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bhagwan jagannath रूठ गईं लक्ष्मी जी कैसे मनाते है, जानिए हेरा पंचमी पर कैसे होता है प्रेम और नाराजगी का मिलन
bhagwan jagannath Hera panchami kya hai हेरा पंचमी की तिथि, परंपरा और भगवान जगन्नाथ द्वारा देवी लक्ष्मी को मनाने की रोचक कथा क्या। ये रस्म जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान क्या क्यो निभाई जाती है,जानतेे है..
Hera panchami kya hai जगन्नाथ रथयात्रा का आज पांचवां दिन है यात्रा का समापन 8 जुलाई को होगा। पुरी में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा आरंभ होती है, तो यह न केवल आध्यात्मिक आस्था का पर्व बन जाती है, बल्कि इसमें छिपी हर परंपरा जीवन के गूढ़ रहस्यों की ओर भी अपना ध्यान खींचती है। इन्हीं परंपराओं में से एक है हेरा पंचमी, जो भगवान और देवी लक्ष्मी के बीच के प्रेम, रूठने-मनाने और गृहस्थ जीवन के बैलेंस का प्रतीक है।
हेरा पंचमी की परंपरा क्या है?
हेरा पंचमी, रथयात्रा के पांचवें दिन मनाई जाती है।हेरा मतलब दर्शन और पंचमी पांचवां दिन, आषाढ़ शुक्ल पंचमी को होने वाली यह परंपरा एक अनूठा दृश्य दिखाती है, जहां देवी लक्ष्मी स्वयं अपने पति, भगवान जगन्नाथ से नाराज होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती हैं। तो वहां उन्हें देखकर कोई स्वागत नहीं करता। वह गुस्से में आकर भगवान के रथ का एक पहिया तोड़ देती हैं और फिर बिना कुछ कहे लौट जाती हैं, लेकिन यह मौन बहुत कुछ कह जाता है। इसका कारण है कि भगवान जगन्नाथ, बिना कोई सूचना दिए, अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) चले जाते हैं और देवी लक्ष्मी को मंदिर में अकेला छोड़ जाते हैं।
यह घटना "हेरा गोहिरी" (हेरा = दर्शन, गोहिरी = गली) से जुड़ी है, जहां से देवी लक्ष्मी लौटती हैं। क्योंकि यह विवाह संबंधों में सामंजस्य, अधिकार और प्रेम का अत्यंत कोमल चित्रण है।
हेरा पंचमी 2025 कैसे मनाते हैं मां लक्ष्मी को
आज हेरा पंचमी 1 जुलाई 2025, मंगलवार को मनाई जाएगी। यह दिन रथयात्रा उत्सव का पांचवां दिन होगा, जब भगवान गुंडिचा मंदिर में निवास कर रहे होंगे और देवी लक्ष्मी उन्हें मनाने पहुँचेंगी।
हेरा पंचमी के बाद भगवान को इस बात का आभास होता है कि देवी लक्ष्मी नाराज हो गई हैं। तब भगवान लक्ष्मी जी को मनाने के लिए विशेष उपहार, आभूषण और रसगुल्ले भेजते हैं। यह रसगुल्ला भेंट करना प्रतीक है यह कोई साधारण रस्म नहीं यह प्रतीक है पश्चाताप का, सम्मान का और प्रेम के पुनर्संयोजन का।उस प्रेम और सम्मान का, जो भगवान अपनी पत्नी के प्रति रखते हैं। अंततः जब भगवान वापस लौटते हैं (नीलाद्री विजय के दिन), तो लक्ष्मीजी उन्हें रसगुल्ला खिलाकर माफ करती हैं, लेकिन साथ ही वचन लेती हैं कि अगली बार बिना बताकर नहींं जाये।
हेरा पंचमी की परंपरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक शिक्षा है। यह हमें यह सिखाती है कि गृहस्थ जीवन में पारदर्शिता और संवाद जरूरी है। पत्नी की भावनाओं को अनदेखा करना रिश्तों में दूरी ला सकता है।नाराज होने का हक जितना पत्नी को है, उतना ही पति को भी अपनी गलती मानने और मनाने का धैर्य होना चाहिए। मन-मुटाव के बाद जब दोनों पक्ष प्रेम से एक-दूसरे को स्वीकारते हैं, तब ही जीवन सुखद बनता है।भगवान जगन्नाथ स्वयं इस बात के प्रतीक बनते हैं कि ईश्वर भी जब मानव रूप में आते हैं, तो गृहस्थ धर्म का पालन करते हैं और अपने आचरण से हमें मर्यादा, स्नेह और परस्पर समझ का पाठ पढ़ाते है।
हेरा पंचमी एक अनोखा त्योहार है जो भगवान और देवी के रिश्ते को सहज मानवीय भावनाओं से जोड़ता है। कि रिश्ते अधिकार से नहीं, स्नेह और समझदारी से निभते हैं।
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