Bihar Election 2025: प्रशांत किशोर मानते हैं, या तो टॉप पर होंगे या बॉटम पर — बीच में नहीं

Prashant Kishor in Bihar Election 2025: प्रशांत किशोर की अगुआई में बनी जन सुराज पार्टी (Jan Suraaj Party - JSP) अब पूरी तरह से 2025 विधानसभा चुनाव की लड़ाई में उतर चुकी है।

Yogesh Mishra
Published on: 24 Oct 2025 6:46 PM IST
Prashant Kishor Jan Suraaj Party Political Analysis in Bihar Election 2025 Latest Update in Hindi
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Prashant Kishor Jan Suraaj Party Political Analysis in Bihar Election 2025 Latest Update in Hindi

Prashant Kishor in Bihar Election 2025: बिहार की राजनीतिक ज़मीन पर इन दिनों कुछ नया अंकुर फूट रहा है—एक नई पार्टी, नया चेहरा नहीं, बल्कि पुराने चेहरे का नया रूप। प्रशांत किशोर की अगुआई में बनी जन सुराज पार्टी (Jan Suraaj Party - JSP) अब पूरी तरह से 2025 विधानसभा चुनाव की लड़ाई में उतर चुकी है। एक ओर जहां एनडीए और महागठबंधन के बीच वर्षों से जमी हुई चुनावी लड़ाई है, वहीं जन सुराज पार्टी तीसरे विकल्प के रूप में मैदान में है, जिसका दावा है कि यह बिहार को ‘जन शासन’ और ‘सुशासन’ की नई दिशा देगी। पर क्या इस पार्टी की जमीनी पकड़, तैयारी और रणनीति इतनी मजबूत है कि वह बिहार की राजनीति को सचमुच नई दिशा दे सके? आइए अब तक के घटनाक्रमों, रणनीतियों और विरोधों के बीच इस नई राजनीतिक यात्रा का मूल्यांकन करें।

शुरुआत और विस्तार का अभियान

जन सुराज पार्टी की औपचारिक घोषणा 2 अक्टूबर, 2024 को की गई थी, लेकिन इसकी नींव दो साल पहले ही प्रशांत किशोर द्वारा बिहार के गांव-गांव में की गई पदयात्रा के ज़रिए रखी जा चुकी थी। यह यात्रा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं थी, बल्कि इसका उद्देश्य था राज्य की सड़कों, खेतों, गांवों और जनता के मन को पढ़ना। पीके ने चुनावी रणनीतिकार की अपनी पुरानी पहचान से बाहर निकलकर खुद को एक ‘राजनीतिक समाज सुधारक’ के रूप में प्रस्तुत किया। पार्टी ने खुद को पुरानी जाति‑आधारित राजनीति एवं जनादेश‑हीन शासन के विकल्प के रूप में परिभाषित किया है।

प्रशांत किशोर ने साफ कहा कि वे स्वयं चुनाव नहीं लड़ेंगे। वे संगठन निर्माण, नीतिगत ढांचे और जनता से संवाद पर केंद्रित रहेंगे। JSP ने मार्च 2025 में अपना पाँच‑बिंदु एजेंडा घोषित किया, जिसमें प्रमुख बातें शामिल हैं –

(i) शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार,

(ii) राज्य से प्रवास (माइग्रेशन) को रोकना,

(iii) वरिष्ठ नागरिकों को बेहतर पेंशन देना,

(iv) किसानों‑महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण,

(v) कृषि‑मजदूरी‑रोजगार का आपसी लिंक।

पार्टी ने यह मूल विचार रखा है कि बिहार को अगले दशक में भारत के ‘शीर्ष दस राज्यों’ में लाना है। एजेंडा का मूल सार है कि ‘वोट बैंक‑पहचान’ (जाति‑धार्मिक) से हटकर ‘सेवा‑शासन’, रोजगार, शिक्षा और मूलभूत सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।

JSP ने शुरुआत से यह संदेश देने की कोशिश की है कि यह ‘पुरानी राजनीति’ से अलग है — सिर्फ वोट‑बैंक नहीं, बल्कि सेवा‑शासन, अवसर‑निर्माण, युवा‑उद्यम और प्रवासी मजदूर‑वापसी जैसे तत्वों पर केंद्रित। यह एक साहसिक प्रयास है, क्योंकि बिहार में पारंपरिक राजनीति (जाति, गठबंधन, क्षेत्रीय गढ़) गहराई से जमी हुई है। इस दृष्टि से इसे एक “स्टार्ट‑अप” राजनीतिक दल के रूप में भी देखा जा रहा है — जहाँ रणनीति‑निर्माण, निर्देशित अभियान और ब्रांड‑इमेज प्राथमिकता में हैं।

जन सुराज का परफॉर्मेंस

JSP ने घोषणा की है कि वह बिहार की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। अब तक लगभग 116 उम्मीदवारों की सूची दो चरणों में जारी की जा चुकी है। उम्मीदवारों में सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई है — SC, ST, OBC, EBC और महिलाओं को भी। हालांकि इस प्रक्रिया में चुनौतियां सामने आई हैं। तीन उम्मीदवारों ने नामांकन वापस ले लिया, जिसका आरोप JSP ने भाजपा के दबाव पर मढ़ा है।

प्रचार के लिहाज़ से JSP एक नए किस्म का मॉडल लेकर आई है — रोड शो, जनसंवाद, पदयात्रा और डिजिटल माध्यमों के संयोजन से जनसंपर्क साधने की कोशिश हो रही है। लेकिन जमीनी संगठन, बूथ लेवल नेटवर्क और अनुभवी कार्यकर्ताओं की अब भी भारी कमी महसूस की जा रही है।

JSP की राजनीति

JSP की संभावनाएं मुख्य रूप से युवा मतदाता, बेरोजगार शिक्षित वर्ग और प्रवासी मजदूरों के बीच दिखाई देती हैं। ये वे वर्ग हैं जो पारंपरिक राजनीति से निराश हैं और बदलाव की उम्मीद रखते हैं। विशेष रूप से EBC और OBC वर्गों में JSP ने यह कोशिश की है कि जाति से ऊपर उठकर ‘विकास’ की राजनीति का भाव पैदा किया जाए। हालांकि यह प्रयोग कितना प्रभावशाली होगा, इसका उत्तर चुनावी नतीजे ही देंगे।

प्रशांत किशोर बार-बार दोहराते हैं कि उनकी पार्टी या तो पहले स्थान पर होगी या अंतिम पर। यह आत्मविश्वास है या रणनीतिक दांव—यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी। ध्यान देने योग्य है कि समय कम है, पुराने गठबंधन मजबूत हैं, और संसाधन‑चुनौतियाँ वास्तविक हैं। यदि JSP इन चुनौतियों को पार नहीं करती है, तो संभावना है कि वह ‘मध्यम‑प्रदर्शन’ वाली पार्टी बनकर रह जाए, न कि निर्णायक विजय हासिल कर सके।

विपक्ष की रणनीति और मोदी फैक्टर

जहाँ एक ओर JSP खुद को तीसरे मोर्चे के तौर पर स्थापित करने की कोशिश में है, वहीं दूसरी ओर BJP समेत तमाम विपक्षी पार्टियां उसे ‘वोट काटने वाली पार्टी’ कहकर खारिज करने की कोशिश कर रही हैं। नरेंद्र मोदी ने सीधे तौर पर JSP का नाम भले ही न लिया हो, लेकिन उनके भाषणों में ‘राजनीतिक प्रयोग’ और ‘झूठे वादों’ के संदर्भ JSP की ओर ही संकेत करते हैं।

महागठबंधन में तेजस्वी यादव JSP को एक तरह से RJD की संभावनाओं को विभाजित करने वाला कारक मानते हैं। दूसरी ओर भाजपा नेतृत्व ने खुलकर प्रशांत किशोर पर आरोप लगाए हैं कि वह भाजपा विरोधी माहौल बनाकर NDA को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। खुद JSP का आरोप है कि भाजपा नेताओं — यहाँ तक कि गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान — ने उसके उम्मीदवारों को धमकाया।

मीडिया विश्लेषकों का मानना है कि JSP की रणनीति कहीं न कहीं ‘राजनीतिक स्टार्टअप’ जैसी है — जहाँ डेटा, इवेंट्स और मैसेजिंग पर ज़ोर है, लेकिन राजनीतिक ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर’, यानी जमीनी संगठन, कार्यकर्ता नेटवर्क और संसाधन अभी बेहद सीमित हैं।

प्रयोग या बदलाव?

बिहार की राजनीति वर्षों से दो ही खेमों के इर्द-गिर्द घूमती रही है — NDA और महागठबंधन। इस ज़मीन पर JSP यदि 10–15 सीटें भी जीतती है या अच्छा वोट प्रतिशत ले आती है, तो यह भविष्य के लिए संकेत होगा कि बिहार की जनता अब नई राजनीति को अवसर देना चाहती है। लेकिन अगर वह बहुत पीछे रह जाती है, तो यह प्रमाण होगा कि “रणनीति की राजनीति” चुनाव मैदान में “सामाजिक समीकरणों” के आगे कमजोर पड़ जाती है।

फिलहाल JSP के पक्ष में एक ताज़गी है, एक उम्मीद है, एक नया ढांचा खड़ा करने का प्रयास है। लेकिन इससे वह सत्ता के कितने करीब पहुँचती है—यह तय होगा मतपेटियों से निकलने वाले परिणामों से। इस समय JSP की सबसे बड़ी पूंजी है – प्रशांत किशोर का चेहरा, एक नया राजनीतिक विमर्श, और ‘पुराने बिहार’ से ‘नई उम्मीद’ की बात। और उसकी सबसे बड़ी चुनौती है – संसाधन, संगठन, और जातीय समीकरणों के दायरे को तोड़ पाने की क्षमता।

बिहार के इस चुनाव में JSP कोई साधारण पार्टी नहीं, बल्कि एक सामाजिक-राजनीतिक प्रयोग है। विपक्षी दलों द्वारा अपनाई जा रही रणनीतियाँ — जैसे ‘वोट विभाजन’, ‘अनुभव‑अभाव’, ‘नामांकन‑दबाव’ — JSP के लिए निर्णायक बाधाएं बन रही हैं। यदि JSP इन बाधाओं को पार कर लेती है और अगले कुछ हफ्तों‑महीनों में जमीनी प्रदर्शन मजबूत करती है, तो यह बड़ा बदलाव ला सकती है। अन्यथा, यह एक प्रारंभिक ‘हाई‑उम्मीद’ वाला प्रयोग भर बनकर रह जाएगी, जो निर्णायक विजय हासिल नहीं कर सकेगी।

परंतु यह प्रयोग सफल हो या असफल, इसका प्रभाव केवल 2025 तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह आने वाले वर्षों की राजनीति की दिशा को भी निर्धारित कर सकता है।

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