इंडियन महिलाओं का स्वर्ण भंडार! इनके पास दुनिया के 11% सोने का खजाना, आइए जाने इस रिपोर्ट में

Indian Housewife Save Gold: भारतीय महिला एक चलती-फिरती तिजोरी नहीं, बल्कि एक सशक्त आर्थिक स्तंभ हैं।

Shivani Jawanjal
Published on: 27 May 2025 11:28 AM IST
Indian Housewife Save 11 Percent Gold Of World
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Indian Housewife Save 11 Percent Gold Of World 

Indian Housewife Save Gold: भारत में सोने का महत्व केवल धातु के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक प्रतीक के रूप में होता है। भारतीय समाज में सोना न केवल एक आभूषण है, बल्कि एक सुरक्षित निवेश और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक भी है। विशेष रूप से, भारतीय महिलाएं खासकर गृहिणियाँ इस धरोहर को सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट ने सबको चौंका दिया, जिसमें बताया गया कि भारतीय गृहिणियों के पास दुनिया के कुल सोने का 11% हिस्सा है, जो अमेरिका, रूस, जर्मनी, इटली, फ्रांस और स्विट्ज़रलैंड जैसे शक्तिशाली देशों की कुल स्वर्ण भंडार से भी अधिक है।

यह आंकड़ा न केवल आश्चर्यचकित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका आर्थिक दृष्टिकोण से कितनी प्रभावशाली हो सकती है। आइए इस विषय को गहराई से समझने की कोशिश करें।

सोने की धनि भारतीय महिलाएं


भारत में सोने का विशेष महत्व है और इसका चलन अत्यधिक व्यापक है। विशेषज्ञों का मानना है कि अकेले भारतीय गृहिणियों के पास करीब 24,000 टन सोना है, जो कि पूरी दुनिया में मौजूद कुल सोने के भंडार का लगभग 11% है। यह आंकड़ा अपने आप में चौंकाने वाला है, क्योंकि यह मात्रा दुनिया के कई बड़े देशों के आधिकारिक स्वर्ण भंडार से भी कहीं अधिक है।

उदाहरण के लिए, अमेरिका, जर्मनी, इटली, फ्रांस और रूस जैसे देशों के पास सरकारी स्तर पर बड़ी मात्रा में सोना है, लेकिन इन सभी को मिलाकर भी जो कुल भंडार बनता है, वह भारतीय महिलाओं के पास मौजूद सोने की तुलना में कम ही बैठता है। अगर इसमें स्विट्ज़रलैंड को भी जोड़ दिया जाए, तब भी भारतीय गृहिणियों के पास मौजूद सोने की मात्रा इन सभी देशों के संयुक्त भंडार से अधिक ही ठहरती है।

विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council - WGC) और विभिन्न शोध संस्थानों की रिपोर्टें इस तथ्य की पुष्टि करती हैं। उनके अनुसार, भारतीय महिलाओं के पास इतनी बड़ी मात्रा में सोना होने का मुख्य कारण हमारे देश की पारंपरिक सामाजिक और आर्थिक सोच है। सोने को यहां संपत्ति, सुरक्षा, सांस्कृतिक प्रतीक और मान-सम्मान से जोड़ा जाता है। विवाह, त्योहार, पारिवारिक समारोह और पीढ़ियों से चली आ रही परंपराएं सोने की इस मांग को और बढ़ावा देती हैं।

भारत में सोने का सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व


भारत प्राचीन काल से ही सोने के प्रति विशेष लगाव रखने वाला देश रहा है। इसे कभी "सोने की चिड़िया" कहा जाता था, और इसका मुख्य कारण था यहां के लोगों, विशेषकर महिलाओं, द्वारा सोने को एक बहुमूल्य धरोहर के रूप में संजोकर रखना। सोना केवल एक धातु नहीं, बल्कि समृद्धि, संपन्नता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

भारत में विशेषकर उत्तर और दक्षिण भारत में शादी-ब्याह, त्योहारों (जैसे दीवाली, रक्षा बंधन) और पारिवारिक अवसरों पर सोना पहनना व उपहार में देना पारंपरिक रीति-रिवाज का हिस्सा है। हिंदू धार्मिक परंपराओं में देवी लक्ष्मी को सोने के आभूषण या मूर्ति के रूप में चढ़ाना सुख-शांति और समृद्धि की कामना से जुड़ा होता है।

विश्व गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ब्राइडल ज्वेलरी (विवाह संबंधी आभूषण) की मांग सबसे अधिक रहती है। विवाह में दिया गया सोना महिला की व्यक्तिगत संपत्ति माना जाता है, जो उसे वित्तीय सुरक्षा भी प्रदान करता है। इसलिए विवाह समारोहों में बड़े पैमाने पर सोने का आदान-प्रदान होता है।

भारत में सोने को तीन मुख्य रूपों में देखा जाता है:

शगुन का प्रतीक - धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं में शुभता का संकेत।

आर्थिक सुरक्षा - विपरीत परिस्थितियों में भुनाने योग्य सुरक्षित संपत्ति।

पारिवारिक संपत्ति - पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाओं को हस्तांतरित होने वाली अमूल्य धरोहर।

भारत में करोड़ों लोगों की भावनात्मक और पारिवारिक जुड़ाव की वजह से हर साल सोने की मांग बहुत अधिक रहती है, जिसके चलते भारत दुनिया का सबसे बड़ा व्यक्तिगत सोना उपभोक्ता बन चुका है।

प्राचीन भारत में सोने का महत्व


भारत में सोने का महत्व सिर्फ आधुनिक समय तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें प्राचीन इतिहास में बहुत गहराई तक फैली हुई हैं। सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 2500 ईसा पूर्व) के दौरान खुदाई में मिले सोने के आभूषण इस बात के प्रमाण हैं कि उस युग में भी सोने का उपयोग गहनों की सजावट और व्यापारिक लेन-देन में किया जाता था। यह दर्शाता है कि सोना न केवल सौंदर्य का प्रतीक था, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण था।

प्राचीन राजा-महाराजाओं के खजानों में सोने का प्रमुख स्थान होता था। मंदिरों में देवी-देवताओं के सिंहासनों, प्रतिमाओं, और श्रृंगार में सोने का भव्य रूप में प्रयोग देखने को मिलता है। सनातन धर्मग्रंथों में भी सोने को धन-वैभव और शुभता से जोड़ा गया है, जहां देवी लक्ष्मी को सोने से सुसज्जित और उनके वाहन को भी सोने का बताया गया है।

मुगलकाल में तो सोना शाही वैभव और ताकत का प्रमुख प्रतीक बन गया। मुगल सम्राटों ने सोने के सिक्के, सिंहासन, और राजसी महलों में सोने का अत्यधिक उपयोग किया। उस समय सोना न केवल धन का सूचक था, बल्कि सत्ता और प्रभाव का भी परिचायक था।

वैश्विक स्वर्ण भंडार के साथ तुलना


भारतीय गृहणियों के पास मौजूद सोने की मात्रा इतनी अधिक है कि इसकी तुलना सीधे-सीधे दुनिया के प्रमुख देशों के आधिकारिक स्वर्ण भंडार से की जाती है। रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय महिलाओं के पास लगभग 24,000 टन सोना है, जो दुनिया के कुल सोने के भंडार का लगभग 11% है। यह मात्रा संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, इटली, फ्रांस, रूस और स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों के सरकारी भंडार से भी अधिक है। उदाहरण के लिए, अमेरिका के पास लगभग 8,000 टन, जर्मनी के पास 3,300 टन, इटली और फ्रांस के पास क्रमशः 2,450 और 2,400 टन, रूस के पास 1,900 टन और स्विट्ज़रलैंड के पास लगभग 1,040 टन सोने का भंडार है। इन सभी देशों का कुल सरकारी स्वर्ण भंडार जोड़ने पर भी वह भारतीय गृहणियों के पास मौजूद सोने से कम ही बैठता है। इस तथ्य से यह स्पष्ट होता है कि भारत वैश्विक स्तर पर घरेलू स्वर्ण भंडारण की दृष्टि से एक “गोल्ड सुपरपावर” है। यह स्थिति केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और पारंपरिक रूप से भी भारत को एक विशिष्ट पहचान देती है। जहां अन्य देशों में सोना मुख्यतः केंद्रीय बैंकों और सरकारी भंडारों में संग्रहीत होता है, वहीं भारत में यह व्यक्तिगत संपत्ति के रूप में लाखों घरों में सुरक्षित रखा गया है। यही कारण है कि भारतीय गृहणियों का यह सोना विश्व स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है।

सामाजिक संरचना और महिलाओं की भूमिका

भारतीय समाज में भले ही पारंपरिक रूप से पुरुषों को वित्तीय निर्णयों का मुख्य संचालक माना गया हो, लेकिन सोने के मामले में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। कई परिवारों में सोने की खरीदारी, उसकी बचत और संग्रह की ज़िम्मेदारी महिलाओं के पास ही होती है। ऐतिहासिक रूप से भी विवाह के समय दिए जाने वाले दहेज या वरमाला में शामिल सोने के आभूषणों पर केवल दुल्हन का अधिकार होता है, जो उसे जीवनभर की वित्तीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता प्रदान करता है।

इस परंपरा को देखते हुए भारत के कर कानूनों में भी महिलाओं को विशेष छूट दी गई है। उदाहरण के तौर पर, आयकर अधिनियम के तहत विवाहित महिलाओं को 500 ग्राम तक सोना रखने की कर-मुक्त अनुमति दी गई है, जबकि पुरुषों के लिए यह सीमा केवल 100 ग्राम निर्धारित है। यह अंतर स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि नीति-निर्माताओं ने भी महिलाओं की भौतिक सुरक्षा में स्वर्ण की भूमिका को महत्व दिया है।

भारतीय सांस्कृतिक सोच यह मानती है कि जब परिवार की महिलाओं को सोने की ज़िम्मेदारी दी जाती है, तो उससे पूरे परिवार की आर्थिक स्थिरता, गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित होती है। इस सोच का असर यह भी हुआ है कि अनेक महिलाएं परिवार की बचत और वित्तीय निर्णयों में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। ज़रूरत पड़ने पर वे सोने को गिरवी रखकर या बेचकर पारिवारिक आर्थिक संकटों से निपटने में मदद करती हैं।

हालांकि, यह भी एक सच्चाई है कि आज भी कई जगहों पर महिलाओं की आर्थिक साक्षरता और निर्णय लेने की स्वतंत्रता सीमित है। विभिन्न अध्ययनों से यह सामने आया है कि कई महिलाएं वित्तीय निवेश जैसे क्षेत्रों में पूरी तरह स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पातीं, जिससे उनकी आर्थिक क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता। ऐसे में आवश्यकता है कि महिलाओं को वित्तीय शिक्षा और स्वायत्तता प्रदान कर उनकी भूमिका को और अधिक सशक्त बनाया जाए।

सरकार की नीतियाँ और पहलें

भारत में सोने की अत्यधिक मांग और इसके आयात पर निर्भरता ने लंबे समय से देश के चालू खाते पर दबाव बनाया है। इसी को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने कुछ अहम योजनाएँ शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य भौतिक सोने की मांग को घटाकर लोगों को वैकल्पिक निवेश के लिए प्रेरित करना है। इन पहलों में सबसे प्रमुख योजनाएँ निम्नलिखित हैं:

सोवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) - साल 2015–16 के बजट में शुरू की गई SGB योजना का मुख्य उद्देश्य था कि लोग सोने को आभूषण या भौतिक रूप में खरीदने के बजाय सरकारी बॉन्ड के रूप में उसमें निवेश करें। इस योजना के तहत निवेशकों को प्रति वर्ष 2.5% ब्याज भी मिलता है, जो कि सोने की कीमत में वृद्धि से अलग होता है। सरकार का लक्ष्य था कि हर वर्ष करीब 300 टन सोने की मांग को इस योजना में स्थानांतरित किया जाए, जिससे आयात में कमी आए और देश के चालू खाता घाटे (CAD) पर नियंत्रण रखा जा सके।

गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम (GMS) - इसी साल यानी 2015 में गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम भी शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य था कि आम नागरिक अपने घरों में रखे बेकार या अनुपयोगी सोने को बैंकों में जमा करें और उस पर ब्याज अर्जित करें। इस योजना के अंतर्गत जमा किया गया सोना सरकार और रिज़र्व बैंक के नियमन के अंतर्गत लाकर सिक्कों और बुलियन के रूप में पुन: उपयोग किया जा सकता था। हालाँकि, मार्च 2025 में सरकार ने इस स्कीम को सरल बनाने के लिए मध्य और दीर्घकालीन जमा विकल्पों को बंद कर दिया है।

डिजिटल गोल्ड प्लेटफ़ॉर्म्स - हाल के वर्षों में निजी क्षेत्र की कंपनियों और स्टार्टअप्स (जैसे Paytm, PhonePe आदि) ने डिजिटल गोल्ड की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया है। इनमें लोग ऑनलाइन माध्यम से छोटी-छोटी राशि में सोना खरीद सकते हैं और उसका डिजिटल प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं। भले ही ये योजनाएँ सरकारी न हों, लेकिन ये आम जनता को सोने में निवेश के लिए डिजिटल विकल्प प्रदान करती हैं।

अन्य रणनीतिक उपाय - सरकार ने समय-समय पर सोने पर आयात शुल्क बढ़ाया है, ताकि लोग घरेलू बचत पर ध्यान दें और विदेशी सोने की निर्भरता कम हो। इसके अलावा, स्वर्ण बॉन्ड को लोकप्रिय बनाने के लिए टैक्स में छूट, प्रचार अभियानों और विभिन्न वित्तीय प्रोत्साहनों का भी सहारा लिया गया है।

इन सभी पहलों का उद्देश्य यह है कि लोग विशेषकर गृहणियाँ, जो पारंपरिक रूप से भौतिक सोने को संजोती रही हैं, उन्हें डिजिटल या कागज़ी स्वरूप के सुरक्षित और लाभकारी निवेश की ओर प्रेरित किया जा सके।

आर्थिक दृष्टिकोण से इसका महत्व

निजी सुरक्षित निवेश - जब महिलाएं सोना खरीदती हैं, तो वे अनजाने में देश की अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने का काम करती हैं। यह निजी स्तर पर 'गोल्ड रिज़र्व' जैसा कार्य करता है।

आपातकालीन परिसंपत्ति - किसी भी आर्थिक संकट या घरेलू जरूरतों में यह सोना तुरंत नकदी में बदला जा सकता है।

बैंकों और फाइनेंस कंपनियों की भूमिका - भारत में आजकल कई वित्तीय संस्थाएं सोने के एवज में लोन देती हैं। इस प्रकार, यह संपत्ति निष्क्रिय न होकर अर्थव्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभा रही है।

चुनौतियाँ और जोखिम

सुरक्षा की चिंता - इतने बड़े स्तर पर घरों में सोना रखना जोखिमभरा हो सकता है।

बीमा न होना - अधिकतर घरेलू सोना बीमा रहित होता है, जो चोरी या नुकसान की स्थिति में आर्थिक झटका बन सकता है।

निष्क्रिय संपत्ति - यदि इसे वित्तीय प्रणाली में लाया जाए, तो यह देश की GDP और विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत कर सकता है।

सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू

सोना भारतीय महिला के लिए केवल आभूषण नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, पारिवारिक विरासत और सामाजिक पहचान का प्रतीक होता है। ग्रामीण भारत में विशेषकर यह सोच और भी गहरी है। महिलाएं इसे अपने भविष्य की सुरक्षा की चाबी मानती हैं।

क्या यह ताकत बन सकती है देश की?

यदि सरकार और वित्तीय संस्थाएं मिलकर ऐसी योजनाएं लाएं, जो महिलाओं को भावनात्मक सुरक्षा के साथ आर्थिक लाभ दें, तो यह सोना भारत के लिए एक आर्थिक क्रांति ला सकता है।

गोल्ड डिपॉजिट स्कीम को महिला-उन्मुख बनाया जाए।

सोने पर बीमा और गारंटी योजना शुरू की जाए।

महिलाओं को निवेश शिक्षा दी जाए ताकि वे सोने का उपयोग आर्थिक प्रगति के लिए कर सकें।

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