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India Turkey Tension: भारत-तुर्की में बिगड़े रिश्ते तो जानें किस देश को होगा सबसे ज्यादा नुकसान,आम जनता की जेब पर पड़ेगा सीधा असर! जानें कैसे
India Turkey Tension: कल्पना कीजिए कि एक सुबह आप अखबार खोलते हैं और पहले पन्ने पर मोटे अक्षरों में छपा है “भारत और तुर्की के बीच राजनयिक संबंध समाप्त”।
India Turkey Tension
India Turkey Tension: कल्पना कीजिए कि एक सुबह आप अखबार खोलते हैं और पहले पन्ने पर मोटे अक्षरों में छपा है “भारत और तुर्की के बीच राजनयिक संबंध समाप्त”। पहले तो शायद यह खबर आपको किसी फिल्म की स्क्रिप्ट जैसी लगे, लेकिन अगर ऐसा हुआ, तो इसके पीछे की कहानी और असर बेहद गंभीर और दूरगामी होंगे। आज की वैश्विक दुनिया में जब हर देश एक-दूसरे से व्यापार, डिप्लोमेसी, टेक्नोलॉजी और रक्षा के धागों से जुड़ा है, तब दो बड़े देशों के बीच रिश्तों का टूटना न सिर्फ दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए भूचाल जैसा हो सकता है।
भारत और तुर्की भले ही भौगोलिक रूप से दूर हों, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इनका टकराव या मेल-मिलाप कई बार दुनिया की दिशा तय करता है। तुर्की, NATO का सदस्य और पश्चिम एशिया में एक रणनीतिक खिलाड़ी है, वहीं भारत, एशिया में तेजी से उभरती आर्थिक और सैन्य ताकत है। पर पिछले कुछ वर्षों से तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन की भारत-विरोधी बयानबाज़ी, कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देना और भारत की घरेलू नीतियों पर टिप्पणी करना ये सब भारत के लिए अप्रिय रहे हैं।
अगर खत्म हुए रिश्ते तो क्या होगा
अगर भारत और तुर्की के बीच रिश्ते पूरी तरह खत्म हो जाएं, तो सबसे पहला और सीधा असर व्यापार पर पड़ेगा। वर्ष 2023-24 में भारत और तुर्की के बीच करीब 12 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ। भारत तुर्की को मुख्य रूप से ऑटो पार्ट्स, मोबाइल फोन, केमिकल्स, आयरन और स्टील निर्यात करता है। वहीं तुर्की से भारत मशीनरी, खनिज, कंस्ट्रक्शन मटीरियल और खाद्य उत्पादों का आयात करता है। जैसे ही रिश्ते टूटेंगे, इन वस्तुओं पर या तो भारी टैक्स लग सकता है या फिर पूरा आयात-निर्यात बंद हो सकता है। ऐसे में भारत में कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के लिए जरूरी मटीरियल्स महंगे हो जाएंगे, जिससे रियल एस्टेट सेक्टर में लागत बढ़ेगी और घरों की कीमतें आम आदमी की पहुंच से और दूर हो सकती हैं। वहीं तुर्की में भारतीय टेक्सटाइल, फार्मा और ऑटो सेक्टर को बड़ा झटका लग सकता है। भारतीय कंपनियों को वहां के बाजार से बाहर होना पड़ सकता है, जिससे उनके रेवेन्यू पर असर पड़ेगा और नौकरियों पर भी तलवार लटक सकती है। इससे दोनों देशों की जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
टूरिज्म पर भी पड़ेगा बड़ा असर
भारत से हर साल हजारों पर्यटक तुर्की घूमने जाते हैं इस्तांबुल की ऐतिहासिक गलियों से लेकर कप्पाडोसिया की हॉट एयर बलून राइड तक, तुर्की भारतीय पर्यटकों का पसंदीदा गंतव्य बन चुका है। अगर दोनों देशों के रिश्ते टूटते हैं, तो वीज़ा पॉलिसी में बदलाव और फ्लाइट रूट्स की कटौती जैसी बाधाएं सामने आ सकती हैं। इससे न केवल भारतीय पर्यटकों को झटका लगेगा, बल्कि तुर्की की अर्थव्यवस्था, जो पर्यटन पर काफी हद तक निर्भर है, उसे भी भारी घाटा होगा।
डिप्लोमैटिक रिलेशन्स पर क्या होगा असर
डिप्लोमैटिक असर की बात करें तो, भारत तुर्की में अपने वैश्विक हितों को बढ़ावा देने के लिए कई मोर्चों पर सक्रिय है चाहे वह यूनाइटेड नेशंस में समर्थन हो या इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन में वोट बैंक बनाना। वहीं तुर्की को भारत जैसे बड़े देश से दूरी बना लेने का मतलब है—एक वैश्विक शक्ति को नाराज़ करना, जिससे उसके अपने पश्चिमी और एशियाई संबंधों में दरार आ सकती है। चीन और पाकिस्तान को इससे अस्थायी लाभ मिल सकता है, क्योंकि तुर्की अगर भारत के खिलाफ जाता है, तो ये देश उससे अपने रिश्ते और मजबूत कर सकते हैं। लेकिन यह गठजोड़ तुर्की को भारत जैसी आर्थिक ताकत से मिलने वाले फायदे नहीं दिला पाएगा।
भारतीय रक्षा उद्योग पर भी पड़ सकता है असर
भारतीय रक्षा उद्योग पर भी इसका असर पड़ सकता है। हाल ही में कुछ रिपोर्ट्स में आया था कि तुर्की की कुछ कंपनियां भारतीय रक्षा क्षेत्र में पार्टनरशिप चाहती हैं, खासकर ड्रोन और मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर में। यदि रिश्ते खत्म होते हैं, तो यह संभावनाएं भी बंद हो जाएंगी, और भारत को वैकल्पिक रास्तों पर जाना पड़ेगा, जो महंगे और समय लेने वाले हो सकते हैं। इसके अलावा, भारत में रहने वाले हजारों तुर्की छात्रों और तुर्की में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की शिक्षा पर भी असर होगा। छात्र वीज़ा, स्कॉलरशिप और कोर्स ट्रांसफर जैसी सुविधाएं रुक सकती हैं। इससे शिक्षा जगत में अनिश्चितता फैलेगी।
“वसुधैव कुटुंबकम” के सिद्धांत को त्याग रहा भारत?
राजनीतिक स्तर पर यह एक मजबूत संदेश होगा कि भारत अब उन देशों को लेकर सख्त रुख अपना रहा है जो उसके आंतरिक मामलों में टांग अड़ाते हैं। लेकिन इससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की छवि पर भी बहस हो सकती है क्या भारत “वसुधैव कुटुंबकम” के सिद्धांत को त्याग रहा है, या क्या यह उसकी आत्मनिर्भर और आत्मसम्मान आधारित विदेश नीति का हिस्सा है?
आम आदमी जेब पर होगा सीधा वार
आम आदमी के लिए इसका सबसे सीधा असर महंगाई, नौकरियों और ट्रैवल इंडस्ट्री पर पड़ेगा। अगर भारत-तुर्की रिश्ते बिगड़ते हैं, तो बाजार में अनिश्चितता बढ़ेगी, और इसका असर निवेश पर भी पड़ेगा। अंततः सवाल यह नहीं है कि कौन सही है और कौन गलत, सवाल यह है कि क्या दोनों देश भविष्य की संभावनाओं को नज़रअंदाज़ कर सिर्फ वर्तमान की कड़वाहट में जीने को तैयार हैं? क्या तुर्की भारत के साथ अपनी टकराव की नीति को बदलकर सहयोग का रास्ता चुनेगा? या फिर यह दूरी और बढ़ेगी, जिससे दोनों देशों की आम जनता को आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा?
इस वक्त दुनिया को जोड़ने की ज़रूरत है, तोड़ने की नहीं। लेकिन अगर भारत और तुर्की के रिश्ते वाकई खत्म हो जाते हैं, तो यह यकीन मानिए इसका असर सिर्फ न्यूज़ चैनलों की हेडलाइंस तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आपके जेब, आपकी नौकरी और आपके आने वाले विदेश दौरे तक फैलेगा।
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