Nitish Kumar Journey: नीतीश कुमार! सुशासन, सत्ता और स्मृति के बीच खड़ा एक मुख्यमंत्री

Nitish Kumar Political Journey: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक ऐसा नाम हैं जिसने सत्ता, सिद्धांत और समझौते — तीनों के साथ बराबर नाता रखा है।

Yogesh Mishra
Published on: 15 Oct 2025 6:07 PM IST
Nitish Kumar Biography Political Journey Career in Bihar Election Latest Update in Hindi
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Nitish Kumar Biography Political Journey Career in Bihar Election Latest Update in Hindi

Nitish Kumar Political Journey: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक ऐसा नाम हैं जिसने सत्ता, सिद्धांत और समझौते — तीनों के साथ बराबर नाता रखा है। उनका राजनीतिक जीवन जैसे किसी प्रयोगशाला की तरह है, जहाँ आदर्श और व्यावहारिकता लगातार टकराते भी हैं और साथ भी चलते हैं। वे ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो नौ बार शपथ ले चुके हैं, जिन्होंने बीजेपी, आरजेडी और कांग्रेस — सभी के साथ कभी न कभी हाथ मिलाया है और उतनी ही बार अलग भी हुए हैं। उनका सफ़र इस मायने में अद्वितीय है कि वे एक अभियंता से सामाजिक सुधारक बने। फिर एक ऐसे राजनीतिज्ञ जिन्होंने बिहार की दशा और दिशा दोनों को बदलने की कोशिश की।

नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च, 1951 को बिहार के बख्तियारपुर में हुआ था। पिता कविराज रामलखन सिंह पारंपरिक वैद्यक से जुड़े थे और माँ परमेश्वरी देवी धार्मिक संस्कारों से सम्पन्न महिला थीं।मंजू सिन्हा से नीतीश कुमार का विवाह हुआ था। उनका 2007 में निधन हो गया।


नीतीश व मंजू सिन्हा को एक पुत्र है। बचपन से ही नीतीश का स्वभाव अनुशासित और अंतर्मुखी रहा। उन्होंने बिहार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, पटना (अब NIT पटना) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया। 1970 के दशक में जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन उठा, तब इस युवा अभियंता ने नौकरी से ज़्यादा समाज सेवा को अपना पथ चुना। यही वह दौर था जिसने उन्हें लोकनायक जयप्रकाश नारायण के विचारों से जोड़ा और राजनीति की धरती पर उतारा।

उनका राजनीतिक जीवन जनता पार्टी से शुरू हुआ, लेकिन 1980 के दशक में वे धीरे-धीरे बिहार की राजनीति के केंद्र में आने लगे। 1985 में वे पहली बार हर्नौत विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। 1995 में भी विधायक रहे। 1989 में उन्होंने बरह (Barh) संसदीय सीट से चुनाव जीता और पहली बार संसद पहुँचे।


इसके बाद 1991, 1996, 1998 और 1999 में लगातार लोकसभा सदस्य रहे। 2004 में नीतीश बरह और नालंदा दो सीटों से चुनाव लड़े। वह नालंदा सीट पर जीते। लेकिन बरह पर हार गये। 2006 में विधान परिषद (MLC) के लिए निर्वाचित हुए।

वह 3–10 मार्च 2000; 24 नवम्बर 2005–20 मई 2014; 22 फ़रवरी 2015–वर्तमान तक बिहार के मुख्यमंत्री पद पर क़ाबिज़ हैं। बीच में गठबंधन बदलते हुए अनेक कार्यकाल; 28 जनवरी 2024 को फिर 9वीं बार शपथ ली। 1998–1999 और 2001–2004; कृषि, सतह परिवहन आदि के भी कार्यभार उनके पास रहे।इसी दौर में वे जॉर्ज फर्नांडीस के साथ समता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहे। उनका राजनीति उदय शांत और व्यवस्थित तरीके से हुआ। न किसी आक्रोश के सहारे, न किसी नारे के, बल्कि लगातार संगठनात्मक काम और प्रशासनिक दृष्टि से।

नीतीश कुमार का एक निर्णायक मोड़ रेल मंत्री के रूप में आया। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्होंने दो बार रेल मंत्रालय संभाला। रेल मंत्री के रूप में उन्होंने कई उल्लेखनीय कदम उठाए — जैसे जन शताब्दी एक्सप्रेस की शुरुआत, जो आम यात्रियों के लिए सस्ती और सुविधाजनक यात्रा का प्रतीक बनी।


उन्होंने हाजीपुर में ईस्ट सेंट्रल रेलवे ज़ोन की स्थापना की, जिससे बिहार को एक बड़ा प्रशासनिक और आर्थिक लाभ हुआ। 1999 में जब गैसाल रेल दुर्घटना में सैकड़ों यात्रियों की जान गई, तब नीतीश कुमार ने नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दे दिया। यह उस दौर में भारतीय राजनीति के दुर्लभ उदाहरणों में गिना गया, जब कोई मंत्री अपनी जिम्मेदारी स्वयं स्वीकार करता है।

2000 में वे पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन केवल सात दिन बाद ही बहुमत न होने के कारण पद छोड़ना पड़ा। असली बदलाव 2005 में आया, जब उन्होंने लालू प्रसाद यादव के ‘जंगल राज’ की छवि को तोड़ते हुए भाजपा के साथ गठबंधन में ऐतिहासिक जीत दर्ज की और मुख्यमंत्री बने। उन्होंने बिहार को अपराध, भय और भ्रष्टाचार से निकालने का वादा किया। शुरुआत में उनके शासन को ‘सुशासन बाबू का राज’ कहा गया, क्योंकि उन्होंने कानून-व्यवस्था को प्राथमिकता दी। अपहरण और फिरौती जैसी घटनाओं पर नियंत्रण, प्रशासनिक जवाबदेही, और सड़क-बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान दिया। इन सबने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक ‘गुड गवर्नेंस’ मॉडल का चेहरा बना दिया।

नीतीश ने सामाजिक सुधारों पर भी ध्यान केंद्रित किया। 2007 में उन्होंने मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना शुरू की, जिसने बिहार की लड़कियों के शिक्षा में दाखिले और निरंतरता में चमत्कारिक वृद्धि की। इसके अतिरिक्त, उन्होंने महिला आरक्षण, ग्राम पंचायत स्तर पर महिलाओं की भागीदारी, और मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना जैसी योजनाएँ शुरू कीं। इन सबने उन्हें एक ‘सामाजिक इंजीनियर’ की छवि दी।


उनकी सरकार ने ‘जल-जीवन-हरियाली’ और गंगा जलापूर्ति परियोजनाएँ भी शुरू कीं, जिससे दक्षिण बिहार के सूखाग्रस्त इलाकों में गंगा का पानी पहुँचाया जा सके। उन्होंने कृषि, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य में स्थिर नीति बनाई। हालांकि 2016 की पूर्ण शराबबंदी नीति उनके शासन का सबसे विवादास्पद निर्णय रहा। उन्होंने इसे सामाजिक सुधार और महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर लागू किया, परंतु इससे अवैध शराब कारोबार और जहरीली शराब मौतों के कारण उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा।

नीतीश कुमार के राजनीतिक सफ़र में सबसे चर्चित पहलू उनके गठबंधन परिवर्तन (U-turns) रहे हैं। वे भाजपा, कांग्रेस, आरजेडी — तीनों के साथ सरकार बना चुके हैं और तीनों को छोड़ भी चुके हैं। 2013 में उन्होंने नरेंद्र मोदी को एनडीए का प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने का विरोध किया और भाजपा से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया। 2015 में उन्होंने लालू प्रसाद और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और भाजपा को हराया। 2017 में जब आरजेडी के तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो उन्होंने गठबंधन तोड़कर एक बार फिर भाजपा से हाथ मिला लिया। 2022 में उन्होंने फिर भाजपा से नाता तोड़ा और महागठबंधन में लौटे, और जनवरी 2024 में एक बार फिर भाजपा के साथ लौट आए। राजनीति में ऐसे उतार-चढ़ाव बहुत कम नेता झेल पाते हैं और यह कहना गलत नहीं होगा कि नीतीश भारतीय राजनीति के “सबसे कुशल गठबंधन-प्रबंधक” हैं।

भाजपा की नीतीश के प्रति मजबूरी भी समझी जा सकती है। बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों पर टिकी है। जहाँ भाजपा का आधार ऊँची जातियों में है। वहीं जेडीयू का आधार कुर्मी, पिछड़ी और अति-पिछड़ी जातियों में है। बिहार में बिना जेडीयू के भाजपा का समीकरण अपूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि भाजपा, तमाम नाराजगी और मतभेदों के बावजूद, नीतीश कुमार को बार-बार मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करती रही है।

नीतीश पर कुछ आलोचनाएँ और विवाद भी रहे। शराबबंदी से जुड़े मामलों के अलावा, उनके कुछ सार्वजनिक भाषणों में ग़लतियाँ और नाम भूल जाने जैसी घटनाएँ वायरल हुईं, जिससे विपक्ष ने ‘स्मृति समस्या’ का मुद्दा उठाया। कई बार उनके बयानों ने भी विवाद खड़े किए, जैसे महिलाओं की शिक्षा और जनसंख्या पर दिया गया बयान। फिर भी, अब तक उनके खिलाफ किसी भी बड़े आर्थिक या आपराधिक घोटाले का प्रत्यक्ष प्रमाण सामने नहीं आया।

उनकी संपत्ति के संबंध में आधिकारिक वेबसाइटों के अनुसार, 2024–25 की सार्वजनिक घोषणा में उन्होंने करीब ₹1.64 करोड़ की परिसंपत्ति दिखाई है। इसमें नक़द ~₹21,052; बैंकों में ~₹60,812 रुपये थे। दिल्ली में फ्लैट के अलावा कोई बड़ी व्यावसायिक संपत्ति नहीं।वे अपने जीवनशैली में सरल और सादा छवि बनाए रखते हैं — शायद यही उनकी सबसे स्थायी पहचान है।

आज नीतीश कुमार दो दशकों से अधिक समय तक सत्ता में रह चुके हैं। इस लंबे कार्यकाल के बाद भी वे न केवल बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं, बल्कि राष्ट्रीय समीकरणों में भी अहम भूमिका निभाते हैं। हालांकि, उनके सामने अब नई चुनौतियाँ हैं — युवा मतदाता, बेरोज़गारी, प्रवासन, और विकास की नई परिभाषाएँ।

उनकी छवि ‘सुशासन बाबू’ की है, लेकिन आलोचक कहते हैं कि यह सुशासन अब थकने लगा है। वहीं समर्थक मानते हैं कि बिहार को जिस तरह उन्होंने 2005 के बाद अपराध और भय से बाहर निकाला, उसका कोई समानांतर नहीं।

नीतीश कुमार एक ऐसे नेता हैं जो हर आलोचना के बावजूद जीवित राजनीतिक प्रयोग हैं। उन्होंने सत्ता को कभी स्थायी नहीं माना, बल्कि एक ज़िम्मेदारी की तरह निभाया — चाहे वह रेल मंत्रालय का इस्तीफ़ा हो या मुख्यमंत्री पद पर नौवीं बार शपथ लेना। वे राजनीति के उन विरले पात्रों में हैं जो आज भी अपने ही बनाए विरोधाभासों में चलते हैं — जहाँ सिद्धांत और समझौता एक ही वाक्य में संभव हैं।

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