Chhath Pooja 2025: छठ पूजा कैसे और क्यों मनाई जाती है? जानिए इसका इतिहास और पारंपरिक विधि

Chhath Pooja History: वैदिक पंचांग के अनुसार 2025 में छठ पूजा का पावन पर्व 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाया जाएगा ।

Shivani Jawanjal
Published on: 24 Oct 2025 12:49 PM IST (Updated on: 24 Oct 2025 12:51 PM IST)
Chhath Pooja 2025: छठ पूजा कैसे और क्यों मनाई जाती है? जानिए इसका इतिहास और पारंपरिक विधि
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Chhath Pooja Ka Mahatv: भारत कई तरह की परंपराओं और त्योहारों मनाए जाते है। हर त्योहार का अपना अलग महत्व और कहानी होती है। इन्हीं में से एक खास और पवित्र त्योहार है छठ पूजा। यह त्योहार सूर्य भगवान की उपासना और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है। इसे खासकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में बहुत श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है। आज के समय में इसके अनुयायी न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी इसे धूमधाम से मनाते हैं। छठ पूजा सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं रखती बल्कि यह अनुशासन, स्वच्छता और प्रकृति से जुड़ाव का भी प्रतीक है।

आइये जानते है छठ पूजा के बारे में विस्तार से।

छठ पूजा कब मनाया जाता है?

छठ पूजा हर साल कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है और यह कुल चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। इस पर्व के दौरान सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है। यह व्रत चार दिनों तक चलता है और इसमें कठोर नियमों और पारंपरिक विधियों का पालन किया जाता है। श्रद्धालु सुबह और शाम को सूर्य को अर्घ्य देते हैं और इस व्रत को करने से परिवार में सुख-शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की जाती है।

छठ पूजा का ऐतिहासिक महत्व

छठ पूजा की परंपरा बहुत प्राचीन है और इसका संबंध वैदिक काल से माना जाता है। ऋग्वेद में सूर्य देव की उपासना का उल्लेख मिलता है, जहां सूर्य को जीवन देने वाला और रोग दूर करने वाला बताया गया है। महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख है। कहा जाता है कि द्रौपदी ने पांडवों के वनवास के समय छठ व्रत किया था, जिससे उन्हें कठिनाइयों से मुक्ति मिली और उनका राज्य वापस मिला। कर्ण भी सूर्य देव के परम भक्त थे और रोज सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे। रामायण में भी इसका महत्व बताया गया है। जब भगवान राम 14 साल का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे तो माता सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की पूजा की थी। छठ पूजा का उद्देश्य सूर्य देव को धन्यवाद देना, स्वास्थ्य, समृद्धि और परिवार की खुशहाली की कामना करना होता है। यही कारण है कि यह पर्व आज भी पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।

छठ पूजा की धार्मिक मान्यता

छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया की पूजा करना है। हिंदू धर्म में सूर्य देव को जीवन, ऊर्जा और अच्छे स्वास्थ्य का स्रोत माना जाता है। जबकि छठी मैया को संतान सुख और परिवार की रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजते हैं। इस व्रत को करने से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है, बच्चों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की रक्षा होती है, मन को शांति मिलती है और व्यक्ति को आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। छठ पूजा प्रकृति के पांच तत्वों - जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी के सम्मान का प्रतीक भी है। इसके सभी अनुष्ठान इन तत्वों के साथ तालमेल बैठाने के लिए किए जाते हैं। यही कारण है कि यह पर्व मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने का एक सुंदर तरीका माना जाता है।

छठ पूजा की विधि और क्रम

छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला व्रत है, जिसमें व्रती (व्रत करने वाला व्यक्ति) अत्यंत कठोर नियमों का पालन करता है।

नहाय-खाय (पहला दिन) - व्रती स्नान कर शुद्धता का पालन करता है और सात्विक भोजन करता है जिसमें चने की दाल, लौकी और चावल जैसे भोजन शामिल होते हैं। घर की सफाई और तैयारी भी इस दिन होती है।

खरना (दूसरा दिन) - सूर्यास्त के बाद गुड़-चावल की खीर और रोटी बनाकर भगवान को अर्पित किया जाता है, उसके बाद व्रती और परिवार प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस दिन से व्रती निर्जला उपवास (लगभग 36 घंटे) रखते हैं।

संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन) - व्रती डूबते सूर्य को नदी, तालाब या घाट पर अर्घ्य देता है। यह दिन पूजा का मुख्य दिन होता है और सूर्य को जल और दूध अर्पित किए जाते हैं।

उषा अर्घ्य (चौथा दिन) - सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जो नई ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक होता है। इसके बाद व्रती अपना व्रत पारण करते हैं।

छठ पूजा के विशेष प्रसाद

छठ पूजा का प्रसाद बहुत खास और पवित्र माना जाता है। इसमें मुख्य रूप से ठेकुआ (गुड़ और गेहूं के आटे से बना मीठा पकवान), चावल, गुड़, केला, नारियल और मौसमी फल शामिल होते हैं। इन सबको शुद्ध घी और पूरी स्वच्छता का ध्यान रखते हुए बनाया जाता है। ठेकुआ को छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण प्रसाद माना जाता है क्योंकि यह ऊर्जा और ताकत देता है। प्रसाद में गुड़ पाचन को बेहतर बनाता है, घी शरीर को पोषण देता है और केले व अन्य फल ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह प्रसाद सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार व भक्तगण इसे ग्रहण करते हैं।

लोककथाएं और लोकगीत

छठ पूजा के दौरान गाए जाने वाले लोकगीत इस पर्व का सबसे सुंदर और खास हिस्सा होते हैं। ये गीत सूर्य देव और छठी मैया की महिमा का वर्णन करते हैं और पूरे माहौल को भक्ति और श्रद्धा से भर देते हैं। महिलाएं समूह में घाट पर खड़ी होकर ये गीत गाती हैं, जिससे पूजा का वातावरण और भी पवित्र और आध्यात्मिक बन जाता है। इन गीतों में छठी मैया से जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना की जाती है। ये लोकगीत खासतौर पर भोजपुरी और मैथिली भाषा में गाए जाते हैं और प्रसाद बनाने, खरना करने, अर्घ्य देने और पूजा के बाद घर लौटने तक गूंजते रहते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से छठ पूजा

छठ पूजा सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं रखती बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इस पूजा के दौरान सुबह और शाम सूर्य की किरणों से शरीर को पर्याप्त विटामिन D मिलता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। उपवास और ध्यान करने से शरीर के विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं, जिससे शरीर शुद्ध होता है और मन को शांति मिलती है। नदी या तालाब के पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर पर हल्का एक्यूप्रेशर होता है, जिससे रक्त संचार बेहतर होता है। सूर्य की पहली किरणों में मौजूद प्राकृतिक ऊर्जा बैक्टीरिया और फंगल संक्रमण को दूर करने में मदद करती है और मानसिक स्वास्थ्य को भी मजबूत बनाती है।

आज के समय में छठ पूजा

आज छठ पूजा सिर्फ बिहार, झारखंड या उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रही है, बल्कि यह दुनिया के कई देशों में मनाई जाने लगी है। प्रवासी भारतीय अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, दुबई, मॉरीशस और फिजी जैसे देशों में भी छठ पूजा बड़े उत्साह से करते हैं। स्थानीय प्रशासन की अनुमति लेकर ये आयोजन बड़े स्तर पर किए जाते हैं, ताकि सभी लोग अपनी परंपराओं को मिलकर निभा सकें। इस तरह छठ पूजा प्रवासी भारतीयों के लिए अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़े रहने का एक महत्वपूर्ण जरिया बन गई है।

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