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सीजेआई गवई ने बहाल किया सुप्रीम कोर्ट का पुराना प्रतीक, लौट रहा है सर्वोच्च न्यायालय अपने मूल स्वरूप में
Old Symbol of the Supreme Court: जस्टिस बी.आर. गवई ने सुप्रीम कोर्ट के पारंपरिक प्रतीक चिह्न को बहाल कर दिया है। आइये विस्तार से समझते हैं इसके बारे में।
Old Symbol of the Supreme Court (Image Credit-Social Media)
नई दिल्ली। मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी.आर. गवई ने एक ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक निर्णय लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के पारंपरिक प्रतीक चिह्न को बहाल कर दिया है। इससे पहले 2023 में सुप्रीम कोर्ट की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर तत्कालीन सीजेआई जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने नया प्रतीक चिह्न जारी किया था, जिसे अब आधिकारिक तौर पर हटा लिया गया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की इमारत में किए गए कुछ और बदलाव भी अब वापस लिए जा रहे हैं — जिनमें शीशे के दरवाजों को हटाने का निर्णय प्रमुख है।
क्या था नया प्रतीक, और क्यों हुआ बदलाव?
सितंबर 2023 में जारी किए गए नए प्रतीक चिह्न में अशोक चक्र, सुप्रीम कोर्ट की इमारत और भारतीय संविधान की झलक थी। इस पर न्यायालय का आदर्श वाक्य “यतो धर्मस्ततो जयः” — “जहां धर्म है, वहां विजय है” — भी अंकित था, जो कि पुराने प्रतीक का भी हिस्सा था।
हालांकि यह नया प्रतीक आधुनिकता और नवाचार का प्रतीक माना गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने इसे परंपरा से विचलन के रूप में देखा और इस पर आपत्ति जताई थी। उसी समय से वकीलों की ओर से मांग उठ रही थी कि अदालत के पारंपरिक प्रतीकों और मूल स्वरूप को यथावत रखा जाए।
शीशे के दरवाजे भी हटेंगे, खुले गलियारों की वापसी
न्यायिक प्रतीकों के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट भवन के गलियारों में लगाए गए शीशे के दरवाजे भी अब हटाए जाएंगे। ये दरवाजे गर्मी और ठंड से बचाव के लिए लगाए गए थे, जिससे गलियारों में आंशिक वातानुकूलन हो गया था। मगर इसका विरोध यह कहकर हुआ कि इससे सुप्रीम कोर्ट की खुली और पारंपरिक वास्तुकला प्रभावित हो रही है।
23 मई को एक सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई ने स्वयं कोर्ट में कहा कि शीशे के दरवाजे हटाए जाएंगे और कोर्ट अपने “पुराने मूल स्वरूप” में वापस लौटेगा। यह बयान न केवल एक तकनीकी आदेश था, बल्कि संवेदनशील और विचारशील नेतृत्व की ओर इशारा करता है।
संस्थागत पहचान और वकीलों की भावना का सम्मान
यह निर्णय सिर्फ एक प्रतीक या दरवाजे बदलने का नहीं है। यह उन संस्थागत मूल्यों और भावनाओं का सम्मान है जो वर्षों से सुप्रीम कोर्ट की आत्मा का हिस्सा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का प्रतीक न केवल एक चिह्न है, बल्कि यह संविधान, न्याय और परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। मुख्य न्यायाधीश का यह निर्णय इस बात का प्रमाण है कि आधुनिकीकरण के साथ परंपरा का संतुलन बनाए रखना न्यायपालिका की प्राथमिकता बनी हुई है। एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट केवल एक न्यायालय नहीं है, यह एक जीवंत संस्था है जिसकी दीवारें सिर्फ फैसलों की नहीं, बल्कि मूल्यों की भी साक्षी हैं।”
पृष्ठभूमि: प्रतीकों पर क्यों हुआ विवाद
2023 में जब नया प्रतीक जारी हुआ, तब इसे ‘नए भारत’ के दर्शन के अनुरूप एक आधुनिक बदलाव बताया गया। लेकिन कई कानूनी विशेषज्ञों ने इस पर आपत्ति जताई कि ऐसे संस्थागत प्रतीकों को बिना व्यापक विमर्श के नहीं बदला जाना चाहिए। SCBA ने इस पर औपचारिक आपत्ति भी दर्ज की थी और मांग की थी कि ऐसे बदलाव व्यापक सहमति से ही किए जाएं।
निष्कर्ष: आधुनिकता के बीच परंपरा का संतुलन
CJI गवई के इस निर्णय ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि सुप्रीम कोर्ट न केवल न्याय का मंदिर है, बल्कि यह संविधान की आत्मा और लोकतांत्रिक गरिमा का प्रतीक भी है। जहां एक ओर अदालत तकनीकी और वैधानिक प्रगति की ओर बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर संवेदनशीलता और परंपराओं के सम्मान को भी प्राथमिकता दी जा रही है।
यह कदम दर्शाता है कि,“संस्थाएं तब मजबूत बनती हैं जब वे न केवल आगे बढ़ती हैं, बल्कि पीछे मुड़कर अपनी जड़ों को भी संभालती हैं।”
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