NDA की सरकार बनना तय! महागठबंधन में पड़ चुकी है फूट, एक दूसरे के खिलाफ ही उतार दिये उम्मीदवार

बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन में बड़ी दरार! पहले चरण की 8 सीटों पर सहयोगी दल आमने-सामने, सीट बंटवारे पर सहमति न बनने से फ्रेंडली फाइट के नाम पर बढ़ा सियासी घमासान।

Shivam Srivastava
Published on: 18 Oct 2025 6:11 PM IST
NDA की सरकार बनना तय! महागठबंधन में पड़ चुकी है फूट, एक दूसरे के खिलाफ ही उतार दिये उम्मीदवार
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर राजनीतिक हलचल चरम पर है। पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन महागठबंधन के भीतर सीटों को लेकर अब भी खींचतान जारी है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि महागठबंधन की सहयोगी पार्टियों ने आठ सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ ही उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं।

राजद, कांग्रेस, वामदल और वीआईपी जैसी पार्टियों ने साझा रणनीति के तहत चुनाव लड़ने का दावा किया था, लेकिन पहले ही चरण में महागठबंधन की एकजुटता सवालों के घेरे में है। आठ प्रमुख विधानसभा सीटों पर सहयोगी दल आमने-सामने हैं, जिससे न केवल मतदाताओं में भ्रम की स्थिति है, बल्कि महागठबंधन की आंतरिक फूट भी उजागर हो रही है।

कौन कहां भिड़ रहा है? जानिए सीटवार स्थिति:

1. रोसड़ा: कांग्रेस ने पूर्व डीजीपी बीके रवि को उतारा, वहीं भाकपा ने लक्ष्मण पासवान को मैदान में भेज दिया है।

2. राजापाकड़: कांग्रेस विधायक प्रतिमा दास का सामना भाकपा के मोहित पासवान से होगा।

3. बिहारशरीफ: कांग्रेस के ओमेर खान के खिलाफ भाकपा के शिव प्रकाश यादव ने पर्चा भरा है।

4. वैशाली: कांग्रेस की परंपरागत सीट पर इस बार राजद के अजय कुशवाहा को टिकट मिला है।

5. लालगंज: कांग्रेस के आदित्य कुमार बनाम राजद की शिवानी शुक्ला (मुन्ना शुक्ला की बेटी)।

6. नरकटियागंज: यहां भी राजद और कांग्रेस आमने-सामने हैं।

7. वारिसलीगंज: 2020 में कांग्रेस की सीट रही इस क्षेत्र में अब राजद ने भी उम्मीदवार उतार दिया है।

8. बछवाड़ा: माकपा के अवधेश राय और कांग्रेस के गरीबदास में सीधी टक्कर।

राजनीतिक संदेश क्या है?

पहले चरण में राजद ने 72, कांग्रेस ने 26, वामदलों ने 21 और वीआईपी ने 6 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। हालांकि साझा मंच से चुनाव लड़ने का दावा किया गया था, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट नजर आ रही है।

विश्लेषकों का मानना है कि यह "फ्रेंडली फाइट" नहीं, बल्कि सीट बंटवारे की असफलता और समन्वय की कमी का नतीजा है, जिससे मतदाता भ्रमित हो सकते हैं और विपक्ष को फायदा मिल सकता है।

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