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Dharmasthala Murder Case: एक चौंकाने वाला खुलासा जिसने देश को हिला दिया, सैकड़ों शव दफनाने के रहस्य का पर्दाफाश
Dharmasthala Murder Case Story: धर्मस्थल (Dharmasthala) कर्नाटक राज्य के दक्षिण कन्नड़ जिले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है जो मंगलुरु (Mangalore) शहर से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
Dharmasthala Murder Case Story
Dharmasthala Murder Case Story: कर्नाटक का धर्मस्थल (Dharmasthala) न केवल एक धार्मिक तीर्थ-स्थान के रूप में प्रसिद्ध है बल्कि यहां पर स्थित मंजूनाथेश्वर (Manjunath) मंदिर को भी पवित्रता, समाजसेवा और सांस्कृतिक धरोहर के केंद्र के रूप में देखा जाता है। लेकिन हाल ही में धर्मस्थल से जुड़े एक हृदयविदारक प्रकरण ने न सिर्फ कर्नाटक, बल्कि पूरे भारत को झकझोर दिया है। एक पूर्व सफाईकर्मी के सनसनीखेज खुलासे के बाद आरोप लगे कि धर्मस्थल क्षेत्र में 100 से अधिक महिलाओं के शव दफनाए गए थे जिनमें से कईयों के साथ बलात्कार के बाद हत्या की गई थी।
यह रिपोर्ट इस पूरे मामले का गहराई से विश्लेषण प्रस्तुत करती है जिसमे घटनाक्रम, जांच, राजनीतिक-प्रशासनिक प्रतिक्रियाएँ, सामाजिक प्रभाव और अब तक की नवीनतम स्थिति जैसे विभिन्न पहलुओं का समावेश है ।
धर्मस्थल और मंजूनाथेश्वर मंदिर का इतिहास
कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ ज़िले में स्थित धर्मस्थल न केवल एक प्रमुख तीर्थस्थल है बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक समरसता का अद्वितीय प्रतीक भी है। नेत्रावती नदी के किनारे बसे इस नगर का प्राचीन नाम ‘कुदुमा’ था और इसे कभी जैन बंट सरदार बिरमन्ना पेरगडे के अधीन माना जाता था। एक लोककिंवदंती के अनुसार, पेरगडे को चार स्थानीय धर्मदाई देवताओं कालारहु, कालार्कायि, कुमारस्वामी और कन्याकुमारी से दिव्य आदेश मिला कि वे इस क्षेत्र को धर्म, सेवा और न्याय का केंद्र बनाएं। इसी आदेश के पालन में यहाँ धार्मिक व्यवस्था की नींव पड़ी। धर्मस्थल का प्रसिद्ध मंजूनाथेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जिन्हें मंजूनाथ के रूप में पूजा जाता है। यह शिवलिंग कादरी (मैंगलोर) से लाया गया था और मंदिर की पूजा-विधि वैदिक परंपरा का पालन करने वाले माधव ब्राह्मणों द्वारा की जाती है, जबकि इसका प्रशासन जैन बंट हेगड़े परिवार के हाथों में है। इस मंदिर के वर्तमान धर्माधिकारी वीरेंद्र हेगड़े हैं जो सेवा और संस्कृति को आगे बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। धर्मस्थल न केवल धार्मिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यहाँ अन्नदान, शिक्षा, चिकित्सा और सामाजिक सहायता जैसे कार्य भी दशकों से नियमित रूप से होते आ रहे हैं। केरल शैली की लकड़ी और पत्थर से बनी इसकी वास्तुकला, और देवी अम्मनवारु, तीर्थंकर चंद्रप्रभ तथा अन्य लोकदेवताओं के मंदिर इस परिसर को और भी समृद्ध बनाते हैं।
प्रकरण का खुलासा - कैसे सामने आया मामला
जून 2025 में कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ ज़िले स्थित धर्मस्थल मंदिर से जुड़ा एक अत्यंत गंभीर और स्तब्ध कर देने वाला मामला सामने आया। मंदिर में 1995 से 2014 तक कार्यरत एक पूर्व सफाईकर्मी (जो दलित समुदाय से है) ने धर्मस्थला पुलिस के समक्ष एक विस्तृत शिकायत दर्ज करवाई। जिसमें उसने मंदिर प्रशासन पर अनेक महिलाओं और बालिकाओं के शवों से संबंधित गंभीर आरोप लगाए। उसकी गवाही के अनुसार उसे लगातार जान से मारने की धमकियाँ देकर मंदिर परिसर के भीतर 100 से अधिक महिलाओं और किशोरियों के शवों को जलाने और दफनाने के लिए मजबूर किया गया। उसने दावा किया कि इनमें से अधिकांश महिलाओं के साथ हत्या से पहले बलात्कार किया गया था और उनके मृत शरीरों पर चोट के गहरे निशान, हिंसा के प्रमाण और गला दबाए जाने के चिह्न स्पष्ट रूप से दिखाई देते थे।
शिकायतकर्ता द्वारा दायर बयान में कुछ विवरण बेहद भयावह हैं। उसने उल्लेख किया कि एक किशोरी, जिसकी उम्र लगभग 12 से 15 वर्ष के बीच थी, को उसकी स्कूल यूनिफार्म में ही दफना दिया गया था। उस किशोरी के शरीर पर यौन हमले और गला घोंटने के संकेत मौजूद थे जबकि उसका अंगवस्त्र और अंडरवियर गायब थे, जिससे यौन हिंसा की संभावना और भी स्पष्ट होती है। शिकायतकर्ता का कहना है कि जब उसने इन क्रियाओं का विरोध किया या सवाल उठाए, तो उसे और उसके परिवार को मारने की धमकी दी गई। उसने अपनी सुरक्षा के लिए वर्षों तक राज्य से बाहर रहकर गुमनामी की ज़िंदगी जी।
मामला कई स्तरों पर जाँच के अधीन है और सत्यता की पुष्टि के लिए विस्तृत जांच चल रही है। फिर भी शिकायत में उठाए गए आरोप इतने गंभीर हैं कि उन्होंने सामान्य जनमानस को हिला कर रख दिया है।
घटना के मुख्य बिंदु
• वर्ष 1995 से 2014 के बीच विशेष रूप से 1998 के बाद से लगभग 16 वर्षों में कई मौतें हुईं और शवों को मंदिर परिसर के भीतर, धर्मस्थल क्षेत्र के जंगलों में, या नेत्रवती नदी के किनारे दफनाया या जलाया गया।
• सफाईकर्मी द्वारा लगाए गए आरोपों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बलात्कार, यौन शोषण, मारपीट, गला घोंटना और कुछ मामलों में चेहरा जलाने जैसी भयावह घटनाएं हुई थीं।
• शिकायतकर्ता ने बयान दिया कि उसे और एक अन्य महिला कर्मचारी को लगातार धमकियाँ दी गईं ताकि वे चुप रहें।
• उसे पीड़िताओं के शवों को जलाने या गुप्त रूप से दफनाने का आदेश दिया जाता था।उसने ये भी कहा कि एक कर्मचारी अचानक गायब हो गया था, जब उसने विरोध करने की कोशिश की।
• शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि मंदिर प्रशासन के कुछ प्रभावशाली सदस्य, स्थानीय रसूखदार लोग, और संभवतः पुलिस या राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोगों की मिलीभगत से इन गतिविधियों को छुपाया गया।
अदालत और पुलिस में शिकायत
इस गंभीर मामले में शिकायतकर्ता ने न केवल सनसनीखेज आरोप लगाए बल्कि अपने दावों के समर्थन में ठोस सबूत भी प्रस्तुत किए हैं। पूर्व सफाईकर्मी ने पुलिस और मीडिया के समक्ष कथित मानव हड्डियाँ, कुछ फोटोग्राफ्स और मंदिर प्रशासन से जुड़ा अपना सेवा प्रमाणपत्र (service certificate) सौंपा, जो यह दर्शाते हैं कि वह घटनास्थल पर कार्यरत था। इन सबूतों को फॉरेंसिक जांच के लिए विशेष जांच टीम (SIT) ने अपने कब्जे में ले लिया है। शिकायत में यह भी कहा गया है कि शवों को जानबूझकर ऐसे स्थानों पर दफनाया गया जहां मिट्टी गीली और नरम थी, ताकि समय के साथ वे गल जाएं और कभी बरामद न हो सकें। यह पूरी प्रक्रिया एक सुनियोजित साजिश के रूप में सामने आई है जिसका उद्देश्य साक्ष्य मिटाना था। गवाही देने के बाद शिकायतकर्ता और उसके परिवार को जान का खतरा महसूस हुआ जिसके चलते प्रशासन ने उन्हें पुलिस संरक्षण प्रदान किया है। वर्षों तक राज्य से बाहर रहने के बाद अब वह सुरक्षित माहौल में वापस लौटकर न्याय की मांग के साथ सामने आया है।
जांच-पड़ताल और एसआईटी का गठन
धर्मस्थल प्रकरण सामने आते ही पूरे देश में आक्रोश की लहर दौड़ गई। कर्नाटक सहित विभिन्न राज्यों में जनसंगठनों और नागरिक समाज की ओर से तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिली, जिससे राज्य सरकार पर तत्काल कार्रवाई का दबाव बना। इस बढ़ते जनविरोध और मीडिया की सतत रिपोर्टिंग के बीच जुलाई 2025 में कर्नाटक सरकार ने चार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों वाली विशेष जांच टीम (SIT) का गठन किया। इस SIT का नेतृत्व कर्नाटक काडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी DGP प्रणब मोहंती कर रहे हैं । जांच टीम को व्यापक अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं, जिनमें आरोपों की बारीकी से छानबीन, प्राप्त हड्डियों और अवशेषों का फोरेंसिक परीक्षण, संभावित दफन स्थलों की खुदाई, पीड़ित परिवारों, प्रत्यक्षदर्शियों और संदिग्ध कर्मचारियों से पूछताछ तथा संपूर्ण जांच प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना शामिल है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया
धर्मस्थल प्रकरण के सामने आते ही स्थानीय समुदाय विशेषकर पीड़ित परिवारों और युवाओं के बीच जबरदस्त आक्रोश फैल गया। धर्मस्थल, बेल्थंगडी और उजिरे जैसे आसपास के क्षेत्रों में लोगों ने मंदिर परिसर के बाहर शांतिपूर्ण लेकिन भावनात्मक विरोध प्रदर्शन किए। कई माता-पिता और परिजनों ने अपनी गुमशुदा बेटियों और बहनों की तस्वीरें थामकर न्याय की मांग की और 'हमारी बेटियों को वापस दो' जैसे मार्मिक नारों के पोस्टर पूरे क्षेत्र में दिखाई देने लगे। इस घटनाक्रम ने महिला संगठनों और मानवाधिकार संस्थाओं का भी ध्यान आकर्षित किया। कर्नाटक राज्य महिला आयोग ने इस मामले को अत्यंत गंभीर मानते हुए स्वतंत्र और उच्चस्तरीय जांच की मांग की, जबकि राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) और NHRC जैसे संस्थानों ने भी स्वतः संज्ञान लेकर सरकार से रिपोर्ट तलब करने की प्रक्रिया शुरू की। इन संस्थाओं ने अपने बयानों में स्पष्ट रूप से कहा कि धार्मिक स्थलों के 'पवित्र आवरण' के भीतर यदि यौन हिंसा और अपराध छिपे हों तो उन्हें किसी भी हाल में माफ़ नहीं किया जा सकता। वहीं मंदिर प्रशासन की ओर से अब तक संयमित और जांच-सहयोगी रुख देखा गया है। उनके आधिकारिक बयान में कहा गया है कि वे इन आरोपों से स्तब्ध हैं लेकिन सत्य की खोज में सरकार और जांच एजेंसियों का पूरा साथ देंगे और यदि कोई दोषी पाया जाता है, तो उसे दंडित किया जाएगा।
मीडिया और सोशल मीडिया में विवाद
धर्मस्थल प्रकरण के सार्वजनिक होते ही सोशल मीडिया पर भारी बहस, अफवाहें और भ्रामक जानकारी की बाढ़ आ गई। विशेष रूप से यूट्यूब चैनलों पर कुछ कन्नड़ कंटेंट क्रिएटर्स ने बिना किसी सत्यापन के आरोपात्मक वीडियो, एडिटेड क्लिप्स और सनसनीखेज सामग्री प्रसारित की, जिससे मामले की निष्पक्षता और सामाजिक सौहार्द पर नकारात्मक असर पड़ा। इन घटनाओं को देखते हुए कर्नाटक पुलिस की सोशल मीडिया सेल सक्रिय हुई और कई यूट्यूबर्स व सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस का कहना है कि कुछ वीडियो धार्मिक तनाव भड़काने और जांच को प्रभावित करने की दिशा में थे। राज्य के कानून एवं व्यवस्था के ADGP ने सभी जिलों को सोशल मीडिया पर निगरानी तेज करने के निर्देश भी दिए। इस बीच एक और चिंताजनक स्थिति तब उत्पन्न हुई जब शिकायतकर्ता द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए गोपनीय बयान, कोर्ट में जमा किए गए साक्ष्य और फोरेंसिक सबूत सोशल मीडिया पर लीक हो गए। इससे न केवल गवाहों की सुरक्षा खतरे में पड़ी बल्कि मामले की निष्पक्षता और ट्रायल की प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े हो गए। पुलिस ने इन लीक वीडियो और पोस्ट्स को हटाने की प्रक्रिया शुरू की और संबंधित जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान कर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा रही है। सोशल मीडिया पर गोपनीयता का उल्लंघन इस मामले में एक प्रमुख संवेदनशील बिंदु बनकर उभरा है। जिस पर सरकार, न्यायपालिका और सुरक्षा एजेंसियां अब बेहद सतर्क हो गई हैं।
गुमशुदा लड़कियों का दु:खद डेटा
खबर है कि बीते दो दशकों में धर्मस्थल क्षेत्र और आसपास के इलाकों से लगभग 400 महिलाएँ गायब या मृत पाई गईं, जिनमें से अधिकांश मामलों की ना जांच हुई और ना ही न्याय मिला। चिंता की बात यह है कि इन मामलों में न तो समय पर एफआईआर दर्ज की गई और न ही निष्पक्ष जांच की गई। जिससे पीड़ित परिवार न्याय की आस में दर-दर भटकते रहे। इन घटनाओं में एक समान पैटर्न यह देखने को मिला कि गायब हुई अधिकतर महिलाएँ गरीब, दलित या कमजोर तबके से थीं, जिनकी शिकायतों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया गया।
2012 में हुए सौजन्या कांड इस पूरे प्रकरण का सबसे चर्चित और भयावह उदाहरण है।सौजन्या जो श्री धर्मस्थल मंजूनाथेश्वर कॉलेज की छात्रा थी, 2012 में लापता हो गई थी और अगली सुबह उसका शव पेड़ से बंधा, अधजली हालत और स्पष्ट हिंसा के निशान के साथ मिला था। इस मामले में पुलिस, CID और CBI तीनों ने जांच की, लेकिन कोई दोषी साबित नहीं हो सका; पीड़ित परिवार आज भी न्याय की प्रतीक्षा में है।
वर्तमान स्थिति और आगे की राह
धर्मस्थल कांड की गंभीरता को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है जिसकी कमान वरिष्ठ पुलिस अधिकारी प्रणब मोहंती को सौंपी गई है। सरकार ने 'जनता का विश्वास', 'सत्य और पारदर्शिता' तथा 'त्वरित न्याय' का आश्वासन दिया है । लेकिन पीड़ित परिवार आज भी स्पष्टता और न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। SIT को व्यापक अधिकार दिए गए हैं जिनमें अवशेषों का डीएनए परीक्षण, फोरेंसिक जांच और शवों की शिनाख्त जैसी वैज्ञानिक प्रक्रियाएँ शामिल हैं। यह संकेत देता है कि पीड़ितों की पहचान और संभावित अपराधियों की साजिश की गहराई से पड़ताल की जाएगी। मंदिर प्रशासन और स्थानीय अधिकारियों की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच की जाएगी ताकि यह तय हो सके कि कहीं कोई लापरवाही या मिलीभगत तो नहीं हुई। यदि जांच में दोष सिद्ध होते हैं तो संबंधित व्यक्तियों को कानून के अनुसार सजा दिलाना संभव होगा। यह मामला न केवल धर्मस्थल क्षेत्र तक सीमित रह गया है बल्कि पूरे राज्य में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता और जागरूकता की लहर उत्पन्न कर चुका है।
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