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भारत और चीन का फिर लगा दिल! दूर हुए गिले-शिकवे, बड़ा फिल्माना रहा अंदाज... तो खत्म हुआ गलवान का झगड़ा

India China Relations: तो फिलहाल… गलवान की लाठी खाकर अब ड्रैगन सीख रहा है कूटनीति की भाषा।

Snigdha Singh
Published on: 15 July 2025 11:47 AM IST (Updated on: 15 July 2025 11:55 AM IST)
भारत और चीन का फिर लगा दिल! दूर हुए गिले-शिकवे, बड़ा फिल्माना रहा अंदाज... तो खत्म हुआ गलवान का झगड़ा
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India China Relations: बीजिंग की फिजाओं में अचानक भगवान बुद्ध की शांति गूंजने लगी है और ड्रैगन अब रक्षात्मक मुद्रा में ‘टैंगो’ करने की बात कर रहा है। जी हां, पांच साल बाद चीन पहुंचे भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की यात्रा ने ऐसा असर डाला है कि लाल फौज की तलवारों से शांति के कबूतर उड़ने लगे हैं।

चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग ने भारत के साथ दोस्ती की ऐसी फरियाद की, जैसे कोई शरारती बच्चा स्कूल में सजा मिलने के बाद ‘गुड बॉय’ बनने का अभिनय कर रहा हो। ड्रैगन और हाथी का टैंगो यह लाइन सुनकर श्रोता सोच में पड़ गए कि क्या अब चीन की विदेश नीति बॉलीवुड की म्यूज़िकल फिल्मों से प्रेरणा लेने लगी है?

वांग यी की वार्ता या वार्म अप योगा?

चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी अब भाईचारे की बात कर रहे हैं। संदेह छोड़ो, सहयोग अपनाओ, ये नया नारा है। पर भूलना नहीं चाहिए कि यही वही वांग यी हैं जो कुछ वर्ष पहले भारत को सीमा पर स्थिति सामान्य बताकर आंख दिखा रहे थे। अब अचानक ऐसा बदलाव कि जैसे गलवान की घाटियों में बर्फ नहीं, सद्भावना खिलने लगी हो।

ग्लोबल टाइम्स: ड्रैगन का मुखपत्र या पिघला हुआ आइस्क्रीम?

चीन का सरकारी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ अब जयशंकर की यात्रा को ‘सकारात्मक संकेत’ बता रहा है। ये वही अख़बार है जो 2020 में हर दूसरे दिन भारत को ‘सबक सिखाने’ की धमकी दे रहा था। अब लिख रहा है कि बातचीत की खिड़की खुल चुकी है। सवाल यह है कि क्या यह खिड़की वाकई खुली है, या फिर चीन ने केवल पर्दा हटाया है?

बुद्ध की बात पर गोली की याद

बेशक चीनी नेता अब बुद्ध का नाम ले रहे हैं, लेकिन भारत भूला नहीं है कि गलवान में इसी बुद्धभूमि पर जवानों को खोना पड़ा था। तब न बुद्ध याद थे, न भाईचारा। अब जब अमेरिका की आंखें चीन पर ज्यादा टेढ़ी हो चुकी हैं और रूस भी व्यस्त है, तो ड्रैगन को याद आया है कि हाथी के साथ चलना फायदेमंद हो सकता है।

SCO मंच: सहयोग की सेल्फी या रणनीति की स्माइल?

SCO के मंच पर भारत और चीन की मुस्कराती तस्वीरें तो जरूर खिंच रही हैं, पर कैमरे के पीछे अब भी तनाव है। ‘सहयोग’ की भाषा में शब्द भले बदल गए हों, पर कूटनीति में चेहरे की हंसी से ज्यादा हाथ की पकड़ देखनी होती है और उस पर अब भी कई सवाल हैं।

भरोसे का टैंगो या ठग्स ऑफ एशिया?

जयशंकर की यात्रा निश्चित रूप से संवाद की दिशा में पहल है, लेकिन चीन के ‘शब्दों के गुलदस्ते’ में अब भी कांटे हो सकते हैं। भारत के लिए यह ज़रूरी है कि वो चीन की हर मुस्कान के पीछे की चाल को पढ़े क्योंकि ड्रैगन की आदत है कि वह पहले टैंगो सिखाता है, फिर खुद ही नाचने लगता है।

तो फिलहाल… गलवान की लाठी खाकर अब ड्रैगन सीख रहा है कूटनीति की भाषा। पर हाथी की याददाश्त लंबी होती है और वह भूलता नहीं।

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Hi! I am Snigdha Singh, leadership role in Newstrack. Leading the editorial desk team with ideation and news selection and also contributes with special articles and features as well. I started my journey in journalism in 2017 and has worked with leading publications such as Jagran, Hindustan and Rajasthan Patrika and served in Kanpur, Lucknow, Noida and Delhi during my journalistic pursuits.

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