बाहुबली VS बाहुबली, मोकामा की सियासत का खूनी सच, जहां है जाति और बाहुबल का घातक कॉकटेल

मोकामा विधानसभा सीट की सबसे बड़ी खासियत यह रही है कि यहां की सियासत पर हमेशा से भूमिहारों का दबदबा रहा है और मुकाबला अक्सर बाहुबली नेताओं के बीच ही होता आया है। इसी सियासी पृष्ठभूमि में गुरुवार को दुलारचंद यादव की हत्या हो गई, और इस वारदात का आरोप बाहुबली अनंत सिंह पर लगाया गया है।

Shivam Srivastava
Published on: 31 Oct 2025 7:02 PM IST
बाहुबली VS बाहुबली, मोकामा की सियासत का खूनी सच, जहां है जाति और बाहुबल का घातक कॉकटेल
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पटना से लगभग 100 किलोमीटर दूर मोकामा विधानसभा क्षेत्र में गुरुवार को जन सुराज पार्टी से जुड़े स्थानीय नेता दुलारचंद यादव की हत्या कर दी गई। इस घटना का आरोप जेडीयू उम्मीदवार और बाहुबली अनंत सिंह पर लगा है। हत्या ने न सिर्फ मोकामा, बल्कि पूरे बिहार की राजनीति को हिला कर रख दिया है।

हत्या के बाद अनंत सिंह ने पलटवार करते हुए कहा कि इसके पीछे उनके विरोधी सूरजभान सिंह का हाथ है। सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी इस बार आरजेडी के टिकट पर मोकामा से चुनाव मैदान में हैं। दुलारचंद यादव खुद भी एक दबंग नेता माने जाते थे। कभी वे लालू प्रसाद यादव के करीबी रहे, बाद में अनंत सिंह के खेमे में शामिल हुए, लेकिन इस चुनाव में उन्होंने उनके खिलाफ काम किया।

माना जा रहा है कि दुलारचंद यादव जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी को जिताने के लिए सक्रिय थे। मोकामा के टाल क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ थी, और वहीं उनकी हत्या हुई। इस वारदात के बाद बिहार की सियासी तापमान और बढ़ गया है।

तीन दशक से मोकामा में बाहुबली सियासत

मोकामा की राजनीति बीते साढ़े तीन दशक से बाहुबली नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 1990 में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह पहली बार जनता दल से विधायक बने और 1995 में फिर जीते। साल 2000 में उन्हें सूरजभान सिंह ने हराया। पांच साल बाद अनंत सिंह ने राजनीति में प्रवेश किया और 2005 में जेडीयू के टिकट पर पहली बार विधानसभा पहुंचे।

2005 से 2020 तक वे लगातार विजेता रहे तीन बार जेडीयू से, 2015 में निर्दलीय और 2020 में आरजेडी के उम्मीदवार के रूप में। हालांकि 2022 में सजा के कारण उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई। इसके बाद उनकी पत्नी नीलिमा देवी ने उपचुनाव जीता। अब अनंत सिंह फिर से जेडीयू के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं।

भूमिहारों का गढ़ है मोकामा

मोकामा विधानसभा क्षेत्र को लंबे समय से भूमिहारों का गढ़ माना जाता है। यहां भूमिहार आबादी करीब 30 प्रतिशत से अधिक है और सियासत में उनका दबदबा रहा है। 1952 से अब तक मोकामा से जितने भी विधायक बने हैं जगदीश नारायण सिंह, सरयू नारायण प्रसाद सिंह, कामेश्वर प्रसाद सिंह, कृष्णा शाही, दिलीप सिंह, सूरजभान सिंह और अनंत सिंह सभी भूमिहार समाज से रहे हैं। यहां भूमिहार नेताओं को चुनौती देने की कोशिशें हुईं, लेकिन सफलता किसी और जातीय वर्ग को नहीं मिल सकी।

यादवों की चुनौती

मोकामा की राजनीति में यादव समुदाय की चुनौती हमेशा से बनी रही है। यहां जातीय समीकरणों के अनुसार भूमिहार लगभग 30%, यादव 20%, राजपूत 10%, कुर्मी-कोइरी 20-25%, दलित 16-17% और मुस्लिम 5% हैं। निर्णायक भूमिका यादव, भूमिहार, कुशवाहा और मुस्लिम वोटरों की होती है।

90 के दशक में जब लालू यादव का दौर आया, तब यादव समुदाय की राजनीतिक ताकत बढ़ी। इसी दौर में दुलारचंद यादव का उदय हुआ, जिन्होंने टाल क्षेत्र में दबदबा बनाया और यादव, ओबीसी व दलित वोटों के सहारे भूमिहारों को चुनौती दी। कई बार उन्होंने अनंत सिंह और दिलीप सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा, पर जीत नहीं सके। बेखौफ अंदाज और प्रभावशाली पकड़ के कारण लोग उन्हें ‘टाल का बादशाह’ कहते थे। 2019 में पटना ग्रामीण क्षेत्र में उन्हें पुलिस ने ‘कुख्यात गैंगस्टर’ के तौर पर गिरफ्तार किया था।

बाहुबली बनाम बाहुबली की जंग

मोकामा की राजनीति पर बाहुबली नेताओं का प्रभाव लगातार बना रहा है। सूरजभान सिंह, जिनका नाम 90 के दशक में अंडरवर्ल्ड और सियासत दोनों में गूंजा, 2000 में मोकामा से विधायक रह चुके हैं। उन्होंने अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को हराया था।

इस बार सूरजभान की पत्नी वीणा देवी, जो पहले मुंगेर से एलजेपी सांसद रह चुकी हैं, आरजेडी के टिकट पर मैदान में हैं। दूसरी ओर, जेडीयू से अनंत सिंह फिर चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों ही भूमिहार समुदाय से आते हैं और इस वर्ग में दोनों की मजबूत पकड़ है। यही कारण है कि मोकामा सीट इस बार बिहार की सबसे चर्चित सीटों में शामिल हो गई है।

2020 के चुनाव में अनंत सिंह आरजेडी से उम्मीदवार थे, जबकि जेडीयू ने राजीव लोचन नारायण सिंह को उतारा था, जिन्हें सोनू-मोनू गैंग का समर्थन बताया गया। 2022 के उपचुनाव में बीजेपी ने सोनम देवी (ललन सिंह की पत्नी) को उम्मीदवार बनाया। ललन सिंह को सूरजभान सिंह का करीबी माना जाता है और वे पहले भी अनंत सिंह के खिलाफ तीन बार (2005, 2010, 2015) मैदान में उतर चुके हैं।

सूरजभान सिंह ने ही ललन सिंह को दो बार लोजपा से टिकट दिलाया था। अब सूरजभान अपनी पत्नी वीणा देवी के समर्थन में खुलकर सामने आए हैं। इस तरह मोकामा की राजनीति हमेशा बाहुबल और जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है जहां मुकाबले भी बाहुबली नेताओं के बीच ही होते रहे हैं और जीत भी अक्सर उन्हीं के हिस्से आती रही है।

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