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डोक्ट्रिनल बदलाव की राह पर Indian Army, चीन-पाक को काउंटर करने के लिये 'शॉर्ट एंड शार्प वॉरफेयर' की अपनाई रणनीति
भारत ने बदलती सुरक्षा चुनौतियों के बीच 'शॉर्ट एंड शार्प वॉरफेयर' की नई रणनीति अपनाई है। चीन-पाक की साझा घेराबंदी और तकनीकी युद्ध के खतरे को देखते हुए भारतीय सेना अब पारंपरिक सोच से आगे बढ़ते हुए मल्टी-डोमेन युद्ध के लिए खुद को तैयार कर रही है।
Doctrinal Shift in Indian Army: पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद भारत-पाक के बीच उपजे तनाव ने भारत की रक्षा नीति में एक अहम मोड़ ला दिया है। भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान को करारा जवाब तो दिया, लेकिन इस पूरे ऑपरेशन ने भारत को इस बात का एहसास कराया कि अब पारंपरिक सैन्य सोच से आगे बढ़कर नई रणनीति अपनाने की जरूरत है। खासतौर से तब जब चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी मिलकर भारत को दो मोर्चों पर घेरने की कोशिश कर रहे हैं।
गलवान घाटी की 2020 की घटना के बाद से चीन लगातार LAC पर दबाव बना रहा है। इस बार भी पाकिस्तान के समर्थन में चीन ने न केवल कूटनीतिक स्तर पर हस्तक्षेप किया। साथ ही पाकिस्तान की संप्रभुता की रक्षा करने की बात भी कह दी। यह चीन-पाकिस्तान के रणनीतिक गठजोड़ की मजबूती को दर्शाता है। जिसे अब ‘थ्रेशहोल्ड एलायंस’ कहा जा रहा है। यानी वह स्तर जहां दो देशों की सैन्य, तकनीकी और रणनीतिक समझ एक साझा मोर्चा तैयार करती है।
चीन-पाक का एकीकृत सैन्य हमला
इस संकट के दौरान पाकिस्तान ने जिन हथियारों और प्रणालियों का प्रयोग किया था, वो अधिकतर चीनी तकनीक वाले थे। इसमें JF-17 और J10C लड़ाकू विमान, PL-15E BVR मिसाइलें, FM-90 और HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम, UAVs और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर तकनीक शामिल थी। इनका इस्तेमाल ‘किल-चेन’ मॉडल के तहत हुआ। जिसमें सैटेलाइट से मिली जानकारी को फ्रंटलाइन फाइटर जेट्स के साथ जोड़ा गया।
चीन का BeiDou सैटेलाइट सिस्टम पाकिस्तान को रियल टाइम इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनिसेंस में मदद कर रहा था। इस तकनीकी सहयोग ने भारत के लिए बड़ा ऑपरेशनल खतरा खड़ा कर दिया है।
भारत ने भी तकनीकी रूप से दिया कड़ा जवाब
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर, ऑपरेशन बेंयन और उम मरसूस के जरिए अपने जवाबी हमले को तकनीकी और सामरिक रूप से एकीकृत किया। भारत ने ब्रह्मोस और फ्रांसीसी SCALP-EG क्रूज मिसाइलों के साथ-साथ HAMMER ग्लाइड बमों का प्रयोग कर पाकिस्तान के भीतर कई हाई वैल्यू टारगेट्स को निशाना बनाया।
वहीं, भारतीय वायुसेना और सेना की संयुक्त हवाई सुरक्षा प्रणाली ने पाकिस्तान के अधिकांश हमलों को निष्क्रिय किया। भारत की वायु रक्षा प्रणाली S-400, बराक-8, स्पाइडर, आकाश और इग्ला जैसे आधुनिक और पारंपरिक सिस्टम्स का एक संयोजन है। इसके साथ ही IACCS और आकाशतीर जैसे इंटीग्रेटेड कमांड सिस्टम्स ने ऑपरेशन की धार को और पैना किया।
थ्रेशहोल्ड एलायंस और युद्ध की नई परिभाषा
इस संकट ने स्पष्ट कर दिया कि अब भारत-पाक के बीच पारंपरिक युद्ध नहीं होंगे। बल्कि, तकनीकी और स्टैंड-ऑफ वॉरफेयर के जरिये लड़ाइयाँ लड़ी जाएँगी। पाकिस्तान जहां चीन की मदद से मल्टी-डोमेन ऑपरेशन की ओर बढ़ रहा है। वहीं भारत को अपनी रक्षा रणनीति को पूरी तरह रि- डिफाइन करना होगा।
तीन स्तंभों पर आधारित रक्षा रणनीति
1. रणनीतिक योजना और दीर्घकालिक दृष्टिकोण : भारत को रक्षा खरीद नीति, ऑपरेशनल प्लानिंग और लॉन्ग टर्म मिलिट्री इंटीग्रेशन को तेज करना होगा। 'सिस्टम ऑफ सिस्टम्स' अप्रोच जरूरी है जिसमें हर यूनिट, तकनीक और बल सामंजस्य के साथ काम करे।
2. तकनीकी प्राथमिकता और क्षमताओं का संचय: रॉकेट, ड्रोन, मिसाइल और साइबर-इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर का एकीकृत उपयोग अब युद्ध की नई पहचान है। रूस-यूक्रेन युद्ध इसका ताजा उदाहरण है। भारत को भी अंतरिक्ष, एआई और साइबर युद्ध में अग्रणी बनना होगा।
3. दृष्टिकोण और सिद्धांतों में बदलाव : भारतीय सैन्य सोच अब भी जमीनी युद्ध पर केंद्रित है। जबकि चीन-पाक जैसे प्रतिद्वंद्वी मल्टी-डोमेन और एसिमेट्रिक सिद्धांतों को अपना चुके हैं। Cold Start Doctrine को अपडेट कर ‘शॉर्ट एंड शार्प वॉरफेयर’ की दिशा में doctrinal evolution की जरूरत अब आन पड़ी है।
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