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Vote Theft Fraud: भारत के अलावा वोट चोरी के आरोप कहां-कहां लगे, क्या आप जानते हैं?
Vote Theft Fraud: हाल ही में भारत में, कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में वोट चोरी (vote theft) के गंभीर आरोप लगाए, जिसने देश में एक नई बहस छेड़ दी।
Rahul Gandhi Vote Theft 2024 Election ECI Global Electoral Fraud
Vote Theft Fraud: लोकतंत्र की नींव मतदाता की स्वतंत्र और निष्पक्ष पसंद पर टिकी होती है। लेकिन जब इस पसंद को हेरफेर, धोखाधड़ी, या चोरी के ज़रिए छीना जाता है, तो यह न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठाता है, बल्कि जनता का विश्वास भी डगमगा देता है। हाल ही में भारत में, कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में वोट चोरी (vote theft) के गंभीर आरोप लगाए, जिसने देश में एक नई बहस छेड़ दी। उन्होंने विशेष रूप से कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में 1,00,250 फर्जी वोटों की बात कही, और इसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) और चुनाव आयोग (ECI) की मिलीभगत का नतीजा बताया।
लेकिन क्या वोट चोरी केवल भारत तक सीमित है? विश्व स्तर पर ऐसी घटनाएँ कितनी आम हैं और क्या ये आरोप नई बात हैं?
राहुल गांधी के आरोप:
7 अगस्त, 2025 को नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कर्नाटक के बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र के महादेवपुरा विधानसभा खंड में बड़े पैमाने पर मतदाता सूची हेरफेर का दावा किया। उन्होंने पाँच प्रकार की अनियमितताओं का उल्लेख किया: डुप्लिकेट वोटर, फर्जी और अमान्य पते, एक ही पते पर कई वोटर, अमान्य फोटो, और फॉर्म 6 का दुरुपयोग। उनके दावों के अनुसार, महादेवपुरा में 6.5 लाख वोटों में से 1,00,250 वोट ‘चुराए’ गए जिसमें 11,965 डुप्लिकेट वोटर, 40,009 फर्जी पते, और 10,452 एक ही पते पर रजिस्टर्ड वोटर शामिल थे।
उन्होंने एक उदाहरण दिया: गुरकीरत सिंह धंग का नाम चार अलग-अलग बूथों में चार अलग-अलग EPIC नंबरों के साथ दर्ज था। एक अन्य मामले में, आदित्य श्रीवास्तव का नाम उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,और कर्नाटक की वोटर लिस्ट में पाया गया। राहुल ने इसे "संवैधानिक सिद्धांत 'एक व्यक्ति, एक वोट' का उल्लंघन" बताया और चुनाव आयोग पर बीजेपी के साथ मिलकर ‘चुनाव चोरी’ का आरोप लगाया।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को ‘निराधार’ और ‘गैर-जिम्मेदार’ बताते हुए खारिज किया और राहुल से उनके दावों को शपथपत्र के साथ साबित करने या माफी माँगने को कहा। कर्नाटक, महाराष्ट्र, और हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों ने राहुल से फर्जी वोटरों के नाम और सबूत माँगे। राहुल ने जवाब में कहा कि उन्होंने संसद में संविधान की शपथ ली है, और अतिरिक्त शपथ की ज़रूरत नहीं उन्होंने डिजिटल वोटर लिस्ट और CCTV फुटेज की माँग की, यह दावा करते हुए कि कुछ राज्यों की ECI वेबसाइट्स उनके खुलासे के बाद बंद कर दी गईं।
इन आरोपों ने न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चर्चा को बढ़ावा दिया क्योंकि वोट चोरी और मतदाता सूची हेरफेर की घटनाएँ दुनिया भर में लोकतंत्र के लिए चुनौती बनी हुई हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में वोट चोरी
वोट चोरी, या इलेक्टोरल फ्रॉड, विभिन्न रूपों में हो सकती है: मतदाता सूची में हेरफेर, फर्जी मतदान, वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़, या मतगणना में धांधली। नीचे कुछ प्रमुख वैश्विक उदाहरण हैं जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं।
1. संयुक्त राज्य अमेरिका: ऐतिहासिक और आधुनिक मामले
संयुक्त राज्य अमेरिका में वोट चोरी के आरोप लंबे समय से चले आ रहे हैं।
19वीं सदी: न्यूयॉर्क शहर में "टैमनी हॉल" मशीन पॉलिटिक्स में, डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं पर मृत लोगों के नाम से वोट डालने और मतदाता सूची में हेरफेर के आरोप लगे।
2000 फ्लोरिडा विवाद: जॉर्ज डब्ल्यू. बुश और अल गोर के बीच राष्ट्रपति चुनाव में फ्लोरिडा की मतगणना विवादास्पद रही। ‘हैंगिंग चैड्स’( पंच-कार्ड बैलट्स में अधूरी छेद) और मतदाता सूची से हटाए गए नामों ने बड़े पैमाने पर बहस छेड़ी। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने अंततः बुश को विजेता घोषित किया।
2020 राष्ट्रपति चुनाव: डोनाल्ड ट्रम्प ने कई राज्यों में ‘वोट चोरी’ के आरोप लगाए, विशेष रूप से मेल-इन बैलट्स और वोटिंग मशीनों को लेकर। हालांकि, कोर्ट में कोई ठोस सबूत नहीं पेश किए गए, और अधिकांश दावे खारिज किए गए। फिर भी, इन आरोपों ने मतदाता विश्वास को प्रभावित किया।
2. रूस: नियंत्रित लोकतंत्र
रूस में वोट चोरी के आरोप अक्सर सामने आते हैं, विशेष रूप से व्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व में।
2011 डूमा चुनाव: स्वतंत्र पर्यवेक्षकों ने ‘बैलट स्टफिंग’ (बैलट बॉक्स में फर्जी वोट डालना) और मतदाता दबाव की शिकायतें दर्ज की। यूनाइटेड रशिया पार्टी पर अनुचित लाभ लेने का आरोप लगा।
2020 संवैधानिक जनमत संग्रह: पुतिन को अनिश्चितकाल तक सत्ता में रहने की अनुमति देने वाले जनमत संग्रह में बड़े पैमाने पर अनियमितताएँ सामने आईं, जैसे डुप्लिकेट वोटिंग और ऑनलाइन वोटिंग में हेरफेर।
3. जिम्बाब्वे: लंबे समय तक धांधली
जिम्बाब्वे में रॉबर्ट मुगाबे के शासनकाल में वोट चोरी के कई मामले सामने आए।
2008 राष्ट्रपति चुनाव: विपक्षी नेता मॉर्गन त्सवांगिराई के समर्थकों ने दावा किया कि मतदाता सूची में मृत लोगों के नाम शामिल थे, और ZANU-PF पार्टी ने हिंसा और धमकी के ज़रिए वोट प्रभावित किए।
2013 चुनाव: इलेक्ट्रॉनिक वोटर रजिस्ट्रेशन में गड़बड़ियाँ और मतगणना में देरी ने धांधली के आरोपों को हवा दी।
4. वेनेज़ुएला: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग विवाद
वेनेज़ुएला में निकोलस मादुरो के शासन में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम पर सवाल उठे हैं।
2017 क्षेत्रीय चुनाव: स्मार्टमैटिक, वोटिंग मशीन प्रदान करने वाली कंपनी ने दावा किया कि मतगणना में कम से कम 10 लाख वोटों की हेरफेर हुई।
2018 राष्ट्रपति चुनाव: विपक्ष ने मतदाता दबाव और फर्जी वोटर ID के उपयोग का आरोप लगाया, जिसे अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने भी पुष्टि की।
5. पाकिस्तान: बार-बार के आरोप
पाकिस्तान में हर बड़े चुनाव में धांधली के आरोप लगते हैं।
2013 आम चुनाव: इमरान खान की PTI ने दावा किया कि मतदाता सूची में हेरफेर और बैलट बॉक्स स्टफिंग के कारण PML-N को अनुचित लाभ मिला।
2018 चुनाव: फिर से, PTI की जीत पर विपक्षी दलों ने वोट चोरी और सैन्य हस्तक्षेप के आरोप लगाए।
भारत में वोट चोरी: ऐतिहासिक संदर्भ
भारत में भी वोट चोरी के आरोप नए नहीं हैं।
1970-80 के दशक: बैलट पेपर युग में, ‘बूथ कैप्चरिंग’यएक आम समस्या थी, जहाँ प्रभावशाली लोग या गुंडे मतदान केंद्रों पर कब्जा कर लेते थे।
EVM विवाद: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के आने के बाद, कई पार्टियों ने इनके साथ छेड़छाड़ की आशंका जताई। 2019 और 2024 के चुनावों में विपक्षी दलों ने EVM की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ECI के प्रोटोकॉल्स को सही ठहराया।
राहुल गांधी के आरोप: 2024 में राहुल गांधी के दावों ने एक नया मोड़ लिया, क्योंकि उन्होंने डेटा-आधारित विश्लेषण पेश किया, जैसे महादेवपुरा में 1,00,250 फर्जी वोट। हालांकि, ECI ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि मतदाता सूची और मतदान दो अलग प्रक्रियाएँ हैं, और एक व्यक्ति केवल एक बार वोट डाल सकता है।
राहुल गांधी के आरोपों की जाँच
राहुल गांधी के दावों ने कई सवाल उठाए हैं:
सबूतों की कमी: ECI ने कहा कि राहुल ने कोई लिखित शिकायत नहीं दी, और उनके दावे "विश्लेषण पर आधारित निष्कर्ष" हैं, न कि ठोस सबूत। उदाहरण के लिए, शकुंतला रानी के मामले में, जिनके बारे में राहुल ने दावा किया कि उन्होंने दो बार वोट डाला, ECI ने पाया कि उन्होंने केवल एक बार वोट दिया।
पारदर्शिता की माँग: राहुल ने डिजिटल, मशीन-रीडेबल वोटर लिस्ट और CCTV फुटेज की माँग की, जो ECI ने उपलब्ध नहीं कराई। ECI का कहना है कि वोटर डेटा PDF फॉर्मेट में उपलब्ध है, लेकिन इसे सर्चेबल टेक्स्ट में देना तकनीकी रूप से जटिल है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ: बीजेपी ने राहुल के दावों को "हास्यास्पद" और "हर हार का बहाना" बताया। वहीं, शरद पवार और शशि थरूर जैसे विपक्षी नेताओं ने राहुल का समर्थन किया।
वैश्विक तुलना और सबक
वोट चोरी के वैश्विक मामले भारत के संदर्भ में कई सबक देते हैं:
पारदर्शिता: अमेरिका और यूरोप में, वोटर लिस्ट और मतदान डेटा को डिजिटल रूप में उपलब्ध कराया जाता है, जिससे ऑडिट आसान होता है। भारत में ECI को डेटा साझा करने की प्रक्रिया को और पारदर्शी करना चाहिए।
तकनीकी सुरक्षा: रूस और वेनेज़ुएला के मामलों से पता चलता है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम में हेरफेर संभव है। भारत में EVM और VVPAT की जाँच को और सख्त करना होगा।
नागरिक भागीदारी: जिम्बाब्वे और पाकिस्तान के उदाहरण बताते हैं कि स्वतंत्र पर्यवेक्षकों और नागरिक संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत में भी NGO और स्वतंत्र संस्थाओं को मतदाता सूची ऑडिट में शामिल करना चाहिए।
राहुल गांधी के आरोपों ने भारत में वोट चोरी और मतदाता सूची हेरफेर पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ी है। हालांकि उनके दावे अभी तक ठोस सबूतों से सिद्ध नहीं हुए, लेकिन इनसे ECI की प्रक्रियाओं में सुधार की ज़रूरत उजागर हुई है। वैश्विक स्तर पर, वोट चोरी के मामले बताते हैं कि कोई भी लोकतंत्र इस खतरे से अछूता नहीं है। डिजिटल तकनीक, स्वतंत्र ऑडिट, और नागरिक जागरूकता इस समस्या का समाधान हो सकते हैं। भारत में, जहाँ लोकतंत्र 140 करोड़ लोगों की आवाज़ है, यह ज़रूरी है कि हर वोट की पवित्रता बरकरार रहे
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