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नॉन-वेज दूध GM फसलें' बनीं 'ट्रेड डील' में रोड़ा? भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में ट्रंप' और रूस भी बने बड़ी वजह
Trump Tariff on India: भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील अटकी हुई है। नॉन-वेज, दूध, जीएम फसलें बड़ी वजह बनीं, साथ ही ट्रंप की नीतियां और रूस के साथ भारत के रिश्ते भी रोड़ा बनकर सामने आए हैं।
Trump Tariff on India: 2025 की शुरुआत में जब भारत और अमेरिका के बीच एक द्विपक्षीय ट्रेड डील की बात तेजी से आगे बढ़ रही थी। तब दोनों देशों में इसे लेकर उत्साह था। लेकिन अब छह महीने बाद, यह डील पूरी तरह ठप पड़ी चुकी है। दो दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25% टैरिफ लगाने के बाद सवाल उठने लगे कि आखिर इतने दौर की बातचीत और कूटनीतिक मेल-जोल के बाद भी ये डील क्यों नहीं हो पा रही? ऐसे में ट्रेड डील अटकने की चार बड़ी वजहें समझ आ रही हैं।
डील के अटकने की चार प्रमुख वजहें
1. अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट्स को भारत में एंट्री पर रोक
2. अमेरिकी GM फसलों को लेकर भारत का विरोध
3. भारत-रूस रणनीतिक संबंधों से ट्रंप की नाराजगी
4. BRICS में भारत की सक्रियता से अमेरिका की चिंता
अब इन सभी बिंदुओं को विस्तार से समझते हैं:
1. डेयरी प्रोडक्ट्स को लेकर क्यों है विवाद?
अमेरिका चाहता है कि भारत उसके डेयरी उत्पादों पर आयात शुल्क 30-60% से घटाकर 5-10% करे। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर का कहना है कि भारत की हाई टैरिफ पॉलिसी अमेरिकी किसानों के लिए अनुचित है और अमेरिका को भारत के विशाल बाजार तक खुला प्रवेश मिलना चाहिए।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और इसका डेयरी सेक्टर 8 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण किसानों को रोजगार देता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिकी सस्ते मिल्क प्रोडक्ट्स भारत में आने लगे, तो इससे स्थानीय किसान और सहकारी समितियों को बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है।
एग्रीकल्चर विश्लेषक कहते हैं, अमेरिकी डेयरी उत्पाद केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक चुनौती भी हैं। अमेरिका में गायों को मांसाहार जैसे कि ब्लड मील और फैट खिलाया जाता है, जिससे उनका दूध भी धार्मिक रूप से नॉन-वेज माना जाता है। यह भारतीय संस्कृति और आस्था के विपरीत है।
इसके अलावा, FSSAI के नियम भी ऐसे उत्पादों के भारत में प्रसंस्करण और बिक्री की अनुमति नहीं देते जो फूड सिक्योरिटी नीतियों के विरुद्ध हों। अमेरिका भारत के इन नियमों के अनुसार अपने डेयरी उत्पादों को ढालने के लिए तैयार नहीं है।
2. GM फसलें क्यों बनी विवाद का केंद्र?
अमेरिका चाहता है कि भारत उसकी जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों को खुले बाजार में मंजूरी दे और इन पर लगने वाला आयात शुल्क कम करे। अमेरिका GM सोयाबीन, मक्का और कैनोला का सबसे बड़ा उत्पादक है और इन पर 5-10% का टैरिफ चाहता है।
भारत ने हमेशा GM फसलों को लेकर सतर्क रुख अपनाया है। विशेषज्ञों के अनुसार, GM फसलों से जीन फ्लो का खतरा है। जिससे देसी फसलें प्रभावित हो सकती हैं। इसके अलावा, इन फसलों से पर्यावरण पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है जैसे कि मिट्टी की उर्वरता, जल स्रोत, मधुमक्खी और तितलियों की संख्या में गिरावट।
FSSAI के मुताबिक, GM फसलों के आयात के लिए GM-free certification अनिवार्य है। लेकिन अमेरिका इसके लिए तैयार नहीं है। भारत का रुख स्पष्ट है कि जब तक इन फसलों की सुरक्षा सिद्ध नहीं होती, तब तक इनका आयात मंजूर नहीं होगा।
भारत GM मक्का खुद नहीं उगाता, लेकिन सालाना 0.5 मिलियन टन मक्का इम्पोर्ट करता है। जिस पर 15% टैरिफ लगता है। इसका उपयोग इथेनॉल उत्पादन और पशु चारे में होता है। अगर GM मक्का इम्पोर्ट होता है, तो उसे भारतीय पशु खाएंगे, जिसका असर दूध और मांस की गुणवत्ता पर पड़ेगा।
3. भारत-रूस संबंधों से क्यों नाराज़ हैं ट्रंप?
31 जुलाई को राष्ट्रपति ट्रंप ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, भारत और रूस अपनी डेड इकॉनमी को साथ ले डूबें, मुझे क्या। यह बयान भारत-रूस व्यापारिक और रणनीतिक रिश्तों से ट्रंप की नाराजगी को उजागर करता है।
लेकिन भारत के लिए रूस के साथ संबंध काटना इतना आसान नहीं है। इसके पीछे तीन बड़ी वजहें हैं,
(1) हथियारों की निर्भरता
भारत अपने 60-70% हथियार रूस से लेता है। इनमें से कई सिस्टम्स के रख-रखाव के लिए भारत को अगले 10 साल तक रूस पर निर्भर रहना पड़ेगा। अमेरिका की शर्त है कि भारत रूस से दूरी बनाए और अमेरिका से हथियार खरीदे, लेकिन भारत ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि रूस हथियारों के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी करता है।
(2) अमेरिका पर भरोसा नहीं
अतीत में अमेरिका ने भारत के परमाणु परीक्षण के बाद उस पर प्रतिबंध लगाए थे, जबकि रूस ने तब भी साथ नहीं छोड़ा। अमेरिका की विदेश नीति बार-बार बदलती रहती है, जबकि रूस की नीति लगातार भारत समर्थक रही है।
(3) चीन-पाकिस्तान-रूस गठजोड़ का खतरा
अगर भारत रूस से दूरी बनाता है, तो यह चीन और पाकिस्तान के लिए कूटनीतिक अवसर बन सकता है। रूस पहले ही अपने 47% तेल का निर्यात चीन को करता है। ऐसे में भारत की दूरी रूस को चीन के और करीब ला सकती है। जिससे भारत कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ सकता है।
4. क्या अब भारत-अमेरिका ट्रेड डील की कोई उम्मीद बाकी है?
इस सवाल का जवाब फिलहाल हां है। 25 अगस्त को अमेरिकी अधिकारी भारत आ रहे हैं और छठे दौर की बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट (BTA) पर बातचीत होगी। दोनों देश सितंबर-अक्टूबर तक डील के पहले चरण को अंतिम रूप देने की दिशा में काम कर रहे हैं।
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