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Krishna Janmashtami 2025: भारत के अलग-अलग राज्यों में जन्माष्टमी मनाने के अनोखे और खूबसूरत तरीके
Krishna Janmashtami 2025: इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी शनिवार 16 अगस्त 2025 को है तथा इस वर्ष संपूर्ण भारत में 5252वां जन्मोत्सव मनाएगा ।
Krishna Janmashtami 2025 Celebrations Across India States Festivals
Krishna Janmashtami 2025: विविधताओं से भरा देश भारत जहां हर त्यौहार अपनी एक अलग छाप छोड़ता है । ऐसा ही एक पर्व है कृष्ण जन्माष्मी जिसे पूरे भारत में बड़े हर्षोल्लास और आस्था के साथ मनाया जाता है । विशेषकर संपूर्ण उत्तर भारत में यह त्यौहार सबका ध्यान अपनी और आकर्षित करता है । हालाँकि इस त्यौहार की खास बात यह है की, यह देश के हर राज्य में अलग - अलग तरीकों से बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। कहीं माखन-मिश्री का भोग चढ़ाया जाता है, तो कहीं दही-हांडी फोड़ने की परंपरा होती है। ऐसे में आइये आपको बताते है भारत के विभिन्न राज्यों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का यह पर्व कैसे मनाया जाता ।
मथुरा और वृंदावन (उत्तर प्रदेश)
मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की जन्भूमि है तो वही वृंदावन कर्मभूमि ।इसीलिए मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी का उत्सव अत्यंत विशाल और पारंपरिक रूप से मनाया जाता है। इसमें दही हांडी प्रतियोगिता प्रमुख होती है जिसमे युवा मानव पिरामिड बनाकर मक्खन-भरी हांडी फोड़ते हैं जो कृष्ण की माखन चोरी की बाल लीलाओं का प्रतीक है। इसके अलावा बांके बिहारी के मंदिर को फूलों और रोशनी से सजाकर रातभर भजन-कीर्तन किया जाता है तथा भक्तों के लिए आधी रात के विशेष दर्शन की व्यवस्था की जाती हैं। इसके अलावा झूलनोत्सव में कृष्ण के बाल रूप को फूलों से सजे हुए झूलों पर झुलाया जाता है, जबकि रास लीला में नृत्य-नाटक के माध्यम से उनके प्रेम और आनंद से भरे प्रसंगों को सजीव रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में जन्माष्टमी का मुख्य आकर्षण का केंद्र होता दही हांडी उत्सव है। जिसमें संपूर्ण महाराष्ट्र में खास तौर पर मुंबई और पुणे, नागपुर जैसे शहरों में दही हांड़ी फोड़ने की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है । जिसमें गोविंदा(लड़के या लड़कियों का समूह ) बहुस्तरीय मानव पिरामिड बनाकर ऊंची हांडी फोड़ते हैं। और जो यह दहीहांडी फोड़ते है उनको लाखो की धनराशि इनाम के तौर पर प्रसिद्द व्यक्तियों (अभिनेता या अभिनेत्री ) द्वारा दी जाती है । इस दौरान रंगारंग कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है । इसके अलावा महाराष्ट्र में अवसर पर भगवान कृष्ण की झांकियों वाले भव्य जुलूस निकाले जाते । जहां लोक गीत, नृत्य व संगीत जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। मुंबई के दादर, लालबाग और वडाला जैसे क्षेत्रों में यह उत्सव खास उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।
गुजरात
गुजरात में जन्माष्टमी बड़े जोश और सांस्कृतिक रंगों के साथ मनाई जाती है। जन्माष्टमी के अवसर पर द्वारकाधीश मंदिर को फूलों और रोशनी से बहुत भव्य तरीके से सजाया जाता है। पूरी द्वारका नगरी में उत्सव का माहौल रहता है। मंदिर में विशेष पूजा, आरती और महाभोग का आयोजन होता है। इसके अलावा रास लीला नृत्य-नाटक के माध्यम से कृष्ण और गोपियों की प्रेम कथा प्रस्तुत की जाती है, जबकि गरबा और भांगड़ा नृत्य उत्सव की रौनक बढ़ाते हैं। लोग घरों के बाहर रंगोली और फूलों से सजावट करते हैं और चूरमा, पंजीरी, मोहनथाल जैसी पारंपरिक मिठाइयाँ भगवान को अर्पित करते हैं। इसके अलावा माखन और मिश्री भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय भोजन माने जाते हैं और उन्हें विशेष रूप से भोग के रूप में अर्पित किया जाता है। द्वारका जैसे धार्मिक स्थलों पर यह पर्व एक माह तक चलता है।
राजस्थान
राजस्थान में भी जन्माष्टमी का आयोजन मंदिरों और घरों में बड़े उत्साह से होता है। राजस्थान के नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में जन्माष्टमी भव्य सजावट, विशेष पूजा और झांकियों के साथ मनाई जाती है। मध्य रात्रि में श्रीनाथजी के जन्मोत्सव पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है, जबकि मंदिर में भजन-कीर्तन और भक्ति गीत गूंजते रहते हैं। पारंपरिक पोशाक में लोग शोभायात्रा में शामिल होते हैं और महिलाएं लोकगीतों व कृष्ण भजनों पर नृत्य कर माहौल को भक्तिमय बना देती हैं।
दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य हिस्से
दिल्ली, बिहार, हिमाचल और उत्तराखंड में जन्माष्टमी पर रासलीला का सादरीकरण प्रमुख आकर्षण होता है। जिसमें कृष्ण, राधा और अन्य पात्रों की लीलाएं नाट्य रूप में प्रस्तुत की जाती हैं। मंदिरों में मध्यरात्रि को विशेष आरती के साथ भव्य पूजा-अर्चना होती है, जिसमें हजारों भक्त शामिल होकर कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं।
दक्षिण भारत (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल)
दक्षिण भारत में कृष्ण जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में जन्माष्टमी, जिसे गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है कृष्ण के बाल्यकाल की स्मृति में बड़े उत्साह से मनाई जाती है। इस पर्व पर दक्षिण भारत में पूजा कक्ष की ओर चावल या आटे से छोटे-छोटे पैरों के निशान बनाये जाते है जो यहाँ की एक प्रचलित परंपरा है। तमिलनाडु में घरों के आंगन में चावल के आटे से सुंदर कोलम सजाए जाते हैं । जिसके बाद छोटे बच्चों को कृष्ण के रूप में सजा कर मंदिर ले जाया जाता है और केले के पत्तों पर माखन, पायसम व फल का भोग लगाया जाता है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 'उरी अड्डा' नामक खेल में बच्चे दही और मिठाई से भरे मटके को फोड़ने का प्रयास करते हैं। साथ ही महिलाएँ और लड़कियाँ 'कोलाटम' नृत्य प्रस्तुत करती हैं। केरल में 'पालपायसम' का भोग चढ़ाया जाता है तथा मंदिरों में कृष्ण लीलाओं की झांकियाँ और शोभायात्राएँ होती हैं। और कन्नड़ व मलयालम भजनों से वातावरण भक्तिमय बन जाता है। कर्णाटक के उडुपी और तमिलनाडु में जन्माष्टमी बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है।
ओडिशा
ओडिशा राज्य के पुरी के जगन्नाथ मंदिर में जन्माष्टमी विशेष श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाई जाती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ को 56 प्रकार के व्यंजनों का 'छप्पन भोग' चढ़ाया जाता है। मंदिर में गीता पाठ, धार्मिक प्रवचन, भजन-कीर्तन, आरती और झूलनोत्सव जैसे कार्यक्रम आयोजित होते हैं। भव्य सजावट के बीच श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या जुटती है और कृष्ण लीलाओं का प्रस्तुतीकरण माहौल को अधिक भक्तिमय बना देता है।
पूर्वोत्तर भारत
भारत के पूर्वोत्तर जैसे मणिपुर में जन्माष्टमी पर पारंपरिक मणिपुरी रास नृत्य का आयोजन होता है। जो कृष्ण और राधा की प्रेम लीला पर आधारित शास्त्रीय नृत्य शैली है, जिसमें भाव-भंगिमा और सुंदर मुद्राओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है। मंदिर प्रांगण में प्रस्तुत इस नृत्य के साथ भजन मंडलियाँ रातभर कीर्तन करती हैं, जिससे पूरा वातावरण आस्था और श्रद्धा से परिपूर्ण हो जाता है।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में जन्माष्टमी को ‘नंदा उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है जो नंद बाबा को समर्पित होता है। इस अवसर पर भक्त आधी रात को भगवान कृष्ण का झूला सजाकर उनका स्वागत करते हैं। भजन, नृत्य और कृष्ण की बाल लीलाओं पर आधारित प्रस्तुतियाँ माहौल को भक्तिमय बनाती हैं। भक्त उपवास रखते हैं और रात में व्रत का पारण करते हुए बंगाली मिठाइयों व प्रसाद का वितरण करते हैं।
कब मनाई जाएगी जन्माष्टमी?
जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म का पावन उत्सव है, जो प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में अष्टमी तिथि 15 अगस्त की दोपहर 11:49 बजे शुरू होगी और 16 अगस्त को रात 9:34 बजे समाप्त होगी । जिसकारण इस वर्ष जन्माष्टमी कुछ स्थानों पर 15 अगस्त को और कुछ जगह 16 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी ।
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