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Donald Trump and Apple War: ट्रंप द्वारा एप्पल को दिया गया आमंत्रण या धमकी? मोदी के 'मेक इन इंडिया' पर अमेरिका का सीधा हमला
Donald Trump and Apple War: जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एप्पल को सार्वजनिक तौर पर यह कहा कि "अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स भारत में मत लगाओ, उन्हें अमेरिका में लगाओ", तो यह महज एक कारोबारी सुझाव नहीं था, बल्कि एक साफ-साफ संदेश था या यूं कहिए कि एक ‘चेतावनी’।
Donald Trump and Apple War
Donald Trump and Apple War: जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एप्पल को सार्वजनिक तौर पर यह कहा कि "अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स भारत में मत लगाओ, अमेरिका में ही उत्पादन बढ़ाओ ", तो यह महज एक कारोबारी सुझाव नहीं था, बल्कि एक साफ-साफ संदेश था या यूं कहिए कि एक ‘चेतावनी’। इस एक बयान ने वैश्विक राजनीति, तकनीकी निवेश, व्यापारिक समीकरण और भारत-अमेरिका-चीन के बीच की रणनीतिक गुत्थियों को एक बार फिर से सुर्खियों में ला दिया।डोनाल्ड ट्रम्प का यह बयान उस समय आया है जब एप्पल तेजी से चीन से अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हटाकर भारत में निवेश बढ़ा रहा है।
ग़ौरतलब है कि एप्पल ने चीन में 2001 में आधिकारिक तौर पर मैन्युफैक्चरिंग शुरू की थी। पहले iPod, फिर iMacs और बाद में iPhones का उत्पादन शुरू हुआ। इसका मुख्य साझेदार Foxconn है, जो ताइवान की कंपनी है।एप्पल हर साल दुनिया भर में करीब 22 करोड़ (220 मिलियन) iPhones बेचता है। इनमें से अब भी सबसे बड़ा हिस्सा चीन में बनता है, हालांकि भारत की हिस्सेदारी बढ़ रही है। चीन के झेंगझोउ (Zhengzhou) स्थित फैक्ट्री में एक दिन में लगभग 5 लाख iPhones बन सकते हैं।एप्पल के चीनी मैन्युफैक्चरिंग पार्टनर्स (जैसे Foxconn) चीन में 10 लाख (1 मिलियन) से ज्यादा लोगों को रोज़गार देते हैं। अकेले झेंगझोउ की फैक्ट्री में 90 से ज्यादा असेंबली लाइनें हैं और वहां हजारों लोग काम करते हैं।
चीन में एप्पल और उसके सप्लायर्स ने अरबों डॉलर का निवेश किया है।चीन सरकार ने भी टैक्स इंसेंटिव, सब्सिडी और स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन जैसी सुविधाएं दी हैं, जिससे एप्पल को निवेश और उत्पादन में मदद मिली है।पर बीते कुछ वर्षों में भारत ने जिस तरह से एप्पल को आकर्षित किया है, वह ना केवल 'मेक इन इंडिया' पहल की सफलता को दर्शाता है, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक साख का भी संकेत देता है।
एप्पल के iPhone असेंबली प्लांट्स मुख्य रूप से तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर, कर्नाटक में बेंगलुरु और उत्तर प्रदेश में नोएडा में हैं।नया $2.6 बिलियन का Foxconn प्लांट बेंगलुरु में बन रहा है, जहाँ iPhone 16 और 16e का उत्पादन होगा।Tata Electronics का नया प्लांट तमिलनाडु के होसुर में चालू हो गया है।Foxconn और HCL का $433 मिलियन का सेमीकंडक्टर प्लांट उत्तर प्रदेश में बनेगा, जो 2027 तक चालू होना है। Foxconn का बेंगलुरु प्लांट में $2.6 बिलियन (लगभग ₹21,600 करोड़)और Foxconn-HCL सेमीकंडक्टर प्लांट में $433 मिलियन (लगभग ₹3,700 करोड़) का निवेश हुआ है।
2025 के अंत तक एप्पल की भारतीय ऑपरेशंस से करीब 6 लाख नौकरियाँ की संभावना है, जिसमें 2 लाख डायरेक्ट जॉब्स होंगी।सिर्फ बेंगलुरु के नए Foxconn प्लांट में 2027 तक 50,000 लोगों को रोज़गार मिलेगा।Tata, Foxconn, Pegatron और अन्य सप्लायर मिलाकर अब तक 1.65 लाख डायरेक्ट जॉब्स बन चुकी हैं। भारत में अब एप्पल के कुल iPhone उत्पादन का 20% हिस्सा बनता है, और 2026-27 तक यह 32% तक जा सकता है।2024-25 में भारत में $22 बिलियन (करीब ₹1.8 लाख करोड़) के iPhones बने। 2024-25 के आंकड़ों के अनुसार भारत से निर्यात किए गए एप्पल फोनों की संख्या 1.5 करोड़ से अधिक थी। एप्पल भारत में iPhone 12, iPhone 13, iPhone 14, iPhone 15 और हाल ही में लॉन्च हुए iPhone 16 के कुछ वेरिएंट्स का निर्माण कर चुका है। लेकिन अब ट्रम्प की यह सीधी टिप्पणी, जिसमें उन्होंने एप्पल को अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग करने के लिए कहा है, उस रणनीति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है जिसे एप्पल बीते एक दशक से दुनिया भर में अपना रहा है।
क्यों खास है एप्पल फोन
iPhone महज एक स्मार्टफोन नहीं, बल्कि एक स्टेटस सिंबल और तकनीकी उत्कृष्टता का प्रतीक बन चुका है। एप्पल के डिवाइसेज़ अपनी कसी हुई डिजाइन, बेहतरीन कैमरा क्वालिटी, उच्च स्तरीय सिक्योरिटी फीचर्स, और IOS जैसे सुरक्षित ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए जाने जाते हैं। इसके साथ ही, फेस आईडी, एयरड्रॉप, iMessage, Apple Ecosystem (Mac, iPad, Apple Watch आदि से seamless connectivity), और privacy policies जैसी विशेषताएं एप्पल को बाकी स्मार्टफोन ब्रांड्स से अलग बनाती हैं।
एप्पल की शुरुआत और सफर
एप्पल की कहानी 1976 में स्टीव जॉब्स, स्टीव वॉज़निएक और रोनाल्ड वेन द्वारा शुरू की गई थी। हालांकि शुरुआत कंप्यूटर से हुई, लेकिन iPhone की लॉन्चिंग 2007 में हुई थी और तभी से यह टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक क्रांति बन गई। हर नए मॉडल के साथ एप्पल ने न केवल तकनीकी सीमाओं को आगे बढ़ाया बल्कि एक ऐसा ग्राहक वर्ग तैयार किया जो ब्रांड के प्रति वफादार रहा।
iPhone की इतनी डिमांड क्यों
iPhone की डिमांड के पीछे केवल तकनीक नहीं, बल्कि ब्रांड की स्ट्रैटेजिक मार्केटिंग, कस्टमर एक्सपीरियंस और प्रीमियम क्लास की ब्रांडिंग भी है। साथ ही, iOS का smooth performance, कम lag, और समय पर अपडेट मिलना उपभोक्ताओं को बार-बार iPhone की ओर आकर्षित करता है।
चीन से दूरी क्यों
चीन में एप्पल की बड़ी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स दशकों से काम कर रही थीं। लेकिन COVID-19 महामारी, अमेरिकी-चीन व्यापार युद्ध और चीन की अप्रत्याशित लॉकडाउन नीतियों ने एप्पल को अपने उत्पादन हब को diversify करने पर मजबूर कर दिया। इसके अलावा, चीन में बढ़ती मजदूरी, कामगारों की हड़ताल और राजनीतिक अनिश्चितता ने भी एप्पल को नए विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित किया।
भारत की भूमिका: ‘चाइना +1’ स्ट्रैटेजी का मुख्य स्तंभ
भारत को एप्पल ने अपने ‘चाइना +1’ रणनीति के तहत चुना है। इसका मतलब यह है कि कंपनी अब केवल चीन पर निर्भर नहीं रहना चाहती, बल्कि एक वैकल्पिक और विश्वसनीय उत्पादन केंद्र भी चाहती है। भारत में मजदूरी कम है, युवा कार्यबल प्रचुर मात्रा में है, सरकार ने PLI (Production Linked Incentive) स्कीम के तहत विशेष प्रोत्साहन दिए हैं और राजनीतिक रूप से भी भारत एक स्थिर लोकतंत्र है। मोदी सरकार ने एप्पल जैसे ब्रांड्स को आकर्षित करने के लिए 'मेक इन इंडिया' और 'डिजिटल इंडिया' जैसी पहलों के साथ तकनीकी माहौल तैयार किया। आज भारत में iPhone का उत्पादन केवल घरेलू मांग को पूरा नहीं कर रहा, बल्कि दुनिया भर में निर्यात हो रहा है। Apple के CEO टिम कुक ने भी भारत को भविष्य का बड़ा बाजार बताते हुए कहा है कि “भारत हमारे लिए अगला बड़ा अवसर है।”
ट्रम्प का बयान: धमकी या अमेरिकी हितों की रक्षा?
न्यूज एजेंसियों से मिली रिपोर्ट्स के मुताबिक , US प्रेसिडेंट ने कहा, 'हमें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं कि आप भारत में बिल्डिंग का काम करें। भारत खुद का ध्यान रख सकता है।' ट्रम्प ने कहा कि भारत में दुनिया के सबसे ऊंचे टैरिफ बैरियर्स में से एक है और दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में अमेरिकी प्रोडक्ट्स बेचना बहुत मुश्किल है। हालांकि, उन्होंने कहा कि भारत ने अमेरिकी सामान पर टैरिफ कम करने की पेशकश की है, क्योंकि ये एशियाई देश इम्पोर्ट टैक्स पर समझौता चाहता है। इसे सीधे-सीधे भारत के लिए एक चुनौती के रूप में देखा गया। लेकिन इस बयान के पीछे अमेरिका की घरेलू राजनीति और ट्रम्प की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का प्रभाव भी देखा जाना चाहिए। ट्रम्प बार-बार अमेरिका की कंपनियों से कह चुके हैं कि वे विदेशी निवेश बंद कर घरेलू उत्पादन बढ़ाएं। उनका मानना है कि इससे अमेरिकी लोगों को रोजगार मिलेगा और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। यह कहना कि ट्रम्प ने धमकी दी, शायद एक पक्षीय विश्लेषण होगा, लेकिन यह भी सच है कि इस बयान से भारत की तकनीकी महत्वाकांक्षा को झटका लग सकता है, अगर एप्पल जैसी कंपनियां दबाव में आकर अमेरिका में निवेश करना शुरू कर दें। हालांकि एप्पल का रवैया अब तक संतुलित रहा है और कंपनी किसी भी एक देश पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहती।
अगर अमेरिका में नहीं लगाता प्लांट, तो क्या होगा नुकसान?
अगर एप्पल अमेरिका में बड़ा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट नहीं लगाता, तो इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को रोजगार के अवसरों का नुकसान हो सकता है। ट्रम्प जैसे नेताओं का यही मुख्य तर्क है। साथ ही, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अमेरिका की स्वदेशी निर्भरता कमजोर हो सकती है। राजनीतिक रूप से भी यह मुद्दा चुनावी मैदान में गर्म रह सकता है, क्योंकि 'अमेरिका फर्स्ट' की भावना वहां आज भी गहराई से जुड़ी हुई है।
भारत को क्या मिलेगा और क्या खतरा है?
भारत को एप्पल से अभी तक दो बड़े फायदे हुए हैं — विदेशी निवेश और रोजगार। एप्पल और इसके सहयोगी कंपनियों ने भारत में हजारों नौकरियां पैदा की हैं। इसके अलावा, भारत वैश्विक टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग का हब बन रहा है। यदि अमेरिका का दबाव बढ़ता है और कंपनियां भारत से वापस जाने लगती हैं तो यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका हो सकता है। लेकिन फिलहाल भारत के पक्ष में माहौल ज्यादा मजबूत है।
ट्रम्प की आवाज़ से हिले हैं वैश्विक समीकरण
डोनाल्ड ट्रम्प का बयान यूं ही नहीं आया है। यह अमेरिका की घरेलू राजनीति, वैश्विक व्यापार युद्ध, टेक्नोलॉजी के वर्चस्व और भू-राजनीतिक जंग का हिस्सा है। एप्पल जैसी कंपनियां अब इन सभी शक्तियों के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रही हैं। भारत ने जिस तेजी से खुद को मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में प्रस्तुत किया है, वह सराहनीय है, लेकिन भविष्य में ऐसे कई ट्रम्प जैसे दबाव झेलने के लिए भी तैयार रहना होगा। भारत अब केवल एक बाज़ार नहीं, बल्कि एक ग्लोबल खिलाड़ी बन चुका है और एप्पल जैसी कंपनियों के लिए यह सिर्फ निवेश का ठिकाना नहीं बल्कि रणनीतिक साझेदार भी है। ऐसे में ट्रम्प के शब्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन उन्हें भारत के आत्मविश्वास को डिगाने की इजाजत भी नहीं दी जा सकती। iPhone अब केवल जेब में रखा जाने वाला एक डिवाइस नहीं है, बल्कि यह वैश्विक राजनीति, आर्थिक संतुलन और भू-रणनीतिक शक्ति का प्रतीक बन चुका है और भारत इस कहानी का अब एक अहम किरदार है।
ट्रंप के बयान का राजनीतिक लाभ
अगर एप्पल अमेरिका में उत्पादन बढ़ाता है तो स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, जिससे ट्रंप को घरेलू समर्थन मिल सकता है।’मेक इन USA’ जैसे नारों से ट्रंप की छवि मजबूत होती है कि वे अमेरिकी उद्योग और श्रमिकों के हित में काम कर रहे हैं।इससे अमेरिका की चीन पर निर्भरता घटेगी, जो ट्रंप की विदेश नीति का अहम हिस्सा है।
राजनीतिक हानि
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर iPhone अमेरिका में बना तो उसकी कीमत $1,500 से $3,500 (₹1.25 लाख से ₹3 लाख) तक जा सकती है, जिससे बिक्री पर नकारात्मक असर पड़ेगा।अमेरिका में चीन या भारत जैसी बड़ी संख्या में प्रशिक्षित मैन्युफैक्चरिंग वर्कर्स नहीं हैं, जिससे उत्पादन में दिक्कत आ सकती है।भारत जैसे देशों में उत्पादन सस्ता और तेज़ है, जिससे एप्पल को वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा में फायदा मिलता है। अमेरिका में उत्पादन से यह बढ़त कम हो सकती है। ट्रंप के लिए यह मुद्दा घरेलू राजनीति में लोकप्रियता बढ़ा सकता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से एप्पल के लिए अमेरिका में बड़े पैमाने पर iPhone बनाना मुश्किल और महंगा है। इससे कंपनी, उपभोक्ता और वैश्विक व्यापार सभी पर असर पड़ेगा।
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