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Tahawwur Rana Ka Khulasa: तहव्वुर राणा, 26/11 मुंबई हमलों का साजिशकर्ता और उसके सनसनीखेज खुलासे
Tahawwur Rana Sensational Revelations: मुंबई क्राइम ब्रांच की पूछताछ में तहव्वुर राणा ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए...
Tahawwur Rana Sensational Revelations 26/11 Mumbai Attacks
Tahawwur Rana Ka Khulasa: 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमलों ने भारत और पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और नरीमन हाउस पर हुए इन हमलों में 166 लोग मारे गए, जिनमें 6 अमेरिकी नागरिक शामिल थे, और 300 से अधिक लोग घायल हुए। इस भयावह साजिश के पीछे कई चेहरों में से एक प्रमुख नाम है तहव्वुर हुसैन राणा, जिसे अप्रैल 2025 में अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया गया। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और मुंबई क्राइम ब्रांच की पूछताछ में राणा ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए, जिन्होंने लश्कर-ए-तैयबा, डेविड हेडली और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी (आईएसआई) के साथ उसके गहरे संबंधों को उजागर किया। यह लेख तहव्वुर राणा के जीवन, उसकी आतंकी गतिविधियों और उसके खुलासों के आधार पर 26/11 हमलों की साजिश को विस्तार से समझाता है।
तहव्वुर राणा: प्रारंभिक जीवन
तहव्वुर राणा का जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चिचावतनी में हुआ था। उनके पिता, राणा वल्ली मोहम्मद, बी.ए. स्नातक थे और भारत के पंजाब के नवांशहर, जालंधर के मूल निवासी थे। 1947 में भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान के साहीवाल जिले में बस गया। राणा की मां, मुबारक बेगम, ने 96 साल की उम्र तक जीवन जिया और अपने अंतिम वर्ष कनाडा में राणा के परिवार के साथ बिताए।
1974 से 1979 तक, राणा ने पंजाब, पाकिस्तान के कैडेट कॉलेज हसन अब्दाल में पढ़ाई की। यहीं उनकी मुलाकात डेविड कोलमैन हेडली (उस समय दाऊद गिलानी) से हुई, जो बाद में 26/11 हमलों की साजिश में उनका साथी बना। हेडली का जन्म पाकिस्तान में हुआ था, लेकिन उनकी मां अमेरिकी थीं। पारिवारिक समस्याओं और सौतेली मां की प्रताड़ना के कारण हेडली ने अपनी जैविक मां के साथ अमेरिका जाने का फैसला किया। राणा ने बताया कि हेडली सात भाषाओं पंजाबी, उर्दू, अंग्रेजी, हिंदी, फारसी, पश्तो और अरबी में निपुण था।
1979 में, जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी के समय, राणा बिना अपने माता-पिता को बताए अमेरिका चले गए। उनका उद्देश्य फिलाडेल्फिया के हानिमैन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में चिकित्सा शिक्षा लेना था, लेकिन 6,000 डॉलर की ट्यूशन फीस वहन न कर पाने के कारण उन्हें वापस पाकिस्तान लौटना पड़ा। इसके बाद, उन्होंने 1981 से 1986 तक रावलपिंडी के आर्मी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई की और एमबीबीएस की डिग्री हासिल की।
सैन्य और चिकित्सा करियर
एमबीबीएस पूरा करने के बाद, राणा पाकिस्तान सेना में मेडिकल कोर में कैप्टन के रूप में शामिल हुए। उनकी पहली तैनाती 1986-87 में क्वेटा में हुई, फिर 1987-88 में सिंध और बलूचिस्तान के ग्रामीण क्षेत्रों में, और 1988-89 में बहावलपुर में डेजर्ट रेंजर्स के साथ सेवा दी। 1989 में, उन्हें सऊदी अरब में सऊदी सशस्त्र बलों की चौथी ब्रिगेड के साथ डेपुटेशन पर भेजा गया, जहां उन्होंने खाड़ी युद्ध (1990-91) के दौरान एक गुप्त मिशन पर काम किया। 1992 में, सियाचिन और बाल्तोरो सेक्टर में तैनाती के दौरान उन्हें पल्मोनरी और सेरेब्रल एडिमा हुआ, जिसके बाद 1993 में उन्होंने सेना छोड़ दी। इस दौरान पाकिस्तान सेना ने उन्हें डिज़र्टर घोषित कर दिया।
1993 में, स्वास्थ्य लाभ के बाद, राणा जर्मनी चले गए और फिर इंग्लैंड गए। 1994 में, वह अमेरिका पहुंचे और 1997 में यूएस मेडिकल लाइसेंसिंग एग्जाम (USMLE) पास करके चिकित्सा अभ्यास की अनुमति प्राप्त की। उसी वर्ष, वह कनाडा के ओटावा चले गए और 2000 में कनाडाई नागरिकता हासिल की। उनकी पत्नी, समराज राणा, एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं और कनाडा में पंजीकृत डॉक्टर हैं। सऊदी अरब में तैनाती के दौरान बचाई गई रकम ने उन्हें व्यवसाय शुरू करने में मदद की।
इमिग्रेशन बिजनेस और आतंकी गतिविधियों की शुरुआत
2000 में, राणा ने अमेरिका के लिए निवेशक वीजा प्राप्त किया और इलिनॉय के किंग्स में एक मांस प्रसंस्करण संयंत्र शुरू किया। साथ ही, उन्होंने शिकागो में एक किराना दुकान और एक मेडिकल क्लिनिक के लिए इमारत लीज़ पर ली। इसके बाद, उन्होंने 'फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज' नामक एक इमिग्रेशन बिजनेस शुरू किया, जो विभिन्न देशों के लिए वीजा दिलाने में मदद करता था। यह विचार डेविड मॉरिस का था, और शिकागो में इसकी शाखा शुरू की गई, जहां रेमंड जे. सैंडर्स को वकील नियुक्त किया गया। कनाडा में डेविड मॉरिस, ऑस्ट्रेलिया में एक पाकिस्तानी नागरिक आरिफ, और भारत में हैदराबाद के सैयद सज्जाद इस सेंटर को संभालते थे।
राणा ने दावा किया कि मुंबई में इमिग्रेशन सेंटर खोलने का विचार उनका था, न कि हेडली का। उनकी मैनेजर महरूख भरूचा मुंबई में इस शाखा को संभाल रही थी। हालांकि, एनआईए को शक है कि यह सेंटर 26/11 हमलों की रेकी और साजिश के लिए एक कवर के रूप में इस्तेमाल हुआ। राणा ने पूछताछ में बताया कि इस सेंटर को मुंबई में चलाने में स्थान की वजह से दिक्कतें आईं, लेकिन यह सेंटर हेडली को फर्जी दस्तावेज और यात्रा सुविधाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण था।
26/11 मुंबई हमलों में भूमिका
राणा और हेडली की दोस्ती स्कूल के दिनों से थी। हेडली ने राणा को बताया कि उसने 2001 या 2004 में लश्कर-ए-तैयबा से तीन nauqaadaa तीन चरणों का प्रशिक्षण लिया था, जिनके नाम 'आम', 'खास' और एक अन्य कोर्स थे। राणा ने कहा कि लश्कर के सदस्य विचारधारा के अनुयायी कम, जासूस ज्यादा थे, जिससे वह अपनी संलिप्तता को कम करने की कोशिश करता दिखा।
हेडली ने 2006 से 2008 तक मुंबई में पांच बार रेकी की, जिसमें ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस जैसे स्थानों की वीडियो रिकॉर्डिंग की। राणा ने अपने इमिग्रेशन बिजनेस के जरिए हेडली को फर्जी दस्तावेज और कवर प्रदान किए। राणा ने खुद 11 से 21 नवंबर 2008 तक भारत की यात्रा की, जिसमें उन्होंने मुंबई, हापुड़, आगरा, मेरठ और दिल्ली में रेकी की थी। एनआईए को शक है कि वह स्लीपर सेल नेटवर्क बनाने की योजना बना रहा था।
राणा ने पूछताछ में अब्दुल रहमान पाशा, साजिद मीर और मेजर इकबाल जैसे लोगों के बारे में बताया, जिनसे उसकी मुलाकात हेडली ने करवाई थी। उसने मेजर इकबाल के पाकिस्तान के कबायली क्षेत्र में गिरफ्तार होने की बात स्वीकारी। हालांकि, उसने हाफिज सईद से मुलाकात से इनकार किया, लेकिन स्वीकार किया कि लश्कर-ए-तैयबा, हरकत-उल-जिहाद और जैश-ए-मोहम्मद पाकिस्तानी आतंकी संगठन हैं। उसने यह भी बताया कि बशीर शेख नामक व्यक्ति ने कनाडा में उससे मुलाकात की थी और हेडली के लिए मुंबई में रहने की जगह ढूंढने में मदद की थी।
गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण
18 अक्टूबर 2009 को, राणा को डेनमार्क के एक अखबार पर हमले की साजिश के मामले में गिरफ्तार किया गया, जो कभी अमल में नहीं आया। 2013 में, उन्हें अमेरिका में लश्कर-ए-तैयबा को समर्थन देने और डेनमार्क साजिश के लिए 14 साल की सजा हुई, लेकिन मुंबई हमले में उनकी प्रत्यक्ष संलिप्तता साबित नहीं हुई। भारत ने उनका प्रत्यर्पण मांगा, और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 7 अप्रैल 2025 को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। 10 अप्रैल 2025 को, राणा को विशेष विमान से दिल्ली लाया गया, जहां एनएसजी कमांडो और एनआईए ने उन्हें हिरासत में लिया। उन्हें पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, जहां 18 दिन की एनआईए कस्टडी मंजूर हुई।
पूछताछ में सनसनीखेज खुलासे
एनआईए और मुंबई क्राइम ब्रांच की पूछताछ में राणा ने कई सनसनीखेज खुलासे किए:
पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का एजेंट: राणा ने स्वीकार किया कि वह पाकिस्तानी सेना का विश्वसनीय एजेंट था और खाड़ी युद्ध के दौरान सऊदी अरब में गुप्त मिशन पर था। उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षण शिविरों में हेडली के साथ प्रशिक्षण लिया था।
मुंबई हमलों में भूमिका: राणा ने पुष्टि की कि वह 26/11 हमलों के दौरान मुंबई में मौजूद थे और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस जैसे प्रमुख स्थानों की रेकी की थी। उन्होंने दावा किया कि यह हमला आईएसआई की देखरेख में हुआ था, और लश्कर-ए-तैयबा एक जासूसी नेटवर्क की तरह काम करता था।
हेडली के साथ सांठगांठ: राणा और हेडली की स्कूल की दोस्ती इस साजिश का आधार बनी। हेडली ने 2006 से 2008 तक मुंबई में पांच रेकी यात्राएं कीं, और राणा ने अपने इमिग्रेशन बिजनेस के जरिए उन्हें समर्थन दिया।
आईएसआई और लश्कर का गठजोड़: राणा ने लश्कर, हरकत-उल-जिहाद और आईएसआई के बीच गहरे संबंधों का खुलासा किया। उन्होंने मेजर इकबाल और मेजर समीर अली जैसे वरिष्ठ आईएसआई अधिकारियों की भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने हाफिज सईद, जकी-उर-रहमान लखवी और साजिद मीर जैसे लश्कर कमांडरों से मुलाकात की बात भी बताई।
अन्य आतंकी योजनाएं: राणा ने खुलासा किया कि मुंबई के अलावा दिल्ली जैसे अन्य भारतीय शहरों पर भी हमले की योजना थी। मुंबई हमले को सितंबर/अक्टूबर 2008 से नवंबर तक अरब सागर की खराब स्थिति के कारण टाला गया था।
रहस्यमयी महिला: एनआईए उस महिला की पहचान की जांच कर रही है, जो राणा के साथ मुंबई में रेकी के दौरान थी। राणा ने दावा किया कि यह उनकी पत्नी थी, लेकिन एनआईए को संदेह है कि वह साजिश में शामिल हो सकती है।
पाकिस्तान का रुख और कूटनीतिक प्रभाव
राणा के प्रत्यर्पण और खुलासों के बाद, पाकिस्तान ने दूरी बनाते हुए कहा कि राणा अब कनाडाई नागरिक हैं और उनका पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने कहा, "राणा ने अपनी पाकिस्तानी नागरिकता के दस्तावेज 20 साल से नवीनीकृत नहीं किए।" पाकिस्तान ने 26/11 हमलों में आईएसआई की किसी भी भूमिका से इनकार किया। भारत ने इन बयानों को खारिज करते हुए पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताया और राणा के खुलासों को इसका सबूत माना। राणा का प्रत्यर्पण भारत की कूटनीतिक जीत है, जो 1997 की भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि और फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच हुई बातचीत का नतीजा है।
वर्तमान स्थिति और कानूनी कार्यवाही
7 जुलाई 2025 तक, राणा एनआईए की हिरासत में दिल्ली के एनआईए मुख्यालय में हाई-सिक्योरिटी सेल में हैं। उन्हें जल्द ही तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया जाएगा। एनआईए गहन पूछताछ कर रही है, जिसमें ईमेल, यात्रा रिकॉर्ड और अन्य सबूतों का विश्लेषण शामिल है। गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत राणा को आजीवन कारावास जैसी गंभीर सजा हो सकती है, हालांकि 1997 की प्रत्यर्पण संधि के कारण उन्हें फांसी की सजा नहीं दी जा सकती। एनआईए जल्द ही राणा के खुलासों और हेडली के पिछले बयानों के आधार पर एक पूरक चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी में है।
पूर्व केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह का मानना है कि राणा के खुलासे भारत में आईएसआई के स्लीपर सेल और पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की संलिप्तता को उजागर कर सकते हैं। एनआईए ने राणा से लश्कर और आईएसआई के ढांचे, वित्तपोषण और अन्य साजिशकर्ताओं की पहचान के बारे में सवाल पूछे हैं।
डेविड हेडली की भूमिका
डेविड हेडली, जिनका असली नाम दाऊद गिलानी है, 26/11 साजिश का एक केंद्रीय चेहरा हैं। अक्टूबर 2009 में अमेरिका में गिरफ्तार होने के बाद, उन्होंने सरकारी गवाह बनकर लश्कर और आईएसआई के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। 2016 में, उन्होंने मुंबई की एक अदालत में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाही दी, जिसमें लश्कर की भूमिका और राणा की संलिप्तता की पुष्टि की। वर्तमान में वह अमेरिका में 35 साल की सजा काट रहे हैं, और उनके समझौते के कारण भारत को प्रत्यर्पित नहीं किया गया, जिससे भारत में निराशा है।
राणा की पूछताछ से आतंकी नेटवर्क को और समझने में मदद मिल सकती है और पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव बढ़ सकता है। यह भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ है और एनआईए की जांच से 26/11 की साजिश के और रहस्य सामने आ सकते हैं। क्या राणा के खुलासे साजिश के असली मास्टरमाइंड्स को सजा दिला पाएंगे? यह समय बताएगा।
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