में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर का हिस्सा ढह गया, जो एक व्यस्त सड़क पर गिरा। इस हादसे में 18 लोगों की जान चली गई। खराब निर्माण सामग्री और ठेकेदार की लापरवाही को इसका कारण बताया गया। यह हादसा नई परियोजनाओं में गुणवत्ता की कमी को दर्शाता है।
2020 - सत्तारघाट पुल हादसा, बिहार
बिहार के गोपालगंज में सत्तारघाट पुल, जिसका उद्घाटन 16 जून 2020 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था, मात्र 29 दिन बाद ढह गया। 8 साल में 14 करोड़ की लागत से बना यह पुल प्राकृतिक आपदा और निर्माण कंपनी की लापरवाही का शिकार हुआ। स्थानीय लोगों ने पहले ही इसकी कमजोर नींव के बारे में चेतावनी दी थी, लेकिन प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया।
2022 - मोरबी केबल ब्रिज हादसा, गुजरात:
30 अक्टूबर 2022 को गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बना एक केबल सस्पेंशन ब्रिज ढह गया। यह ब्रिटिश काल का पुल था, जिसे हाल ही में मरम्मत के बाद 26 अक्टूबर को खोला गया था। इस हादसे में 135 लोगों की जान गई, जिनमें बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग शामिल थे। जांच में मरम्मत में लापरवाही, खराब सामग्री और ओवरलोडिंग को जिम्मेदार ठहराया गया। यह भारत के सबसे दुखद पुल हादसों में से एक था।
2023 - भागलपुर पुल हादसा, बिहार:
4 जून 2023 को बिहार के भागलपुर में गंगा नदी पर बन रहा एक निर्माणाधीन पुल ढह गया। 1717 करोड़ की लागत से बन रहा यह पुल खगड़िया और सुल्तानगंज को जोड़ने वाला था। यह दूसरी बार था जब इस पुल का एक हिस्सा ढहा, पहली बार 2022 में भी इसका एक हिस्सा गिरा था। हालांकि इस हादसे में कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन यह भ्रष्टाचार और खराब निर्माण का जीता-जागता उदाहरण था।
2024 - बिहार में एक दिन में 5 पुल ढहे:
3 जुलाई 2024 को बिहार के सीवान और सारण जिलों में एक ही दिन में 5 छोटे-बड़े पुल ढह गए। इनमें से कुछ पुराने थे, जैसे सीवान का तेघड़ा-टेवथा पुल, तो कुछ निर्माणाधीन थे। इन हादसों ने बिहार सरकार को कटघरे में खड़ा किया और भ्रष्टाचार के आरोपों को हवा दी।
2025 - गंभीरा-मुजपुर ब्रिज हादसा, गुजरात
9 जुलाई 2025 को गुजरात के वडोदरा में महिसागर नदी पर बना 43 साल पुराना गंभीरा-मुजपुर ब्रिज ढह गया। इस हादसे में 11 से 15 लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। पांच वाहन नदी में गिर गए, जिनमें एक ट्रक और एक टैंकर शामिल थे। प्रारंभिक जांच में संरचनात्मक कमजोरी और नींव की दरार को कारण बताया गया। पिछले साल इस पुल की मरम्मत हुई थी, लेकिन यह हादसा मोरबी की त्रासदी की याद दिलाता है। गुजरात सरकार ने चार इंजीनियरों को निलंबित किया और जांच के आदेश दिए।
हादसों के कारण: एक गहरी नजर
इन हादसों के पीछे कई कारण सामने आए हैं, जो बार-बार दोहराए गए हैं:
पुरानी संरचनाएं: भारत में कई पुल ब्रिटिश काल के हैं, जो आज के भारी ट्रैफिक और पर्यावरणीय दबाव को झेलने के लिए डिजाइन नहीं किए गए थे।
प्राकृतिक आपदाएं: भारी बारिश, बाढ़ और भूकंप ने कई पुलों को नुकसान पहुंचाया। एक अध्ययन के अनुसार, 80.3% पुल प्राकृतिक आपदाओं के कारण ढहे।
खराब रखरखाव: नियमित निरीक्षण और मरम्मत की कमी ने छोटी समस्याओं को बड़े हादसों में बदल दिया।
भ्रष्टाचार और लापरवाही: ठेकेदारों द्वारा सस्ती सामग्री का उपयोग और निर्माण में मानकों की अनदेखी आम रही है।
ओवरलोडिंग: पुराने पुलों पर भारी वाहनों का दबाव उनकी क्षमता से अधिक रहा।
जिंदगियों से ज्यादा का नुकसान
इन हादसों ने न केवल जिंदगियां छीनीं, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाला:
जनहानि: 2012 से 2021 तक 285 लोग और 2022 में मोरबी में 135 लोगों की जान गई। 2025 के वडोदरा हादसे में भी 15 लोगों की मौत हुई।
आर्थिक नुकसान: पुल ढहने से यातायात बाधित होता है, जिससे व्यापार और दैनिक जीवन प्रभावित होता है।
विश्वास की कमी: बार-बार होने वाले हादसों से लोगों का प्रशासन और बुनियादी ढांचे पर भरोसा टूट रहा है।
सामाजिक प्रभाव: हर हादसे के बाद परिवार टूटते हैं और लोग अपने अपनों को खोने का दर्द सहते हैं।
इन त्रासदियों से बचने के लिए हमें ठोस कदम उठाने होंगे:
नियमित निरीक्षण: सभी पुराने और नए पुलों का समय-समय पर तकनीकी ऑडिट होना चाहिए।
आधुनिक तकनीक: ड्रोन और सेंसर से पुलों की रियल-टाइम निगरानी होनी चाहिए।
कड़े नियम: भ्रष्टाचार और लापरवाही करने वालों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए।
बेहतर डिजाइन: नए पुलों में प्राकृतिक आपदाओं और भारी ट्रैफिक को ध्यान में रखकर डिजाइन बनाए जाएं।
जागरूकता: स्थानीय लोगों को पुलों की स्थिति की शिकायत करने के लिए आसान मंच मिलना चाहिए।
2000 से 2025 तक भारत में हुए पुल हादसों ने हमें बार-बार चेतावनी दी है कि सुरक्षा और गुणवत्ता से समझौता नहीं करना चाहिए। ये हादसे हमें सिखाते हैं कि विकास के साथ-साथ जवाबदेही और जिम्मेदारी भी जरूरी है। आइए, हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जहां हर सफर सुरक्षित हो और हर पुल उम्मीद का प्रतीक बने, न कि त्रासदी का।
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