Indian Pakistan War: भारत में युद्ध के समय ब्लैकआउट क्यों जरूरी, आइए जाने सब कुछ विस्तार से

Indian Pakistan War Update: पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद अब भारत सरकार द्वारा नागरिक सुरक्षा ड्रिल में 'ब्लैकआउट' होगा।

Jyotsna Singh
Published on: 7 May 2025 12:55 PM IST
Indian Pakistan War Update Today Black Out
X

Indian Pakistan War Update Today Black Out (Image Credit-Social Media)

Mock Drill in India: कल्पना कीजिए एक ऐसा समय जब पूरा शहर सन्नाटे में डूबा हो। चारों ओर घना अंधकार पसरा हो, घरों की खिड़कियाँ भारी परदों से ढंकी हों, वाहनों की हेडलाइट्स धुंधली कर दी गई हों, और आकाश में कहीं से भी कोई रोशनी न झलके। न यह किसी भूतिया फिल्म का दृश्य है और न किसी कल्पनालोक की कहानी। यह ब्लैकआउट का वास्तविक चित्र है वह सैन्य रणनीति जो युद्ध के समय नागरिकों और संरचनाओं को दुश्मन के हवाई हमलों से बचाने के लिए अपनाई जाती है।

हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले और उसके बाद भारत सरकार द्वारा नागरिक सुरक्षा ड्रिल में 'ब्लैकआउट' को शामिल किए जाने से यह विषय एक बार फिर चर्चा में आ गया है। तो आखिर ब्लैकआउट होता क्या है? इसके पीछे का उद्देश्य क्या है और इसमें किन नियमों का पालन जरूरी होता है? आइए, इन सभी सवालों के उत्तर विस्तार से जानते हैं।

ब्लैकआउट क्या है?


असल में ब्लैकआउट कोई डरावनी या असामान्य चीज़ नहीं है। यह एक सुरक्षा कवच है, एक सामूहिक उत्तरदायित्व। इतिहास गवाह है कि जब नागरिकों ने एकजुट होकर ब्लैकआउट जैसे नियमों का पालन किया है, तब देश ने बड़े खतरे को टाल दिया है।

जैसा कि ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था—“In war, resolution; in defeat, defiance; in victory, magnanimity; and in peace, goodwill.”

आज जब भारत एक बार फिर सतर्कता की ओर बढ़ रहा है, ब्लैकआउट हमें याद दिलाता है कि अंधेरा डर नहीं है बल्कि हमारी सुरक्षा का गुप्त हथियार हो सकता है। ब्लैकआउट एक ऐसी स्थिति होती है जब किसी क्षेत्र की सभी प्रकार की कृत्रिम रोशनी को बंद कर दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य दुश्मन के विमानों या निगरानी प्रणालियों को निशाना साधने से रोकना होता है। युद्ध के समय शत्रु के हवाई जहाज, ड्रोन या मिसाइल लक्ष्य पर पहुंचने के लिए नीचे की रोशनी का सहारा लेते हैं। यदि रात के समय शहर में रोशनी जल रही हो, तो यह उन्हें ठिकानों, प्रतिष्ठानों और आबादी वाले क्षेत्रों की सही लोकेशन जानने में मदद कर सकती है। ब्लैकआउट इस संभावना को कम करता है

ऐतिहासिक दृष्टिकोण: लंदन ब्लिट्ज और भारत-पाक युद्ध


ब्लैकआउट की अवधारणा कोई नई नहीं है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1940 में जब जर्मन वायु सेना लूफ्टवाफे ने ब्रिटेन पर भीषण हवाई हमले किए थे, तब ब्रिटिश सरकार ने व्यापक स्तर पर ब्लैकआउट लागू किया था। लंदन, मैनचेस्टर जैसे शहरों की लाइटें बंद कर दी गई थीं ताकि जर्मन पायलट रात में दिशाभ्रमित हो जाएं। भारत में भी 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बड़े शहरों में ब्लैकआउट के सख्त नियम लागू किए गए थे। खासकर बॉर्डर इलाकों और प्रमुख औद्योगिक नगरों में रोशनी पूरी तरह बंद कर दी जाती थी।

ब्लैकआउट के पीछे रणनीतिक उद्देश्य


ब्लैकआउट के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

हवाई हमलों से बचाव

बिना रोशनी के शहर या स्थल की सटीक पहचान मुश्किल होती है।

पनडुब्बियों से रक्षा

  • तटीय क्षेत्रों में जहाजों की रोशनी पनडुब्बियों के लिए लक्ष्य बनती है, ब्लैकआउट से यह खतरा कम होता है।
  • साइबर व इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में भ्रम* अंधकार में संचार और नेविगेशन में बाधा उत्पन्न होती है।

सामूहिक अनुशासन

युद्ध के दौरान नागरिकों को एकजुट और सतर्क बनाए रखने का एक तरीका।

गृह मंत्रालय की हालिया पहल

7 मई, 2025 को भारत के गृह मंत्रालय ने देश के 259 जिलों में नागरिक सुरक्षा पूर्वाभ्यास (मॉक ड्रिल) की घोषणा की। इस ड्रिल का मुख्य भाग है ब्लैकआउट। इसमें लोगों को सायरन, बिजली कटौती, सुरक्षित स्थानों पर जाने, और रोशनी छिपाने के तौर-तरीके सिखाए जाते हैं।

इस पहल का उद्देश्य केवल अभ्यास नहीं, बल्कि युद्धकालीन अनुशासन, जागरूकता और तत्परता को दोबारा स्थापित करना है।

घरों के लिए ब्लैकआउट नियम

1971 के युद्धकालीन नियमों के अनुसार खिड़कियां व दरवाजे मोटे पर्दों, कार्ड बोर्ड या काली प्लास्टिक शीट से ढंके होने चाहिए। किसी भी प्रकार की रोशनी बाहर नहीं निकलनी चाहिए न टीवी की, न लैम्प की। बालकनी, बरामदे, या खुली खिड़कियों से प्रकाश का रिसाव न हो। यह छोटे नियम बड़े नुकसान को रोक सकते हैं।

ये हैं वाहनों के लिए नियम

युद्धकाल में वाहनों की भूमिका सीमित होती है, लेकिन वे दुश्मन की निगाह में आ सकते हैं जिसके हेडलाइट्स लो बीम पर और आंशिक रूप से काली पेंट से ढकी होती हैं। टेल लाइट्स को ढकने के लिए फिल्टर या शटर का प्रयोग होता है।

रिवर्स लाइट का प्रयोग प्रतिबंधित होता है। बम्पर पर सफेद मैट पेंट से चिन्ह अंकित किए जाते हैं जिससे केवल जमीन से पहचान संभव हो, ऊपर से नहीं।

दुकानों और कारखानों के लिए नियम

दुकानों में डबल एयरलॉक दरवाजे लगाने का प्रावधान होता है जिससे ग्राहक के आने-जाने पर रोशनी बाहर न जाए। कांच की खिड़कियों को गाढ़े कपड़े या कार्डबोर्ड से पूरी तरह ढंका जाता है।कारखानों की छतों और कांच को काले रंग से रंगा जाता है ताकि दिन की रोशनी भी सीमित हो। रात में केवल ब्लू लाइटिंग या विशेष फिल्टर वाली लाइट्स की अनुमति होती है।

प्रशासन और नागरिकों की भूमिका

ब्लैकआउट केवल सरकारी आदेश नहीं है, यह सामूहिक नागरिक जिम्मेदारी भी है। प्रशासन को चाहिए कि व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए। स्कूल, कॉलेज, हाउसिंग सोसाइटी में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करे। आवश्यकतानुसार दंडात्मक प्रावधान लागू करे, लेकिन प्राथमिकता नागरिक सहभागिता हो।

ब्लैकआउट और आज की तकनीक

आज का युद्ध केवल बम और मिसाइल का नहीं है, यह टेक्नोलॉजी व इलेक्ट्रॉनिक निगरानी का भी है। दुश्मन की ड्रोन, सैटेलाइट इमेजिंग, नाइट विजन जैसी तकनीकों के बावजूद ब्लैकआउट एक प्रारंभिक सुरक्षा कवच है। यदि हम कम से कम विजुअल संकेत भेजें, तो यह दुश्मन की सटीकता को प्रभावित कर सकता है।

Start Quiz

This Quiz helps us to increase our knowledge

Admin 2

Admin 2

Next Story