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मातोश्री में लगी सियासी चिंगारी! क्या राज और उद्धव का मेल बदलेगा महाराष्ट्र की राजनीति का खेल? फडणवीस और पवार ने दिया बड़ा संकेत
Raj Thackeray meets Uddhav:राज ठाकरे ने छह साल बाद मातोश्री पहुंचकर उद्धव ठाकरे को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं, जिससे महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मच गई है।
Raj Thackeray meets Uddhav: रविवार की सुबह जब महाराष्ट्र की राजनीति आम दिनों की तरह सुस्त सी लग रही थी, तब एक तस्वीर ने पूरे सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया। मातोश्री के दरवाजे पर खड़े थे मनसे प्रमुख राज ठाकरे, और उनका स्वागत कर रहे थे शिवसेना (उद्धव गुट) के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे। बहाना था जन्मदिन की शुभकामनाओं का, लेकिन मकसद क्या था बस यही सवाल अब हर गली-चौराहे से लेकर विधान भवन की सीढ़ियों तक गूंज रहा है। राज ठाकरे छह साल बाद मातोश्री पहुंचे और ये महज़ एक पारिवारिक मुलाकात भर नहीं थी। वो घर, जहां कभी बालासाहेब ठाकरे की गूंजती आवाज़ सुनी जाती थी अब एक नई कहानी का गवाह बन गया है एक ऐसी कहानी, जो आने वाले निकाय चुनावों में बहुत कुछ पलट सकती है।
क्या बन रही है नई ‘ठाकरे युति’?
निकाय चुनाव नजदीक हैं, और उद्धव ठाकरे की शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बीच संभावित गठबंधन की चर्चा अचानक ज़ोर पकड़ने लगी है। क्या दो दशक पहले जुदा हुए ये ठाकरे भाई अब फिर से एक हो रहे हैं? उद्धव ठाकरे ने मुलाकात के बाद कहा, “यह खुशी दोगुनी नहीं, कई गुना हो गई है। हम उस घर में मिले जहां हम पले-बढ़े, और उस व्यक्ति के कमरे में जहां बालासाहेब ने हमें संस्कार दिए।” उद्धव का यह भावनात्मक बयान सिर्फ एक पारिवारिक मेल नहीं, बल्कि उस राजनीतिक विरासत की झलक है जिसे ठाकरे परिवार अब दोबारा साझा कर सकता है। राज ठाकरे ने भी ट्वीट के ज़रिए मुलाकात की पुष्टि की और इसे ‘बड़े भाई को शुभकामनाएं’ देने की भावनात्मक वजह बताया। लेकिन सवाल ये है, क्या यह शुभकामनाएं सिर्फ घर तक सीमित हैं, या आने वाले चुनावों में मतपेटियों तक असर डालेंगी?
फडणवीस का सधा हुआ हमला और पवार की शांति
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पत्रकारों से बात करते हुए मुलाकात को ‘सामान्य’ बताया और कहा, “जब हम भी शुभकामनाएं देने जाते हैं, तो उसमें राजनीति नहीं देखनी चाहिए।” लेकिन साथ ही चुटकी लेते हुए जोड़ दिया, “अब देखना होगा कि महाराष्ट्र के मन में क्या है, ना कि कुछ नेताओं के मन में।” यह बयान अपने आप में बहुत कुछ कहता है। फडणवीस जानते हैं कि अगर राज और उद्धव एक हो जाते हैं, तो बीएमसी जैसे चुनावी किले में बीजेपी की राह मुश्किल हो सकती है। दूसरी ओर, उपमुख्यमंत्री अजित पवार का रुख बेहद संयमित और सकारात्मक रहा। उन्होंने कहा, “यह दोनों भाइयों का पारिवारिक मामला है। अगर 20 साल बाद दो भाई फिर साथ आते हैं, तो इसमें क्या बुराई है?” लेकिन राजनीति में कुछ भी सिर्फ पारिवारिक नहीं होता खासकर जब बात हो ठाकरे परिवार की।
क्या ‘मातोश्री’ फिर बनेगा गठजोड़ की जननी?
बालासाहेब ठाकरे का निवास ‘मातोश्री’ सिर्फ एक घर नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति का वह धुरी रहा है, जहां बैठकर कई सरकारों के गठन और पतन की पटकथाएं लिखी गईं। अब अगर उसी घर में राज और उद्धव का मेल होता है, तो यह सिर्फ भावनाओं का संगम नहीं, बल्कि राजनीतिक समीकरणों का विस्फोट भी हो सकता है। मनसे और शिवसेना का साथ आना बीएमसी, ठाणे, पुणे और अन्य शहरी निकायों में बीजेपी और शिंदे गुट के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन सकता है। मराठी वोट बैंक का एक बार फिर एकजुट होना, पुरानी शिवसेना की याद ताज़ा कर सकता है।
जनता क्या कहेगी, यही असली परीक्षा है
शिवसेना और मनसे का एक साथ आना जितना राजनीतिक रूप से रोमांचक है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। मतदाता अब पहले जैसा भावनात्मक नहीं रहा, वह सवाल करता है, जवाब चाहता है।
क्या उद्धव और राज में वैचारिक एकता आ सकेगी?
क्या पुरानी कटुता और सियासी टकराव भुलाकर ये दोनों नेता एक साझा मंच तैयार कर सकेंगे?
या फिर यह महज़ एक दिखावटी मेल है, जो चुनावी समीकरणों को उलझाने के लिए किया गया स्टंट है?
एक मुलाकात, कई मतलब
इस मुलाकात को आप चाहे पारिवारिक कहिए या राजनीतिक, लेकिन इतना तो तय है कि मातोश्री की उस तस्वीर ने महाराष्ट्र की सियासत को झकझोर कर रख दिया है। यह एक ऐसी झलक है, जिसमें भाईचारे की उम्मीद है, सत्ता की चाल है और भविष्य की राजनीति का संकेत भी। अब देखना यह है कि क्या यह मेल वोटों की वैतरणी पार करने में मदद करेगा या सिर्फ भावनाओं की बाढ़ बनकर रह जाएगा? एक मुलाकात से शुरू हुई ये कहानी, आने वाले चुनावों में इतिहास लिख सकती है।
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