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Nag Panchami 2025: शिवनागों की स्तुति से मिलेगा संकटों से छुटकारा, जानें मान्यताएं, महत्व और पूजन विधि
Nag Panchami 2025: श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला नाग पंचमी पर्व हिंदू धर्म में प्रकृति, करुणा और आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रति आभार जताने का अद्भुत अवसर है।
Nag Panchami 2025 Importance and Benefits
Nag Panchami 2025: श्रावण मास में श्रद्धा और सुरक्षा का प्रतीक बनकर आता है नाग पंचमी का पावन पर्व। श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला नाग पंचमी पर्व हिंदू धर्म में प्रकृति, करुणा और आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रति आभार जताने का अद्भुत अवसर है। यह पर्व भारत और नेपाल के साथ-साथ कई दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में श्रद्धा, विश्वास और लोककथाओं से भरपूर वातावरण में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में नाग पंचमी 29 जुलाई को मंगलवार के दिन पड़ रही है और पंचमी तिथि 28 जुलाई की रात 11:24 बजे से शुरू होकर 30 जुलाई की सुबह 12:46 बजे तक रहेगी। इस दौरान पूजा का शुभ मुहूर्त 29 जुलाई को सुबह 5:41 से 8:23 बजे तक रहेगा, जिसे अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है।
महाभारत की कथा से जुड़ा है नाग पंचमी का मूल, जहां करुणा ने प्रतिशोध को हराया-
नाग पंचमी का पर्व केवल सांपों की पूजा नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रसंग की स्मृति है, जिसमें प्रतिशोध की अग्नि को ऋषि आस्तिक की करुणा ने शांत किया था। महाभारत काल में राजा जनमेजय द्वारा अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की कथा संक्षेप में-
महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के वंशज राजा परीक्षित हस्तिनापुर के सिंहासन पर विराजमान हुए। एक बार वे वन में शिकार के दौरान प्यासे हो गए और एक ऋषि शमिक के आश्रम में पहुंचे। ऋषि ध्यान में लीन थे, इसलिए राजा को उत्तर नहीं मिला। अपमानित महसूस कर परीक्षित ने एक मृत सर्प को लकड़ी से उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह बात जब ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली, तो उसने क्रोध में आकर परीक्षित को सप्तम दिवस में तक्षक नामक नाग द्वारा मृत्यु का श्राप दे दिया।
श्राप के अनुसार तक्षक नाग ने सातवें दिन विष देकर राजा परीक्षित की हत्या कर दी। जब परीक्षित के पुत्र जनमेजय राजा बने, तो उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने का निश्चय किया। उन्होंने एक भव्य यज्ञ करवाया, जिसे सर्पसत्र (सर्पयज्ञ) कहा गया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी नागों को बलपूर्वक आहुति में बुलवाना शुरू किया। असंख्य नाग यज्ञाग्नि में गिरकर मरने लगे।
जब तक्षक नाग की बारी आई, तो वह इंद्र की शरण में चला गया। लेकिन ब्राह्मणों के मंत्रबल से इंद्र सहित तक्षक भी यज्ञ की ओर खिंचने लगे। तभी एक युवा ब्राह्मण आस्तिक ऋषि ने हस्तक्षेप किया। वह मां नागकन्या मनसा और ब्राह्मण ऋषि जरत्कारु के पुत्र थे। उन्होंने राजा जनमेजय से विनती की और नागों के कुल विनाश को रोकने के लिए यज्ञ रुकवाया। राजा ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और यज्ञ को वहीं रोक दिया।
इस प्रकार राजा जनमेजय ने अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लिया, लेकिन धर्म और करुणा के मार्ग पर चलते हुए संहार को सीमित किया। यही प्रसंग हमें क्रोध, प्रतिशोध और क्षमा के संतुलन की गूढ़ शिक्षा देता है। इसी करुणा की विजय के उपलक्ष्य में यह दिन नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है, जो जीवन में शांति और सह-अस्तित्व की प्रेरणा देता है।
नाग देवता केवल सांप नहीं बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा और देवशक्ति के प्रतीक हैं
नाग पंचमी पर पूजा किए जाने वाले नाग केवल एक जीव नहीं, बल्कि शक्ति, संतुलन और संरक्षण के प्रतिनिधि माने जाते हैं। भगवान शिव के गले का वासुकि नाग हो या भगवान विष्णु की शैय्या बना शेषनाग दोनों ही दर्शाते हैं कि ब्रह्मांड की ऊर्जा सर्प के माध्यम से संतुलित होती है। हिंदू धर्म में नागों का संबंध भगवान सुब्रमण्यम, देवी मनसा और अन्य देवी-देवताओं से भी जोड़ा गया है। जो उन्हें केवल भय का नहीं बल्कि रक्षा, उर्वरता और ज्ञान का प्रतीक बनाता है।
नाग पंचमी का ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व जीवन में लाता है शांति और संतुलन
इस दिन व्रत और पूजा करना कालसर्प दोष, राहु-केतु के दोष, पितृदोष और अचानक आने वाले संकटों से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है। गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण में भी नाग पूजन की महिमा का विशेष वर्णन मिलता है, जहां सर्पों को धरती की रक्षा करने वाले तत्व के रूप में सम्मानित किया गया है। व्रत रखने वाले श्रद्धालु इस दिन उपवास करते हैं और विशेष मंत्रों का जाप करके जीवन में संतुलन की कामना करते हैं।
परंपराओं में गहराई से जुड़ी है नाग पंचमी की पूजा विधि और रीति-रिवाज़
नाग पंचमी के दिन श्रद्धालु प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और पूजा स्थान पर गाय के गोबर या चावल के आटे से नाग देवता की आकृति बनाते हैं। इसके बाद सिंदूर, हल्दी, अक्षत और पुष्प से उनका पूजन करते हैं। कई जगह दीवारों पर सांप की आकृतियां बनाकर उनकी पूजा की जाती है। नाग देवता को दूध, शहद, लड्डू, खीर और अन्य प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। इस पूजा के दौरान 'ॐ नमः नागाय' या 'ॐ नमो वासुकेश्वराय'आदि मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। जो आध्यात्मिक ऊर्जा को जाग्रत करता है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रंग में मनाया जाता है यह पर्व, जानें क्षेत्रीय परंपराएं
नाग पंचमी को देश के विभिन्न भागों में अनूठे अंदाज़ में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में महिलाएं मंदिरों में जाकर मिट्टी के सांपों की पूजा करती हैं, वहीं उत्तर भारत में दीवारों पर नाग की चित्रकारी कर हल्दी-सिंदूर से उन्हें पूजते हैं। बंगाल और बिहार में देवी मनसा की पूजा के साथ सांपों को चावल और दूध चढ़ाया जाता है। कर्नाटक में कुक्के सुब्रमण्यम मंदिर और उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर जैसे स्थलों पर हजारों श्रद्धालु नाग देव की विशेष आराधना के लिए एकत्र होते हैं।
आज भी ग्रामीण संस्कृति में जीवंत हैं नाग पंचमी से जुड़ी लोक मान्यताएं
इस दिन से जुड़ी कई मान्यताएं वर्षों से चली आ रही हैं, जैसे नाग पंचमी के दिन भूमि खोदना वर्जित होता है क्योंकि इससे नाग देवता को हानि पहुंच सकती है। साथ ही, इस दिन सांपों को दूध चढ़ाने से वर्ष भर उनके प्रकोप से रक्षा होती है। माना जाता है कि नाग पंचमी पर मनोकामना लेकर व्रत रखने वाले भक्तों की इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में अचानक आने वाले संकट टल जाते हैं।
देश के प्रमुख नाग मंदिरों में उमड़ती है श्रद्धा की लहर
भारत में नाग पंचमी के अवसर पर कुछ मंदिरों में विशेष पूजा और उत्सव का आयोजन होता है। जैसे केरल का मन्नारशाला मंदिर, उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर, कर्नाटक का कुक्के सुब्रमण्यम, उत्तर प्रदेश का तक्षकेश्वर मंदिर और राजस्थान का नागशक्ति मंदिर इन सभी स्थलों पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है और विशेष रात्रि पूजन भी होता है। नाग पंचमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि यह हमें प्रकृति के साथ संतुलन में रहने, जीव-जंतुओं का आदर करने और करुणा की भावना को अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा देती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि सांप जैसे जीव, जो देखने में रहस्यमय और घातक हैं, वास्तव में हमारे पर्यावरण के संरक्षक भी हैं।
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