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भारत पर बड़ा खतरा, BARC से गिरफ्तार फर्जी वैज्ञानिक के पास मिला न्यूक्लियर डेटा और 14 खुफिया नक्शे
मुंबई पुलिस ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) से एक फर्जी वैज्ञानिक को गिरफ्तार किया है, जिसके पास से संदिग्ध परमाणु डेटा और 14 खुफिया नक्शे मिले हैं। यह गिरफ्तारी देश की परमाणु सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा मानी जा रही है।
Fake nuclear scientist arrested: देश के प्रमुख परमाणु शोध संस्थान भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) से एक 'फर्जी वैज्ञानिक' की गिरफ्तारी ने राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी है। मुंबई पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए इस शख्स, अख्तर कुतुबुद्दीन हुसैनी, के पास से जो चीजें बरामद हुई हैं, वे गंभीर चिंता का विषय हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, फर्जी वैज्ञानिक बने अख्तर के पास से संदेहास्पद परमाणु डेटा और BARC तथा उसके आसपास के इलाके के 14 खुफिया नक्शे पाए गए हैं। पुलिस अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि बरामद हुए ये संवेदनशील दस्तावेज कितनी महत्वपूर्ण जानकारी रखते हैं और कहीं इनका इस्तेमाल किसी गलत इरादे से तो नहीं किया गया है। यह घटना देश की सबसे सुरक्षित जगहों में सेंधमारी का एक गंभीर मामला है।
फर्जी पहचान का जाल और BARC में सेंध
अख्तर कुतुबुद्दीन हुसैनी को पिछले सप्ताह वर्सोवा से गिरफ्तार किया गया था। वह लगातार अपनी पहचान बदलता रहा था और खुद को परमाणु वैज्ञानिक बताता था। जांच में सामने आया है कि उसके पास से कई फर्जी पासपोर्ट, आधार कार्ड और पैन कार्ड बरामद हुए हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उसके पास से भाभा रिसर्च सेंटर के भी कई फर्जी आईडी कार्ड मिले हैं।
माना जा रहा है कि इन्हीं फर्जी दस्तावेजों के सहारे वह इस उच्च सुरक्षा वाले संस्थान में प्रवेश करता रहा होगा। उसकी कई फर्जी पहचानें सामने आई हैं:
एक फर्जी आईडी में उसका नाम अली राजा हुसैन है।
एक अन्य आईडी में उसने अपना नाम एलेक्जेंडर पाल्मर रखा हुआ है।
पुलिस अब उसके कॉल रिकॉर्ड्स की गहन जांच कर रही है, क्योंकि सूत्रों के मुताबिक उसने पिछले कुछ महीनों में कई फर्जी पहचान पत्र बनवाए थे। यह साफ संकेत देता है कि वह किसी बड़े और गुप्त मिशन पर काम कर रहा था।
इंटरनेशनल नेटवर्क से जुड़ाव का संदेह
पुलिस को संदेह है कि फर्जी वैज्ञानिक बने अख्तर का किसी इंटरनेशनल नेटवर्क से संपर्क था और हो सकता है कि उसने इस बातचीत के दौरान संवेदनशील परमाणु जानकारियां साझा की हों। अख्तर हुसैनी के अतीत की जांच से पता चला है कि वह लंबे समय से अपनी पहचान बदलता रहा है और अलग-अलग जगहों पर नई पहचान के साथ रहता था।
उसके इतिहास में एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि उसे 2004 में दुबई से प्रत्यर्पित (Deported) किया गया था। उस समय भी उसने खुद को एक वैज्ञानिक बताया था और दावा किया था कि उसके पास कुछ गोपनीय दस्तावेज मौजूद हैं। यही नहीं, एक बार डिपोर्ट होने के बाद भी उसने फर्जी पासपोर्ट्स का इस्तेमाल करके दुबई, तेहरान समेत कई संवेदनशील जगहों की यात्रा की थी। यह उसके खतरनाक इरादों और अंतरराष्ट्रीय जासूसी नेटवर्क से संभावित जुड़ाव की ओर इशारा करता है।
30 साल पहले बेचे घर के पते पर फर्जी पासपोर्ट
अख्तर हुसैनी मूल रूप से झारखंड के जमशेदपुर का रहने वाला है। जांच में खुलासा हुआ है कि उसने अपना पैतृक घर 1996 में ही बेच दिया था। लेकिन इसके बावजूद, उसने अपने पुराने संपर्क में रहे लोगों की मदद से कई फर्जी दस्तावेज बनवाए। उसके भाई आदिल ने अख्तर का परिचय जमशेदपुर के ही मुनज्जिल खान से कराया था। पुलिस को संदेह है कि इसी शख्स ने अख्तर और उसके भाई के लिए दो फर्जी पासपोर्ट तैयार किए।
इन पासपोर्टों में अख्तर का नाम नसीमुद्दीन सैयद आदिल हुसैनी और उसके भाई का नाम हुसैनी मोहम्मद आदिल था। दोनों पासपोर्ट पर उस मकान का पता दर्ज था, जिसे उन्होंने 30 साल पहले ही बेच दिया था। पुलिस का कहना है कि दोनों भाई इन्हीं फर्जी दस्तावेजों के जरिए विदेश की यात्रा पर भी जाते थे। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, जांच एजेंसियां अब इस पूरे नेटवर्क की जड़ों तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि देश की परमाणु सुरक्षा के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ हुआ है।
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