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Prashant Kishor Profile: प्रशांत किशोर! रणनीति से राजनीति तक, बिहार की ज़मीन पर एक नया प्रयोग
Prashant Kishor Profile: प्रशांत किशोर, भारतीय चुनावी राजनीति में वह नाम जो ‘डेटा–कैंपेन’ और ‘इमोशनल नैरेटिव’ का मिश्रण बन गया।
Prashant Kishor Profile Political Journey in Bihar Assembly Election 2025
Prashant Kishor Profile: प्रशांत किशोर, भारतीय चुनावी राजनीति में वह नाम जो ‘डेटा–कैंपेन’ और ‘इमोशनल नैरेटिव’ का मिश्रण बन गया। एक ऐसा व्यक्ति जिसने चुनावी राजनीति में ‘कंसल्टेंट’ को ‘किंगमेकर’ में बदल दिया। 2014 में नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक जीत से लेकर 2021 में ममता बनर्जी की बंगाल वापसी तक, उनके रणनीतिक अभियान भारतीय चुनाव इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं।लेकिन अब वही प्रशांत किशोर बिहार में, जहाँ से उनका सफ़र शुरू हुआ था, खुद अपनी राजनीतिक ज़मीन तलाश रहे हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
प्रशांत किशोर का जन्म 1977 में बक्सर जिले के कोनिहार गांव में हुआ था।
उनके पिता श्रीकृष्ण किशोर फिज़िशियन थे। बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत रहे।घर का वातावरण मध्यमवर्गीय, शिक्षित और सामाजिक रूप से सक्रिय रहा।प्रशांत किशोर की स्कूलिंग बिहार और पटना में हुई। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने हैदराबाद और दिल्ली गये। वे पेशे से इंजीनियर नहीं, बल्कि पब्लिक हेल्थ (सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति) के क्षेत्र से जुड़े रहे।
उच्च अध्ययन और रिसर्च के लिए वे विदेश गए और संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की UNICEF और WHO से जुड़ी इकाइयों में Public Health Expert के रूप में कार्यरत रहे। यही वह दौर था जब वे दुनिया के कई देशों—अफ्रीका, यूरोप और दक्षिण एशिया में स्वास्थ्य नीति और डेवलपमेंट प्रोग्राम्स के संपर्क में आए।
वे 2008–09 के बीच भारत लौटे ।उन्होंने तय किया कि वे भारत में जननीति (Public Policy) और राजनीति के रणनीतिक पक्ष पर काम करेंगे।
राजनीति में रणनीति
प्रशांत किशोर ने राजनीति में कदम एक Professional Political Strategist के रूप में रखा। 2011 में वे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़े और 2014 लोकसभा चुनाव अभियान के लिए Citizens for Accountable Governance (CAG) नामक एक प्रोफेशनल ग्रुप बनाया। यह वह टीम थी जिसने ‘चाय पर चर्चा’, ‘3D रैली’, ‘मन की बात’, ‘स्टाइल इंटरैक्शन’, ‘नमो एप’ , ‘नमो एक्सप्रेस’ जैसे नए मीडिया कैंपेन मॉडल तैयार किए।नतीजतन 2014 में भाजपा ने 282 सीटें जीतीं और नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने।
2015 में उन्होंने नीतीश कुमार व उनके जदयू के महागठबंधन (RJD–JDU–Congress) का कैंपेन संभाला।स्लोगन था — बिहार में बहार हो, नीतीश कुमार हो।” (Bihar mein Bahar ho, Nitishe Kumar ho)
नतीजतन, NDA को बड़ा झटका लगा और महागठबंधन को 243 में से 178 सीटें मिलीं।नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी हुई। प्रशांत किशोर की छवि मोदी के बाद नीतीश के किंगमेकर के रूप में बनी।
2016 में वे कांग्रेस पार्टी के रणनीतिक सलाहकार बने।उन्होंने पंजाब में अमरिंदर सिंह का Captain for Punjab कैंपेन चलाया। नतीजतन, कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला।लेकिन 2017 में कांग्रेस–सपा गठबंधन असफल रहा।यहीं से प्रशांत किशोर ने महसूस किया कि कैंपेन की सफलता नेतृत्व की विश्वसनीयता पर भी निर्भर करती है।
2019 में उन्होंने YSR कांग्रेस पार्टी (YSRCP) के लिए काम किया। जगन मोहन रेड्डी को सत्ता में पहुँचाया। उनकी पार्टी क 175 में से 151 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया।इसके अलावा दिल्ली (AAP) के लिए उन्होंने Governance Model के साथ Ground Mobilisation रणनीति बनाई, जिससे 2020 के विधानसभा में अरविंद केजरीवाल को 70 में से 62 सीटें हाथ लगी।
प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी I-PAC (Indian Political Action Committee) ने तृणमूल कांग्रेस के लिए चुनावी रणनीति तैयार की।ममता बनर्जी को 2021 में ‘बंगाल बनाम बाहरी ताकत’ नैरेटिव देकर तीसरी बार सत्ता में पहुँचाय। टीएमसी को 213 सीटें हासिल हुईं। जबकि भाजपा क 77 सीटों तक ही समेट दिया। यहीं से वे ‘Election Guru’ से ‘Political Disruptor’ कहलाने लगे।
बिहार में राजनीति
2015 के बाद जब नीतीश कुमार ने भाजपा से हाथ मिलाया, प्रशांत किशोर ने खुद को जेडीयू में शामिल किया।वे 2018 में जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। पर पार्टी के भीतर उन्हें नीतीश के बाद की संभावनाओं के रूप में देखा जाने लगा।नीतीश और पीके के बीच 2019 में वैचारिक टकराव सीएए और एनआरसी लेकर हुआ।
प्रशांत किशोर का कहना था कि ‘नीतीश का जनता से संवाद कमजोर हो गया है, और राजनीति बिना सिद्धांतों के केवल गठबंधन नहीं रह सकती।’
लिहाज़ा 2020 में उन्होंने JDU छोड़ दी।फिर उन्होंने बिहार में जन सुराज (जननीति + राजनीति का मॉडल) नामक अभियान शुरू किया।
बिहार में PK का प्रयोग
2022 में प्रशांत किशोर ने ‘जन सुराज यात्रा’ की शुरुआत की।यह एक राजनीतिक–सामाजिक आंदोलन है। जिसका मकसद बिहार के हर नागरिक को शासन में भागीदारी देना और राजनीति को पैसों और जाति से मुक्त करना है।
उन्होंने बिहार के पश्चिम चंपारण से यात्रा शुरू की।अक्टूबर 2025 तक उन्होंने लगभग 10,000 किलोमीटर से अधिक यात्रा की है। और 250 से अधिक प्रखंडों में जन संवाद किया है।
इस यात्रा की रणनीति ‘लोगों से सीधे जुड़ाव’ की है। वे गाँवों में रुकते हैं। रात्रि संवाद करते हैं। पंचायत प्रतिनिधियों, किसानों, शिक्षकों और युवाओं से सीधे बात करते हैं।
उनका लक्ष्य 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में ‘जन सुराज पार्टी’ के रूप में उतरना है।
प्रशांत किशोर की राजनीति का टारगेट ग्रुप 18–35 आयु वर्ग के युवा हैं। ज बेरोज़गारी और पलायन से प्रभावित हैं। प्रशासनिक भ्रष्टाचार से परेशान शिक्षक व कर्मचारी वर्ग है। वे किसान और छोटे व्यापारी हैं। जिनका राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान है लेकिन नीति-निर्माण में प्रतिनिधित्व नहीं। जातीय राजनीति से ऊब चुके मध्यवर्ग और प्रथम वोटर हैं। उनका जनाधार फिलहाल भावनात्मक और वैचारिक है, न कि संगठित। पर उनके सीधे संवाद ने ग्रामीण युवाओं में हलचल पैदा की है।
प्रशांत किशोर का कैंपेन डेटा, सर्वे और डिस्ट्रिक्ट यूनिट्स पर आधारित है। उन्होंने हर जिले में ‘जन सुराज कमेटी’ बनाई है । जिसमें शिक्षक, व्यापारी, किसान, छात्र और महिलाएँ शामिल हैं।उनकी टीम गाँव-गाँव जाकर लोगों की स्थानीय समस्याओं का दस्तावेज़ीकरण कर रही है।यह उनके ‘पॉलिसी इनपुट’ का आधार बनेगा। जिससे वे अपनी जन सुराज डाक्यूमेंट यानी बिहार विज़न प्लान—2030 तैयार कर रहे हैं।
उनका नारा है — ‘बात बिहार की, बिहार के लिए’।
बिहार में PK की चुनौतियाँ
सबसे बड़ी चुनौती संगठन और वोट-कन्वर्ज़न है। राजनीति की ज़मीन रणनीति से अलग होती है; जहाँ भावना, जाति और व्यक्ति-कनेक्शन तय करता है कि मतदाता किसके साथ जाएगा।पीके के पास न जातीय जनाधार है, न पुराना संगठन, न गठबंधन सहयोग।लेकिन उनके पास विश्वसनीय चेहरा और विश्वसनीय भाषा है। जो बिहार के पढ़े-लिखे युवाओं और प्रथम मतदाताओं के बीच असरदार है।
2025 के चुनावों में उनका असर 15–20 सीटों पर निर्णायक हो सकता है।
विशेषकर पटना, गया, पश्चिम चंपारण, मधुबनी, भागलपुर और वैशाली बेल्ट में।
उनकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि क्या वे अपने ‘जन सुराज नेटवर्क’ को वोट में बदल पाते हैं या नहीं।
भविष्य की संभावनाएँ
प्रशांत किशोर बिहार के लिए एक ‘ नया राजनीतिक प्रयोग’ हैं।वे न परंपरागत जातीय नेता हैं, न पुरानी विचारधाराओं में बँधे। उनका मॉडल Good Governance के साथ Public Participation पर आधारित है।यदि वे 2025 में संगठनात्मक रूप से कुछ सीटें जीत लेते हैं या निर्णायक वोट प्रतिशत हासिल करते हैं, तो बिहार की राजनीति में वे ‘थर्ड फोर्स’ की भूमिका निभा सकते हैं।अगर नहीं, तो वे फिर वही रहेंगे — राजनीति के सबसे बुद्धिमान रणनीतिकार,जो दूसरों के लिए जीत का रास्ता बनाते हैं, पर खुद अपनी जीत नहीं दर्ज करा पाते।
प्रशांत किशोर की जाति को लेकर बहुत तरह की बातें कहा जाती हैं। कुछ लोग उन्हें ब्राह्मण मानते है। तो कुछ भूमिहार। तो कुछ उन्हें कायस्थ भी कहते हैं। खुद अपनी जाति के बारे में कुछ भी कहने से प्रशांत किशोर बचते रहते हैं। यह उन्हें बिहार की राजनीति में माइलेज भी देता है।
प्रशांत किशोर को आई पैक (I-PAC ) की शुरुआत Citizens for Accountable Governance (CAG) नाम से 2013 में हुई थी। बाद में यह पुनर्गठित होकर Indian Political Action Committee (I-PAC) बन गया, जो राजनीतिक दलों के लिए रणनीतिक सलाह, अभियान प्रबंधन, डेटा विश्लेषण, संवाद एवं पब्लिक आउटरीच जैसी सेवाएँ देता है। I-PAC का दावा है कि वह ‘डेटा-ड्रिवन’ रणनीति, ग्राउंड-फील्ड कैंपेन टीम, डिजिटल संचार, माइक्रो-टारगेटिंग, सर्वे और अनुसंधान आधारित इनपुट एकत्र करने के मॉडल का उपयोग करता है।
एक केस स्टडी लेख में बताया गया है कि I-PAC मैदान कार्यकर्ता तैनात करता है, जो ग्राम-स्तर पर जाकर लोगों से संवाद करते हैं, उनकी प्राथमिकताओं को समझते हैं और डेटा इकठ्ठा करते हैं। इस कंपनी की Authorized Share Capital ₹1,00,000 और Paid-up Capital भी ₹1,00,000 है।
इसके निदेशक Pratik Jain, Rishi Raj Singh, Vinesh Kumar Chandel हैं। कम्पनी का रजिस्टर ऑफिस कोलकाता में है। कंपनी की NIC कोड 7499 (Other business activities n.e.c.) है — यानी इसे अन्य सेवाएँ श्रेणी में दर्ज किया गया है। यह Non-government company, private limited श्रेणी में आती है। Growjo यह दावा करता है कि I-PAC की अनुमानित आय USD 951.4 मिलियन है और कर्मचारियों की संख्या ~2,104 है। लेकिन यह आंकड़ा विश्वसनीय जांच-परखा स्रोत नहीं माना जाना चाहिए।
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