भारत ने UN को लताड़ा, विदेश मंत्री ने UNSC के सदस्यों पर आतंकियों को बचाने का लगाया आरोप

UN Reform: संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यूएन सुधार और आतंकवाद पर कड़ा रुख अपनाया।

Akriti Pandey
Published on: 24 Oct 2025 3:16 PM IST
United Nations Reform
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UN Reform: भारत की राजधानी नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की स्थापना की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अपने संबोधन में संयुक्त राष्ट्र और विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की भूमिका, उसकी सीमाओं और सुधार की आवश्यकता पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज संयुक्त राष्ट्र को अपने उद्देश्यों और निर्णय-प्रक्रिया की निष्पक्षता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली पर सवाल

विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में सब कुछ ठीक नहीं है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि इसके फैसले लेने की प्रक्रिया न तो सभी सदस्य देशों का सही प्रतिनिधित्व करती है और न ही यह आज की दुनिया की वास्तविक जरूरतों को प्रतिबिंबित करती है। उनके अनुसार, संयुक्त राष्ट्र में होने वाली बहसें अब अत्यधिक ध्रुवीकृत (polarized) हो चुकी हैं और इसका कामकाज लगभग ठहराव की स्थिति में पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि "आतंकवाद के प्रति संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया उसकी विश्वसनीयता की कमी को उजागर करती है, जबकि वैश्विक दक्षिण (Global South) में विकास की गति काफी धीमी पड़ गई है।"

आशा और बहुपक्षवाद की आवश्यकता

जयशंकर ने यह भी कहा कि इस महत्वपूर्ण वर्षगांठ पर हमें आशा नहीं छोड़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि बहुपक्षवाद (multilateralism) के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, चाहे वह कितनी भी त्रुटिपूर्ण क्यों न हो, मजबूत बनी रहनी चाहिए। उन्होंने सभी देशों से आग्रह किया कि वे संयुक्त राष्ट्र का समर्थन जारी रखें और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में अपने विश्वास को पुनर्जीवित करें। उनके अनुसार, इस तरह के आयोजन वैश्विक एकता और साझा उद्देश्य का संदेश देते हैं।

ग्लोबल साउथ की पीड़ा और चुनौतियाँ

विदेश मंत्री ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि आज के समय में कई बड़े विवाद विश्व समुदाय को प्रभावित कर रहे हैं। इन विवादों का असर न केवल मानव जीवन पर बल्कि पूरे अंतर्राष्ट्रीय तंत्र पर पड़ा है। उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों ने इस पीड़ा को गहराई से महसूस किया है। उनके अनुसार, संयुक्त राष्ट्र में सुधार आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत और चुनौती बन गया है।

यूएनएससी सदस्यों पर गंभीर आरोप

अपने संबोधन के दौरान जयशंकर ने यूएनएससी के कुछ सदस्यों पर आतंकी समूहों को बचाने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया में जितनी कमजोरी है, वह उसकी विश्वसनीयता को सीधे प्रभावित करती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “जब सुरक्षा परिषद का एक मौजूदा सदस्य पहलगाम जैसे बर्बर आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेने वाले संगठनों का खुलेआम बचाव करता है, तो यह बहुपक्षीय संस्थाओं की साख पर सवाल उठाता है।” जयशंकर ने यह भी जोड़ा कि यदि आतंकवाद के पीड़ितों और हमलावरों को एक समान दर्जा दिया जाता है, तो यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वार्थपूर्ण रवैये को उजागर करता है।

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