पाकिस्तान को चटाई धूल! क्या है भारतीय वायुसेना का IACCS कमांड केंद्र, जिसके आगे दुश्मन के सारे हवाई हमले हुए फेल

What is Indian Air Defence Shield: ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान पाकिस्तान ने भारत की तरफ कई ड्रोन और मिसाइलें छोड़ीं लेकिन उन सभी को भारतीय वायुसेना द्वारा हवा में ही ध्वस्त कर दिया गया। इस सफलता के पीछे था IACCS ।

Jyotsna Singh
Published on: 16 May 2025 12:32 PM IST
India Pakistan War Indian Air Defence Shield IACCS
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India Pakistan War Indian Air Defence Shield IACCS

What is IACCS: हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान द्वारा भारत पर ड्रोन और मिसाइलों से किए गए हमले को भारतीय वायुसेना ने पूरी तरह से नाकाम कर दिया। हर एक खतरे को समय रहते पहचान कर निष्क्रिय कर दिया गया। इस सफलता के पीछे एक बेहद आधुनिक, स्वचालित और समन्वित प्रणाली थी वह थी...IACCS यानी Integrated Air Command and Control System। सेना द्वारा जारी की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में IACCS के कमांड सेंटर की तस्वीर ने सभी का ध्यान खींचा। लेकिन आखिर यह प्रणाली है क्या, कैसे काम करती है और कैसे बनती है भारत के हवाई क्षेत्र की पहली और आखिरी रक्षा पंक्ति? आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से -

क्या है IACCS?

IACCS (Integrated Air Command and Control System) भारतीय वायुसेना की एक अत्याधुनिक, डिजिटल, नेटवर्क-संचालित स्वचालित प्रणाली है, जिसे देश की वायु रक्षा का समन्वय करने के लिए तैयार किया गया है। यह सिस्टम भारतीय वायुसेना, थलसेना और नौसेना के वायु रक्षा संसाधनों को एक साझा नेटवर्क पर लाता है ताकि देश के किसी भी हिस्से में हवाई खतरे की तुरंत पहचान कर उसका प्रभावी जवाब दिया जा सके। यह प्रणाली रडार, सेंसर, उपग्रह, मिसाइल प्रणालियों, विमान और ग्राउंड कंट्रोल सेंटर जैसे सभी एयर डिफेंस तत्वों को एकीकृत करती है। इसका लक्ष्य है—देश की वायु सीमा पर किसी भी प्रकार की घुसपैठ या हमले को रोकना।

How IACCS works? IACCS कैसे काम करता है?


IACCS की कार्यप्रणाली एक जटिल लेकिन दक्ष प्रणाली पर आधारित है। यह प्रणाली उपग्रहों, विमानों, ग्राउंड रडार और कमांड पोस्ट से मिलने वाले डेटा को वास्तविक समय (real-time) में एकत्रित करती है। इसके बाद यह आंकड़ों का विश्लेषण कर यह तय करती है कि किस खतरे का कैसे और किन हथियार प्रणालियों से जवाब दिया जाए।

इसका इंटरफेस बेहद उन्नत है, जो विजुअल इमेजरी, ध्वनि, आंकड़ों और संदेशों के जरिए सेना के अधिकारियों को हवा में मौजूद हर वस्तु की सटीक जानकारी देता है। इसके जरिए खतरे की पहचान, प्राथमिकता निर्धारण और लक्ष्य पर हमला करने जैसे निर्णय कुछ ही सेकंड में लिए जा सकते हैं।

India has four layers of air defense system; भारत की वायु रक्षा प्रणाली की चार परतें

भारत की वायु रक्षा प्रणाली को चार परतों में विभाजित किया गया है, जो एक-दूसरे की पूरक हैं।

1. सबसे बाहरी परत

यह परत लंबी दूरी के खतरों से निपटने के लिए होती है। इसमें S-400 एयर डिफेंस सिस्टम, बराक-8, और सुखोई जैसे फाइटर जेट्स शामिल हैं। ये मिसाइलें और विमान सैकड़ों किलोमीटर दूर से ही दुश्मन के हथियारों को नष्ट कर सकते हैं।

2. मध्यम दूरी की परत

इसमें AKASH मिसाइल सिस्टम, MR-SAM, और अन्य मध्यम दूरी तक मार करने वाले एयर डिफेंस सिस्टम शामिल हैं। यह परत तब सक्रिय होती है जब दुश्मन की मिसाइल या ड्रोन बाहरी परत से बच निकलते हैं।

3. निकट दूरी की परत

यह परत छोटे और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले लक्ष्यों जैसे ड्रोन और हेलिकॉप्टरों के खिलाफ काम करती है। इसमें स्पाईडर (SPYDER), OSA-AK, और शॉर्ट रेंज मिसाइल सिस्टम शामिल होते हैं।

4. आंतरिक/पहली परत

यह आखिरी रक्षा पंक्ति होती है, जो खासकर आंतरिक सैन्य ठिकानों, एयरबेस और प्रमुख प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए होती है। इसमें शामिल होते हैं:

  • MANPADS (मैन-पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम), काउंटर-ड्रोन सिस्टम्स,
  • L-70 गन, ZSU-23 शिल्का, और टारगेट ट्रैकिंग रडार

IACCS की अहमियत

IACCS भारत की वायु रक्षा प्रणाली की रीढ़ है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता वास्तविक समय की स्थिति पर आधारित निर्णय क्षमता होती है। यह न केवल खतरों की तुरंत पहचान करता है, बल्कि विभिन्न रक्षा संसाधनों को आपस में जोड़ कर त्वरित और सटीक प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है। यह प्रणाली ऑटोमेटेड एयर डिफेंस सिस्टम को संचालित करती है।

  • विभिन्न सैन्य कमांड के बीच डाटा और सूचना साझा करने की क्षमता देती है।
  • यह सभी स्तरों पर बेहतर सामरिक समझ विकसित कर अधिकारियों को तेज निर्णय लेने में सक्षम बनाती है।

History of IACCS, IACCS का इतिहास


IACCS की आवश्यकता 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान महसूस हुई, जब भारत को अपने वायु क्षेत्र की सुरक्षा में समन्वय की कमी दिखी। इसके बाद

2003 में IACCS निदेशालय की स्थापना हुई। 2010 में AFNET (Air Force Network) शुरू हुआ, जो पुराने ट्रोपोस्कैटर सिस्टम की जगह आया। IACCS को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने विकसित किया है।

इस प्रणाली का विस्तार चरणबद्ध रूप में पूरे देश में किया गया, जिससे आज यह पैन-इंडिया एयर डिफेंस ग्रिड बन चुका है।

IACCS भारतीय वायुसेना की तकनीकी दक्षता, रणनीतिक दूरदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। आधुनिक युद्ध के दौर में, जब ड्रोन, हाइपरसोनिक मिसाइल और सैटेलाइट-गाइडेड बम जैसे हथियार आम हो चले हैं, IACCS भारत को एक ऐसा डिजिटल कवच प्रदान करता है, जो देश के हर कोने को आसमान से आने वाले खतरे से बचाने में सक्षम है।

आज जब भारत अपनी सीमाओं पर चौकन्ना है, तब IACCS जैसे प्लेटफॉर्म यह यकीन दिलाते हैं कि देश का आकाश सुरक्षित हाथों में है।

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