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कुंभ में मौतों का काला सच! सरकार ने छुपा ली 82 लाशें? राहुल गांधी का बड़ा हमला ‘मरने वालों की गिनती मिटा दो, तो गुनाह भी खत्म

Rahul Gandhi on Kumbh deaths: राहुल गांधी ने इस रिपोर्ट के आधार पर ट्वीट कर सरकार पर सीधा प्रहार किया। उन्होंने लिखा, “बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि कुंभ मेले की भगदड़ में हुई मौतों के आंकड़े छुपाए गए, जैसे कोविड में गरीबों की लाशें आंकड़ों से मिटा दी गई थीं।

Harsh Srivastava
Published on: 11 Jun 2025 9:37 PM IST
कुंभ में मौतों का काला सच! सरकार ने छुपा ली 82 लाशें? राहुल गांधी का बड़ा हमला ‘मरने वालों की गिनती मिटा दो, तो गुनाह भी खत्म
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Rahul Gandhi on Kumbh deaths: आखिर कब तक देश की सच्चाइयों पर पर्दा डाला जाएगा? कब तक आंकड़ों का खेल खेलकर जनता को अंधेरे में रखा जाएगा? जब कुंभ मेले जैसी विशाल धार्मिक आस्था का आयोजन हो और वहां मौतें हों, तो क्या सरकार का फर्ज नहीं बनता कि सच्चाई सामने रखी जाए? लेकिन अब जो खुलासा हुआ है, उसने एक बार फिर सरकार की नीयत पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसी पर निशाना साधा है। राहुल ने सीधे मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर हमला बोला है और आरोप लगाया है कि कुंभ मेले की भगदड़ में हुई मौतों की असली गिनती छुपाई गई। बीबीसी की एक रिपोर्ट ने इस पूरे मामले को आग में घी डालने का काम किया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार के बताए आंकड़े झूठे हैं। सरकार कहती रही कि कुंभ में 37 लोग मरे, लेकिन बीबीसी की पड़ताल बताती है कि असल में कम से कम 82 लोगों की जान गई। यानी आधी से भी कम मौतें गिनाई गईं और बाकी को चुपचाप दफन कर दिया गया।

बीजेपी मॉडल पर राहुल का तंज

राहुल गांधी ने इस रिपोर्ट के आधार पर ट्वीट कर सरकार पर सीधा प्रहार किया। उन्होंने लिखा, “बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि कुंभ मेले की भगदड़ में हुई मौतों के आंकड़े छुपाए गए, जैसे कोविड में गरीबों की लाशें आंकड़ों से मिटा दी गई थीं। जैसे हर बड़े रेल हादसे के बाद सच्चाई दबा दी जाती है। यही तो बीजेपी मॉडल है – गरीबों की गिनती नहीं, तो जिम्मेदारी भी नहीं!” राहुल गांधी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब मोदी सरकार तीसरी बार सत्ता में लौट चुकी है और विपक्ष लगातार उसे जनता से जुड़े मुद्दों पर घेरने की कोशिश कर रहा है। कुंभ मेले जैसी घटना को लेकर विपक्ष को एक ऐसा मुद्दा हाथ लगा है जिससे वह सीधे आम लोगों की भावनाओं को जोड़ सकता है।

बीबीसी की पड़ताल ने खोली परतें

बीबीसी की इस रिपोर्ट ने कुंभ हादसे की असल तस्वीर सामने लाने का दावा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इसके लिए बीबीसी की टीम ने हजारों किलोमीटर का सफर तय किया, 11 राज्यों और 50 से अधिक जिलों में जाकर 100 से ज्यादा परिवारों से मुलाकात की। इन परिवारों ने बताया कि कैसे उनके अपने कुंभ के दौरान भगदड़ में मारे गए, लेकिन सरकारी आंकड़ों में उनका नाम तक नहीं आया। बीबीसी ने यह भी कहा कि कई मौतों के प्रमाण स्थानीय स्तर पर मौजूद हैं, लेकिन सरकार ने इन्हें अपने रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं किया। सवाल यही उठ रहा है कि आखिर क्यों मौतों की असल संख्या छुपाई गई? क्या इसलिए ताकि सरकार पर कोई सवाल न खड़ा हो? या फिर इसलिए कि जनता का भरोसा टूटने से बचाया जा सके?

मौनी अमावस्या की रात बना काल

यह हादसा प्रयागराज के महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन हुआ था। 28-29 जनवरी की रात करीब डेढ़ से दो बजे के बीच लाखों श्रद्धालु अमृत स्नान करने पहुंचे। व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई। बैरिकेड टूटे और लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। भीड़ में दम घुटने और कुचलने से दर्जनों लोगों की मौत हो गई।सरकारी आंकड़ों में बताया गया कि 37 लोग मरे और 60 से ज्यादा घायल हुए। लेकिन बीबीसी की रिपोर्ट और पीड़ित परिवारों के बयान कुछ और ही कहानी कहते हैं।

सवालों के घेरे में सरकार

अब बड़ा सवाल यही है कि क्या बीजेपी सरकार सच में मौतों को छुपाकर अपनी जिम्मेदारी से बच रही है? क्या यही ‘बीजेपी मॉडल’ है, जैसा राहुल गांधी आरोप लगा रहे हैं? क्या जनता की जान की कीमत सिर्फ आंकड़ों में हेरफेर करके तय की जाएगी? फिलहाल सरकार की तरफ से इस रिपोर्ट पर कोई आधिकारिक जवाब नहीं आया है, लेकिन विपक्ष ने इस मुद्दे को संसद से लेकर सड़कों तक उठाने की तैयारी कर ली है। कुंभ में आस्था की भीड़ में जो लोग काल के गाल में समा गए, क्या उनकी आवाज कभी सरकारी फाइलों में दर्ज होगी या वे भी आंकड़ों के खेल में हमेशा के लिए गुम हो जाएंगे?

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Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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