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Jagannath Rath Yatra 2025: ना पूरे हाथ, ना पूरी मूर्ति... क्यों भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां आज तक हैं अधूरी? जानें इसके पीछे की वजह

Jagannath Rath Yatra 2025: क्या आप जानते हैं कि पुरी मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्तियां अधूरी क्यों होती हैं।

Ragini Sinha
Published on: 27 Jun 2025 10:04 AM IST
Jagannath Rath Yatra 2025
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Jagannath Rath Yatra 2025 (social media)

Jagannath Rath Yatra 2025: पुरी में हर साल होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विश्वभर में प्रसिद्ध है। यह उत्सव इस साल 27 जून से शुरू होगा, जो 15 दिनों तक चलेगा। इस दौरान लाखों श्रद्धालु ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा के दर्शन के लिए उमड़ते हैं।

इन सबके बीच क्या आप जानते हैं कि पुरी मंदिर में स्थापित इन मूर्तियों की एक खास बात यह है कि ये अधूरी होती हैं और इन्हें धातु या पत्थर से नहीं, बल्कि नीम की लकड़ी से बनाया जाता है। अगर नहीं... तो चलिए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी।


भगवान जगन्नाथ की अनोखी मूर्तियां

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में बड़ा चौंकाने वाला पहलू है। उनकी आंखें बड़ी होती हैं, सिर चौकोर आकार का होता है और उनके हाथ-पैर अधूरे होते हैं। इसके पीछे एक पौराणिक और इमोशनल कथा जुड़ी हुई है।

राजा इंद्रद्युम्न और दिव्य सपना

एक समय की बात है, राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान विष्णु का मंदिर बनवाने का निश्चय किया, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि भगवान की मूर्ति किस रूप में बनाई जाए। उन्होंने कठोर तप किया। के भगवान ने उन्हें सपने में आकर बताया कि पुरी के समुद्र किनारे एक दिव्य लकड़ी का टुकड़ा मिलेगा, जिससे उनकी मूर्ति बनाई जा सकती है।


राजा को वह लकड़ी मिल भी गई, लेकिन कोई भी मूर्तिकार उस लकड़ी को काट नहीं सका। तभी विष्वकर्मा जी आए और मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया, मगर एक शर्त पर जब तक मूर्ति पूरी न हो, कोई अंदर नहीं आएगा, लेकिन दो हफ्ते बाद, जब अंदर से आवाज आनी बंद हो गई, तो रानी गुँडिचा के कहने पर राजा ने दरवाजा खोल दिया।


अंदर मूर्तियां अधूरी थीं और विष्वकर्मा अंतर्धान हो चुके थे। तभी एक दिव्य वाणी आई। ‘भगवान इसी रूप में प्रकट होना चाहते हैं।’ तभी से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की अधूरी मूर्तियों की पूजा होती है, और यही उनका वास्तविक दिव्य स्वरूप माना जाता है।

रथ यात्रा और गुंडिचा मंदिर

असाढ़ मास में तीनों भगवान विशाल रथों में बैठकर पुरी की सड़क से होते हुए गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं। लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं और भगवान की एक झलक पाने को उमड़ पड़ते हैं।


पुरी नगरी इस पर्व के समय रंग-बिरंगे फूलों, झंडियों से सज जाती है। भगवान के अधूरे रूप में छिपा उनका संपूर्ण प्रेम, भक्तों के लिए पूर्णता का प्रतीक बन गया है। यही विश्वास आज भी लाखों लोगों को पुरी की ओर खींचता है।

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