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Nagpanchami 2025: किनकी होती है नागपंचमी के दिन पूजा? जानिए इनके नाम और महत्व
Nagpanchami 2025: इस लेख में हम हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली और पौराणिक नागों की गाथा, उनके महत्व और उनके आध्यात्मिक रहस्यों को विस्तार से जानेंगे ।
Nago Ka Rahasya Kya Hai Nagpanchami Mein Kiski Puja Hoti Hai
Nagpanchami 2025: हिंदू धर्म में नाग (सर्प) केवल एक सरीसृप जीव नहीं बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा, रहस्य, और दिव्यता के जीवंत प्रतीक हैं। वेदों, पुराणों, उपनिषदों, महाभारत और रामायण जैसे प्राचीन ग्रंथों में नागों का उल्लेख गहराई से मिलता है - कभी देवताओं के रक्षक के रूप में, कभी विनाश के वाहक और कभी गहन ज्ञान व पुनर्जन्म के प्रतीक के रूप में। नागों की पूजा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है विशेषकर नाग पंचमी और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर। शिव के गले में लिपटा वासुकी हो या विष्णु की शैय्या बने शेषनाग, ये सर्प शक्तिशाली प्रतीकों के रूप में देवत्व से जुड़े हुए हैं।
शेषनाग
हिंदू धर्म में शेषनाग जिन्हें 'अनंत' या 'आदिशेष' भी कहा जाता है, सभी नागों में सर्वश्रेष्ठ और सबसे शक्तिशाली माने जाते हैं। हजार सिरों वाले इस दिव्य नाग को भगवान विष्णु का परम भक्त और उनका शाश्वत आसन माना गया है । विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में इन्हीं की शैय्या पर विश्राम करते हैं। शेषनाग का नाम 'शेष' इसलिए पड़ा क्योंकि ब्रह्मांड के अंत के बाद भी वे शेष (अवशेष) रूप में विद्यमान रहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वे संपूर्ण पृथ्वी को अपने विशाल फनों पर धारण किए हुए हैं और जब वे अपनी स्थिति बदलते हैं, तो भूकंप की घटनाएँ घटित होती हैं। प्रलयकाल में इन्हीं के मुखों से अग्नि निकलती है जो संहार का कार्य करती है। रामायण में लक्ष्मण और महाभारत में बलराम को शेषनाग का अवतार माना गया है। शेषनाग न केवल शक्ति और स्थायित्व के प्रतीक हैं बल्कि वे तप, ब्रह्मचर्य और ज्ञान के भी मूर्त रूप हैं। योगशास्त्र में उन्हें कुंडलिनी शक्ति का प्रतिनिधि माना जाता है, जो आत्मजागृति और आध्यात्मिक उन्नति का आधार है।
वासुकी
वासुकी जिन्हें नागों का राजा कहा जाता है, हिंदू धर्म की पौराणिक परंपराओं में एक अत्यंत शक्तिशाली और पूज्य नाग हैं। वे महर्षि कश्यप और कद्रू के पुत्र तथा शेषनाग के छोटे भाई माने जाते हैं। उनका शरीर अत्यंत विशाल और बलशाली बताया गया है और उनके सिर पर स्थित नागमणि उन्हें रहस्यमयी शक्तियों से युक्त बनाती है। वासुकी को भगवान शिव के गले में लिपटा हुआ दर्शाया जाता है जो उनकी शिवभक्ति और विशेष आध्यात्मिक स्थान को दर्शाता है। पौराणिक कथाओं में वासुकी की भूमिका समुद्र मंथन के समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण रही । उन्होंने स्वयं को मंदराचल पर्वत के चारों ओर लपेटकर रस्सी के रूप में प्रस्तुत किया था - जिससे देवताओं और असुरों ने समुद्र का मंथन किया। इस अद्भुत योगदान के कारण वासुकी को केवल एक नाग नहीं बल्कि ब्रह्मांडीय संतुलन के सहायक और शिव के प्रियभक्त के रूप में पूजा जाता है।
पद्म नाग
पद्म नाग जिनका नाम स्वयं में 'पद्म' यानी कमल जैसे शुद्ध और शांत प्रतीक से जुड़ा है हिंदू धर्म में नागलोक के आठ प्रधान नागों (अष्टनाग) में एक माने जाते हैं। इन्हें धन, समृद्धि और शांतिपूर्ण ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। यद्यपि शास्त्रों में इनके स्वभाव का विस्तृत उल्लेख नहीं मिलता फिर भी लोकमान्यताओं में पद्म नाग को शांत, सहनशील और जीवन में संतुलन बनाए रखने वाला माना गया है। लोककथाओं और परंपरागत पूजा विधानों में यह विश्वास है कि पद्म नाग की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आर्थिक स्थिरता, मानसिक शांति और समृद्धि आती है। इनका संबंध जल तत्त्व से भी जोड़ा जाता है। क्योंकि नागों का पारंपरिक रूप से जल, वर्षा और उर्वरता से घनिष्ठ संबंध माना गया है जो जीवन के पोषण और विकास का आधार है।
महापद्म नाग
महापद्म नाग, अष्टनागों में एक प्रमुख और अत्यंत शक्तिशाली नाग माने जाते हैं जिनका उल्लेख विष्णु पुराण सहित कई पुराणों में मिलता है। इन्हें 'शंखपद्म' नाम से भी जाना जाता है और लोकमान्यता के अनुसार इनके फन पर त्रिशूल का निशान होता है जो इनकी दैवीय शक्ति और संरक्षण की भावना को दर्शाता है। महापद्म नाग को केवल नागों का संरक्षक ही नहीं बल्कि विशाल और अजेय शक्ति के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। पद्म नाग की तुलना में इन्हें अधिक शक्तिशाली और विशिष्ट माना गया है। लोकविश्वास के अनुसार महापद्म नाग के पास गूढ़ ज्ञान और रहस्यों की समझ होती है और इन्हें अमरता तथा दुर्लभ मणियों के रक्षक के रूप में भी प्रतिष्ठा प्राप्त है। स्कंद पुराण में वर्णित महापद्म सरोवर को भी इनसे जोड़ा जाता है। हालांकि इसका सीधा उल्लेख सीमित है। फिर भी यह मान्यता बनी हुई है कि यह सरोवर महापद्म नाग की दिव्यता और प्रभाव का प्रतीक है।
तक्षक
तक्षक एक उग्र, भयावह और अत्यंत शक्तिशाली नाग माने जाते हैं, जिनका उल्लेख महाभारत में प्रमुखता से हुआ है। वे महर्षि कश्यप और कद्रू के पुत्र तथा नागों के राजा कहे गए हैं। तक्षक की सबसे प्रसिद्ध पौराणिक घटना राजा परीक्षित की मृत्यु से जुड़ी है। कथा के अनुसार राजा परीक्षित ने एक ऋषि का अपमान किया था, जिसके कारण ऋषिपुत्र ने उन्हें श्राप दिया कि तक्षक नाग के विष से उनकी मृत्यु होगी। श्राप सत्य हुआ और तक्षक ने अपने घातक विष से परीक्षित का वध कर दिया। इस त्रासदी से क्रोधित होकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने 'सर्पसत्र' नामक महायज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी नागों को आहुति देने की योजना बनाई गई थी। लेकिन आस्तिक ऋषि के हस्तक्षेप से यह यज्ञ रोका गया और नाग वंश का संहार टल गया। तक्षक की यह कथा न केवल उनके उग्र स्वभाव को दर्शाती है बल्कि न्याय, प्रतिशोध और करुणा जैसे गहरे भावों को भी उजागर करती है।
कुलीर नाग
कुलीर या कुलिक नाग, अष्टनागों में शामिल एक प्रमुख नाग माने जाते हैं जिनका उल्लेख शास्त्रों में सीमित रूप में मिलता है। लोकमान्यताओं के अनुसार कुलीर नाग को ब्राह्मण कुल से संबंध रखने वाला और ब्रह्मा से जुड़ा हुआ बताया गया है, जिससे इनकी दिव्यता और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत मिलता है। यद्यपि शास्त्रीय ग्रंथों में इन्हें नागलोक के सेनापति या रक्षक के रूप में स्पष्ट रूप से वर्णित नहीं किया गया है। फिर भी लोककथाओं में कुलीर नाग को एक वीर योद्धा, जल तत्त्व के स्वामी और संकट के समय नागों के प्रथम रक्षक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। इनकी विशेषताओं में युद्ध कौशल, जल की धाराओं पर नियंत्रण और नागलोक की सुरक्षा प्रमुख मानी जाती हैं। हालांकि यह विवरण प्रतीकात्मक और परंपराओं पर आधारित हैं फिर भी कुलीर नाग को शक्ति, समर्पण और रक्षण की भावना के साथ लोकमानस में विशेष स्थान प्राप्त है।
कर्कोटक
कर्कोटक एक मायावी, प्रभावशाली और विषधारी नाग माने जाते हैं जिनका उल्लेख महाभारत सहित अनेक पौराणिक कथाओं में मिलता है। वे न केवल शक्ति और रहस्य के प्रतीक हैं बल्कि भाग्य परिवर्तन में समर्थ एक दिव्य नाग के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं। महाभारत के वनपर्व में इनकी भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कथा के अनुसार जब राजा नल वन में भटक रहे होते हैं, तब उन्हें कर्कोटक एक झाड़ी में फंसे मिलते हैं। नल जब उन्हें बचाते हैं तो कर्कोटक उन्हें डस लेते हैं । लेकिन यह डंसना घातक नहीं बल्कि एक वरदान के समान था। इससे राजा नल का रंग काला हो गया और वे अपनी असली पहचान छुपाकर कली नामक दानव के प्रभाव से बच सके। इस रूपांतरण के माध्यम से नल ने नया जीवन शुरू किया और अंततः अपने खोए हुए राज्य को पुनः प्राप्त किया। कर्कोटक की यह कथा दर्शाती है कि कभी-कभी विष भी वरदान बन सकता है और यही उन्हें भाग्य परिवर्तन का अधिष्ठाता बनाता है।
शंखचूड़
शंखचूड़ का नाम हिंदू पौराणिक साहित्य में दो अलग-अलग रूपों में उल्लेखित होता है - एक शक्तिशाली असुर (दानव) और दूसरा एक नाग के रूप में। शिव पुराण और देवी भागवत में शंखचूड़ को एक पराक्रमी असुर के रूप में वर्णित किया गया है जो शिवभक्त होने के साथ-साथ ब्रह्मा से त्रिलोक विजयी होने का वरदान और कृष्ण कवच प्राप्त करता है। उसकी शक्ति और भक्ति का अंत तभी होता है जब भगवान शिव स्वयं उसका वध करते हैं। जिससे यह कथा शक्ति और भक्ति के बीच के गूढ़ द्वंद्व को दर्शाती है। वहीं कथासरित्सागर जैसे ग्रंथों में शंखचूड़ नामक नाग का उल्लेख मिलता है जिसे गरुड़ के भोजन के रूप में प्रस्तुत किया गया था। लेकिन जीमूतवाहन नामक वीर पुरुष ने अपने प्राणों की आहुति देकर उसकी रक्षा की। यह कथा त्याग, करुणा और जीवन की रक्षा के भाव को उजागर करती है। इस प्रकार शंखचूड़ एक ही नाम होते हुए भी दो भिन्न किंतु प्रेरणादायक पौराणिक रूपों में हमारे सामने प्रकट होते हैं।
धृतराष्ट्र
धृतराष्ट्र नाग, महर्षि कश्यप और कद्रू के शक्तिशाली पुत्रों में से एक थे, जिन्हें नागवंश के प्रमुख और प्रभावशाली सरदारों में गिना जाता है। उनका उल्लेख महाभारत और विभिन्न पुराणों में मिलता है जहाँ वे वासुकी, तक्षक और शंखपाल जैसे अन्य प्रमुख नागों के समकक्ष स्थान रखते हैं। धृतराष्ट्र अपने ज्ञान, तेज और प्रभावशीलता के लिए प्रसिद्ध थे लेकिन उनके स्वभाव में क्रोध की झलक भी देखी गई है। वे नागों की रक्षा, नागवंश के विस्तार और उसकी प्रतिष्ठा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। उनकी गाथा यह दर्शाती है कि नाग केवल रहस्यमय जीव नहीं थे बल्कि वे सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते थे।
नागों का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
शिव के गले का नाग - भगवान शिव को 'नागेश्वर' कहा जाता है क्योंकि उनके गले में नाग (विशेषकर वासुकी) विराजमान हैं। यह प्रतीक है कि शिव ने काम, क्रोध, भय जैसे विकारों को अपने अधीन कर लिया है।
नाग पंचमी - नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है। इस दिन नाग देवता को दूध, चावल, फूल, दही आदि अर्पित किए जाते हैं। पूजा में नागों के आठ रूपों (अनंत, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख) की विशेष पूजा होती है। शिवलिंग पर भी दूध चढ़ाने और नाग की आकृति की पूजा का विधान है।
कुंडलिनी ऊर्जा - योगशास्त्र में सर्प को 'कुंडलिनी शक्ति' के रूप में दर्शाया गया है जो रीढ़ में सुप्त अवस्था में रहती है और साधना से जागृत होकर आत्मज्ञान की ओर ले जाती है। यह अवधारणा योग और तंत्र परंपरा में प्रचलित है।
नागमणि की कथा - हिंदू लोककथाओं में नागमणि को एक दिव्य और दुर्लभ मणि माना गया है, जो केवल विशेष नागों के पास होती है। इसे अमूल्य, चमत्कारी और इच्छापूर्ति करने वाली माना जाता है। हालांकि यह कथा मुख्यतः लोकविश्वासों में है और शास्त्रों में इसका सीमित उल्लेख मिलता है।
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