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Vice President Election 2025: भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकतंत्र का अनोखा उत्सव और संवैधानिक जिम्मेदारी की रोमांचक कहानी
Vice President Election 2025: सूत्रों के मुताबिक, उपराष्ट्रपति के चुनाव अगस्त 2025 के अंत तक हो सकता है, ताकि सितंबर की शुरुआत में नया उपराष्ट्रपति शपथ ले सके।
Vice President of India Election (Image Credit-Social Media)
Vice President of India Election: भारत का उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है। यह न सिर्फ संसद की कार्यवाही में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उनकी जिम्मेदारियां भी संभालता है। हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद इस पद के लिए नए सिरे से चुनाव की चर्चा जोरों पर है। यह प्रक्रिया न केवल संवैधानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचाए हुए है।
जुलाई 2025 में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे देश में उपराष्ट्रपति का पद खाली हो गया। यह एक असामान्य घटना है, क्योंकि आमतौर पर उपराष्ट्रपति अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करते हैं। उनके इस्तीफे ने न केवल राजनीतिक दलों को चौंकाया, बल्कि नए उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा को भी हवा दी।
चुनाव आयोग ने इस रिक्ति को भरने के लिए तेजी से कदम उठाए हैं। 23 जुलाई 2025 को आयोग ने घोषणा की कि वह जल्द ही चुनाव की तारीखों का ऐलान करेगा। सूत्रों के मुताबिक, यह चुनाव अगस्त 2025 के अंत तक हो सकता है, ताकि सितंबर की शुरुआत में नया उपराष्ट्रपति शपथ ले सके।
संभावित उम्मीदवार: कौन हैं दौड़ में?
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद कई बड़े नाम सामने आए हैं। इनमें कुछ चर्चित चेहरों का जिक्र इस प्रकार है:
हरिवंश नारायण सिंह: वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति और जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद। उनकी गिनती सरकार के भरोसेमंद सहयोगियों में होती है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनकी अनुभवी छवि उन्हें इस पद के लिए मजबूत दावेदार बनाती है।
राम नाथ ठाकुर: केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे। वह अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं, जिसे बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण माना जाता है। उनकी उम्मीदवारी को बिहार विधानसभा चुनावों से पहले एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
नितीश कुमार: बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता। हालांकि कुछ विपक्षी नेताओं ने दावा किया कि धनखड़ का इस्तीफा नितीश को उपराष्ट्रपति बनाने की साजिश है, लेकिन एनडीए ने इन अटकलों को खारिज कर दिया।
जे.पी. नड्डा: भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष। अगर उनकी उम्मीदवारी पक्की होती है, तो कैबिनेट में फेरबदल की संभावना है।
शशि थरूर: कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद। उनका नाम विपक्ष के संभावित उम्मीदवार के रूप में उछला है, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई।
विपक्षी गठबंधन (इंडिया ब्लॉक) भी इस चुनाव में एक साझा उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। उनका मानना है कि एनडीए के बहुमत के बावजूद संसद में उनके पास पर्याप्त संख्या है, जिससे वे कड़ा मुकाबला कर सकते हैं।
इस्तीफे के पीछे की कहानी
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर कई तरह की अटकलें हैं। कुछ का कहना है कि उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से यह फैसला लिया, जैसा कि उनकी ओर से आधिकारिक बयान में कहा गया। हालांकि, विपक्षी नेताओं ने इसे राजनीतिक दबाव का नतीजा बताया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे "राजनीतिक" करार दिया, जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने धनखड़ की सेहत पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह एक स्वस्थ व्यक्ति हैं।
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ के इस्तीफे का कारण राज्यसभा सभापति के रूप में उनका एक विवादास्पद फैसला हो सकता है। उन्होंने विपक्ष के एक प्रस्ताव को स्वीकार किया था, जिसमें एक हाईकोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग की मांग थी। इस फैसले से सत्तापक्ष नाराज हो गया, जिसके बाद उच्च स्तरीय बैठकों में उनके खिलाफ कदम उठाने की बात हुई।
उपराष्ट्रपति का चुनाव: प्रक्रिया को समझें
उपराष्ट्रपति का चुनाव एक जटिल लेकिन सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, जो संविधान के अनुच्छेद 63 से 71 के तहत परिभाषित है। यह राष्ट्रपति के चुनाव से अलग है, क्योंकि इसमें केवल संसद के सदस्य ही हिस्सा लेते हैं। आइए, इसे चरण-दर-चरण समझते हैं:
1. निर्वाचक मंडल
उपराष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए एक विशेष निर्वाचक मंडल बनाया जाता है, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के सभी निर्वाचित और मनोनीत सांसद शामिल होते हैं। वर्तमान में यह संख्या करीब 788 है। राष्ट्रपति के चुनाव में जहां राज्य विधानसभाओं के सदस्य भी वोट डालते हैं, वहीं उपराष्ट्रपति के चुनाव में उनकी कोई भूमिका नहीं होती।
2. योग्यता
उम्मीदवार को निम्नलिखित शर्तें पूरी करनी होती हैं:
भारत का नागरिक हो।
कम से कम 35 साल की उम्र हो।
राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
केंद्र या राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद न रखता हो। हालांकि, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री जैसे पदों को लाभ का पद नहीं माना जाता।
3. नामांकन
नामांकन के लिए उम्मीदवार को कम से कम 20 सांसदों का प्रस्तावक और 20 सांसदों का समर्थक होना चाहिए। नामांकन पत्र निर्वाचन अधिकारी (आमतौर पर लोकसभा या राज्यसभा के महासचिव) के पास जमा किए जाते हैं। 2025 के चुनाव के लिए राज्यसभा के महासचिव पी.सी. मोदी को निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया गया है। नामांकन की समय सीमा अधिसूचना जारी होने के 14 दिन बाद तक होती है।
4. मतदान प्रक्रिया
चुनाव गुप्त मतदान के जरिए होता है, जिसमें एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote) का उपयोग किया जाता है। इस प्रणाली में:
सांसद मतपत्र पर अपनी पहली, दूसरी और तीसरी वरीयता के आधार पर उम्मीदवारों को चुनते हैं।
जीत के लिए जरूरी कोटा तय किया जाता है। यह कुल वोटों को दो से भाग देकर उसमें एक जोड़ने से मिलता है। उदाहरण के लिए, अगर 788 सांसद वोट डालते हैं, तो कोटा 788 ÷ 2 + 1 = 395 होगा।
अगर पहली गिनती में कोई उम्मीदवार कोटा हासिल नहीं करता, तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है और उनके वोट दूसरी वरीयता के आधार पर बाकी उम्मीदवारों में बांटे जाते हैं। यह तब तक चलता है, जब तक कोई कोटा पार नहीं कर लेता।
मतपत्र पर वरीयता को अंकों (1, 2, 3) में लिखना होता है। अगर कोई सांसद शब्दों (प्रथम, द्वितीय) में लिखता है, तो उसका वोट अमान्य हो सकता है।
5. परिणाम और शपथ
मतगणना के बाद निर्वाचन अधिकारी परिणाम घोषित करता है। इसके बाद केंद्र सरकार राजपत्र में विजेता का नाम प्रकाशित करती है। नया उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के सामने शपथ लेता है, जिसमें वह संविधान के प्रति निष्ठा और अपने कर्तव्यों का पालन करने की प्रतिज्ञा करता है।
ऐतिहासिक अपवाद: जब कुछ अनोखा हुआ
उपराष्ट्रपति के चुनाव में कुछ मौके ऐसे रहे हैं, जब असामान्य घटनाएं हुईं। ये घटनाएं इस प्रक्रिया को और रोचक बनाती हैं:
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का दोहरा कार्यकाल (1952-1962): भारत के पहले उपराष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए। उनका 10 साल का कार्यकाल अब तक का सबसे लंबा है। उनकी विद्वता और लोकप्रियता ने इस पद को एक नया आयाम दिया। बाद में वे राष्ट्रपति भी बने।
वी.वी. गिरि का इस्तीफा (1969): वी.वी. गिरि ने उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा और जीता। यह पहली बार था, जब किसी उपराष्ट्रपति ने बीच कार्यकाल में इस्तीफा दिया। इसके बाद नए उपराष्ट्रपति का चुनाव हुआ, जो पूरे पांच साल के लिए चुने गए।
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा (2025): धनखड़ का हालिया इस्तीफा तीसरा ऐसा मौका है, जब किसी उपराष्ट्रपति ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले पद छोड़ा। इससे पहले वी.वी. गिरि और आर. वेंकटरमण ने ऐसा किया था।
कोई महिला उपराष्ट्रपति नहीं: भारत में अब तक कोई महिला इस पद पर नहीं पहुंची। 2022 में मार्गरेट अल्वा ने चुनाव लड़ा, लेकिन वह जगदीप धनखड़ से हार गईं। यह एक ऐसा रिकॉर्ड है, जो भविष्य में टूटने की प्रतीक्षा में है।
उपराष्ट्रपति की भूमिका: सिर्फ नाम का पद नहीं
उपराष्ट्रपति का पद केवल औपचारिक नहीं है। यह कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का संगम है:
राज्यसभा का सभापति: उपराष्ट्रपति राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करता है। वह सदन में अनुशासन बनाए रखता है, विधेयकों पर चर्चा को नियंत्रित करता है और बराबरी की स्थिति में निर्णायक वोट डाल सकता है।
राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन: अगर राष्ट्रपति बीमारी, अनुपस्थिति या इस्तीफे के कारण अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकते, तो उपराष्ट्रपति उनकी जगह लेता है। राष्ट्रपति की मृत्यु या इस्तीफे की स्थिति में वह तब तक कार्यवाहक राष्ट्रपति रहता है, जब तक नया राष्ट्रपति नहीं चुना जाता।
संवैधानिक संतुलन: उपराष्ट्रपति का पद सरकार और संसद के बीच एक सेतु का काम करता है। यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्थिरता लाता है।
2025 के चुनाव का महत्व
यह चुनाव कई मायनों में खास है। सबसे पहले, यह एक असामान्य रिक्ति के कारण हो रहा है, जो इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से और रोचक बनाता है। दूसरा, बिहार और अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह चुनाव एनडीए और विपक्ष दोनों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। तीसरा, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या विपक्ष इस बार एक मजबूत उम्मीदवार उतार पाता है या एनडीए फिर से बाजी मार लेता है।
चुनाव आयोग ने निर्वाचक मंडल की सूची तैयार कर ली है, जिसमें सभी सांसदों के नाम और पते शामिल हैं। यह सूची जल्द ही सार्वजनिक होगी। इसके अलावा, आयोग ने एक विस्तृत पुस्तिका भी जारी की है, जिसमें पिछले उपराष्ट्रपति चुनावों का ब्योरा और प्रक्रिया की जानकारी दी गई है।
कुछ अनसुने किस्से
जगदीप धनखड़ की जीत (2022): धनखड़ ने 528 वोटों के साथ जीत हासिल की, जो पिछले 30 सालों में सबसे ज्यादा वोटों की जीत थी। विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को केवल 182 वोट मिले।
क्रिशन कांत की मृत्यु (2002): क्रिशन कांत एकमात्र उपराष्ट्रपति थे, जिनका कार्यकाल के दौरान निधन हुआ। इसके बाद नए चुनाव हुए, जिनमें भैरों सिंह शेखावत चुने गए।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का प्रभाव: राधाकृष्णन ने न केवल उपराष्ट्रपति के रूप में, बल्कि एक दार्शनिक और शिक्षाविद के रूप में भी देश को प्रेरित किया। उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
क्या बनाता है इस प्रक्रिया को खास?
उपराष्ट्रपति का चुनाव भारत के लोकतंत्र की एक अनोखी मिसाल है। यह प्रक्रिया न केवल संवैधानिक है, बल्कि इसमें राजनीतिक रणनीति, गठबंधन की गतिशीलता और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं भी शामिल होती हैं। सांसदों को पार्टी व्हिप से आजादी मिलती है, जिससे वे अपने विवेक के आधार पर वोट डाल सकते हैं। यह स्वतंत्रता इस चुनाव को और भी पारदर्शी और लोकतांत्रिक बनाती है।
इसके अलावा, यह प्रक्रिया देश की एकता और विविधता को भी दर्शाती है। उपराष्ट्रपति के लिए चुने गए लोग विभिन्न पृष्ठभूमियों से आते हैं- शिक्षाविद, वकील, राजनेता, प्रशासक। हर बार यह चुनाव देश को एक नया नेतृत्व देता है, जो संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करता है।
जैसे-जैसे 2025 का उपराष्ट्रपति चुनाव नजदीक आ रहा है, देश की नजर इस बात पर होगी कि कौन इस महत्वपूर्ण पद को संभालेगा। क्या यह एक अनुभवी राजनेता होगा, या कोई नया चेहरा सामने आएगा? क्या विपक्ष इस बार बाजी पलट पाएगा, या एनडीए की मजबूत स्थिति फिर से जीत सुनिश्चित करेगी? इन सवालों के जवाब आने वाले हफ्तों में मिलेंगे।
फिलहाल, यह चुनाव न केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया है, बल्कि भारत के लोकतंत्र की जीवंतता का प्रतीक भी है। यह हमें याद दिलाता है कि हर पद, चाहे वह कितना भी बड़ा हो, लोकतांत्रिक तरीके से ही भरा जाता है और यही भारत की ताकत है।
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